Sunday, December 20, 2009

अवधी उपन्यास - क़ासिद (11)

दादी चाय क कप लैइके बिल्कुल नेरे आ गईं तबहिनौ शुक्लाजी का पता नाई चला। ऊ पता नाईं टीवी म का देखि क बस मुस्कुरवतै रहे। दादी चाय क कप नेरे याक स्टूल पर धरि दीन्हेनि।

का बात है बच्चा? का देखि क मुस्कुरा रह्यौ?”

शुक्लाजी शायद अबहिनौ अपनी अम्मा केरि बात नाईं सुनेनि। उन क्यार ध्यान बस टेलीविजन क तरफै लाग है। दादी अबकि धीरे त अपने लरिका क्या हाथ पकरेनि औ मुंह ऊपर घाईं कईके बोलीं।

बेटा, हमार मन कहति है कि यू घर बेचिक हिंदुआने म भीतर तन कौनौ दूसर घर लइ लेओ।

शुक्लाजी अबकि एकदम ते चौंके। उई अपनी महतारी तन द्याखन लाग। उनकी अम्मा चाहे कित्तौ मुसलमानन तेरे जरति बुझति रहीं होए लेकिन ऐइस बात ऊई कबहूं नाईं कीन्हेनि। फिर अब का हुइगा?

काहे, अम्मा? का भा? इ घर मा का खराबी है?”

दादी क मन म अब लगै जौन कुछ भीतरै भीतर चलि रहा रहै। अपने लरिका क सवाल सुनिकै बाहर आवन लाग।

तुम नाई समझिहौ। आजु काल्हि गांव क हवा कुछु ठीक नाईं है। अमीर हसन केरे टाल पर ना जाने कहां कहां क्यार मौलवी आक डेरा जमावन लाग है। पता नाईं का का साजिशै रची जा रही हैं आजु काल्हि अमीर हसन क टाल पर। औ टिल्लू क द्याखौ, येऊ ना जाने कहां कहां त औ का का सीखन लाग हैं।

घर मा टीवी- किताबैं अऊर स्कूल म पढाई म खोए रहै वाले शुक्लाजी का लाग मामला संगीन है। ऊई खट्ट त टीवी ऑफ कई दीन्हेनि औ अपनी अम्मा क्यार हाथु पकरि क अपने नेरे बिठा लीन्हेनि। कहां तौ महतारी अबै लगै लरिकवा क समझावा करतीं रहैं, अब बदलति बयार का बहाव द्याखौ। लरिका क अम्मा क्यार मन टट्वालै क परा।

अम्मा, मन चंगा तो कठौती में गंगा। तुम काहे परेसान हुई रह्यू। कुछु नाईं होई, औ अमीर हसन भला हम लोगन क्यार नुकसान काहे चइहैं?”

दादी कइहां शायद दिन भर घर मा नाऊन दाई औ कल्लू के रहत्यौ सूनापन सतावन लागन लाग है। दादी अपने पिछलै दिनन की बात यादि कइकै गुमसुम होन लागीं, पता नाईं काहे लेकिन अकेले म अब हमार जी घबरान लाग है। इ लोगन क कौनौ भरोसा नाईं। द्याखत नाईं हौ रोजु त कहूं न कहूं बम धमाकन केरि खबरै टीवी पर आवा करती हैं।

अम्मा, धमाका सहरन म होति हैं। हम लोगन का? हियन कौन भीड़ भड़क्का होति है, औ हियन तो कौनौ ऐसि इमारतौ नाईं कि आतंकवादी वहिमा धमाका कइकै दुनिया क कुछु दिखावन चइहैं। हियन तौ अब्यौ राम रहीम औ किसन करीम साथै साथ काम करति हैं।शुक्लाजी ऐसे ब्लावनग लाग जइसे अपनी अम्मा का न बल्किनु अपने लरिकवा क समझा रहे होएं।

अम्मा। या पुरखन क ज़मीन अहै। एहिका छोड़ि क हम लोग कहां जइबे। औ धर्म का है, या बात क अब हमका तुमका बतावैक परी। धर्म क्यार मतलब तो तुम हमका बचपनै त सिखावा हऊ। यू हिंदु मुसलमान क्यार झगड़ा तो उन लोगन क्यार है जिनका पतै नाईं कि धर्म होति का है? तुम ऐसै काहे स्वाचन लागी हौ?”

अब दादी का बतावैं कि उनका सबसे ज्यादा फिकर टिल्लू केरि होनि लागि है। बुढ़ापा म वइसेहो वहि ताना लरिकवा छांड़ि क पोता पियार हुई जाति है जइसै बनिया क असल छांडि क सूद। उई पता नाईं का स्वाचन लागीं। शुक्लाजी अम्मा क समझा क फिर ते टीवी ऑन कीन्हेनि। चैनल बदलति बदलति न्यूज़ चैनल पर आए तो उन केरि अंगुरि जइसे रिमोट पर अपने आप रुकि गईं। टीवी पर मुंबई बम धमाकन म तीन लोगन क फांसी क सजा सुनाए जाएक खबरि आ रही।

टीवी पर एंकर खबर पढ़ि रही।

मुंबई बम धमाकों के मामले में मकोका की विशेष अदालत ने आज तीन दोषियों को फांसी की सजा सुना दी। इनमें एक महिला भी शामिल है। फांसी की सज़ा पाने वालों के नाम हैं...अजमल...

इ चैनल पर शुक्लाजी रुकि तो गे, लेकिन एकदमै त उनका यादि आवा कि थोरी देर पहिला का बात चलि रही रहै। ऊ तुरतै टीवी ऑफ कई दीन्हेनि। पलटि क अपनी अम्मा तन देखेन, अम्मा अबकी गौर त शुक्लाजी तन निहारि क द्याखन लागीं। शुक्लाजी अम्मा केरि आंखिन क्यार सवाल पढ़ि तौ लीन्हेनि, लेकिन शायद इन क्यार उत्तर उनके तीर न रहैं। ऊई अपना मुंह दूसरी तन घुमा क द्याखन लाग। दादी समझि गईं कि लरिकवा अब इ मुद्दा पर बात करैक मूड म नाईं है। ऊई उठीं औ नाऊन दाई त पूजा क थाली लावै क कहिकै भगवानेन केरे कमरा म चली गईं। जात जात एत्तै कहेन, टिल्लू क आवाज़ दइ देओ। कुबेरि बेरिया हुइगै अब वहिका घरै बुला लेओ।

(जारी...)

4 comments:

Amrendra Nath Tripathi said...

ओह , बाति अस है ..पूरे माहौल मा खौफ तैर रही है .. डर का मनई अपनी इच्छा भै भगावत अहै लेकिन सच्चाई गले मा परी है .. '' कुबेर बेरिया '' मा के बचाई भैया ..

Unknown said...

विनय न मानति जलधि जड़, गए तीन दिन बीति।
बोले राम सकोप तब, भय बिनु होय न प्रीति।।

alka mishra said...

वातावरण खराब तो जरूर है ,पर उतना नहीं जितना इसका शोर है
वैसे भी भेड़िया आया का राग नहीं अलापना चाहिए

Unknown said...

अलका जी आपका कहना ठीक है और ये उपन्यास भी इसी की बानगी पेश करना चाहेगा। अभी तो शुरुआत है, सो माहौल की हलचल दिखना ज़रूरी है।