
“अरे तो एहिते का भा। छोटे बड़े क बात एहिमा कहां ते आगै। बात कौनौ नई चीज़ सीखै कि होए तो छोटेहो बड़ने का सिखा सकति हैं।“ टिल्लू अबकी दांय पूरे भरोसे के साथ बोले। उई जा तो रहे रहैं ख्यालन लेकिन आयशा तेरे मुचौटा करेम उनका मज़ा आवन लाग है। आयशा क तनिकौ उम्मीद न रहै कि गांव क यू लरिका एतना फरवट होइ ब्वालैम। टिल्लू क बात उनका तनुक समझि आई औ तनुक नहिंयू आई। बस एत्तै कहि पाईं, “अच्छा जैसे...।” टिल्लू की ज़ुबान पर तौ जैसे आजु सरस्वती बैठि अहै। कहे लाग, “ वौ दोहा नाई सुना हउ, रहिमन देख बड़ेन को लघु ना दीजिए डार, जहां काम आवै सुई, काह करे तलवार।“ “औ एहिका मतलब का भा, यहो बता देओ रहीम दास जी। तनुक हम अनपढ़ का यहौ समझा देओ।“ आयशा जौने कामे त घर ते बाहर दौरी आई रहै वा बात इ भूलि गईं। अब इनकौ टिल्लू त बतियावै म बढ़िया लागन लाग। वइसेहो जबते इ फत्तेपुर आई हैं, कौनौ बौल्यै बतियावै वाला तो मिला नाईं। टिल्लू क आयशा क बोली म मिठास जानि परी। उई हाथे म लोटा पकरे नेरे आए औ व्हानै दीवार ते टिकि कै ठाढ़ हुइगै, कहै लाग कि समझाइति है, तनुक धीर धरौ।
आयशा क तन द्याखत भै टिल्लू कहन लाग, “द्याखौ, एहिका मतलब यू भा कि बड़न क देखि क छ्वाटन कइहां नजरअंदाज न करैक चाही। काहेक जौन काम सुई कई सकति है, वौ काम कईयू ब्यारा तलवार नाई करि सकति।“’ अपनी बात कहिकै टिल्लू टुकुर टुकुर आयशा क तन द्याखन लागि कि इनका रहीम दास केरि बात क्यार मर्मु समझु म आवा कि नाईं। आयशा अब पूरी तरह तेरे ठिठोली केरे मूड म दिखाई परन लागीं। हंसिकै बोलीं, “अरे हमका कहां चमका? हम ठहरिनि निपट गंवार, काला अक्षर भैंस बराबर। तुम तो सब जानत हौ ना, स्कूल पढ़न जात हौ ना?” जौने मोहल्ला म सब लरिकवा पूरा पूरा दिन गिल्ली डंडा औ कंचा ख्यालै म बिता देत हौए, हुअन बारा त्यारा साल केरे लरिकवा के स्कूल जाए कि बात पर तारीफ होए तो नीक तौ लगिबै करी। टिल्लू क्यार चेहरा एकदम ते चमकि गहा। उई अपनी बुशशर्ट क्यार कालर ठीक कीन्हेने। पैंट तनुक ऊपर सरकाएनि। बारेन म हाथ घुमाएन औ ऐसे तनिके ठाढ़ हुइगे जैसे अबहिने बैरिस्टरी पास कइके लौटे होएं, “औ का, हमेसा क्लास म फस्ट।”
आयशा केरि समझि म नाई आवा कि ऊइ तारीफ जादा कई दीन्हेनि कि यू लरिकवा वाकई अपनी पढ़ाई केरे गुमान म है। तबहिनौ बात क परकावै खातिर कहेन, “हमेसा क्लास म फस्ट? मुला हमेरे कौनौ काम क्यार?” टिल्लू क ऐस जानि परा जानौ आयशा उनकेरे वजूद पर सवाल उठा दीन्हेनि क हुइहौ तुम पढ़े लिखे लेकिन मतलब तौ तब हल होए जब उनके कौनौ काम क्यार हो। तुरतै उनका हाथे म पकरा लोटा यादि आवा, “काहे कौनौ काम क्यार काहे नाईं, अबही तुमार लोटा नाली म जाए त बचावा कि नाईं।” टिल्लू क चेहरा अबकी थ्यारा तमतमा अइस गा। आयशा क लाग कि लरिकवा कबूं उनकी बात क्यार बुरा न मानि जाए। उई बात संभारै कि कोसिस कीन्हेनि, “अरे हां, वौ तो तुम बहुन नीक कीन्ह्यौ छोटे मियां। वहिके खातिर बहुत बहुत शुक्रिया। औ हां, सुना है कि चिट्ठी बहुत कायदे त लिखत हौ तुम?” तारीफ ऐस तीर है जौनु हमेसा निसाना पर लागति है। टिल्लू क पारा थ्वारा नीचे आवा, “हां, कबहू जरूरत परै तो बता दीन्ह्यौ। अबै जाइति है। दादी देखि लीन्हेनि...तो..” “तौ का ठंडे पानी त नहिबैक तो परी औ का? अच्छा सुनौ, खजूर खइहौ?” आयशा सुलह सफाई पूरी होति देख अपन आखिरी तीर आजमाएन। तीर फिर ते निसाना पर लागि। टिल्लू अपने होंठन पर जीभ फिराएनि। मिठाई कौने लरिका केरि कमज़ोरी नाई होति। लेकिन दादी। टिल्लू की आंखि फौरन हवेली केरे गेट तक देखेनि। फिर छत घांई द्याखन लाग कि कहूं दादी हुअन ना ठाढ़ी होएं। आखिर अपने आप त सवाल पूछेनि, “खजूर?” याक दांय फिर ते उइ अपने होंठन पर जीभ फेरेनि औ धीरे तक आयशा के घर के दरवाजा कि देहरी तीर आ ठाढ़ भे, “कौनौ क बतइहौ तो नाईं।“
(जारी...)
4 comments:
टिल्लू अबै जानत हैं की "रहिमन देख बड़ेन को लघु ना दीजिए डार, जहां काम आवै सुई, काह करे तलवार।" तबै उनका जब लाग कि रेशमा उन का कम आँकि रहीं हैं तौ ऊई नाराज़ होय गें. टिल्लू स्वाचय लाग कि साईत रेशमा का नहीं पता कि कैसे ऊई गाँव भरे कै चिट्ठी लिखा करत हैं औ गाँव वाले यहि के बिना उनका ह्यारा करत हैं काहे से लरिकईं मा मनई यत्ते जानत है या जाना चाहत है कि ऊहकै का करै से सब खुश होयहएं औ अगर केऊ उनका नहीं पूछिस या खुश भा तौ ऊई सब गुस्सा होय जात हैं तबै तो टिल्लू रेशमा का बतावे लागे कि (रहिमन) "तुच्छ न जानिए जो पावन तर होय" हाँ यह बात अलग है कि अबै टिल्लू यह नहीं जनती कि ईहै तुच्छ जन "उडि के परै जो आँख मा खरा दुहेला होय"
बड़ा नीक लागत है जब तुम पंचै बात के मर्म तक पहुंच जात हो। याक लेखक क और का चाही, बस आपन जैस सुधी पाठक। हमार लिखब सुफल कई दीन्ह्यौ। औ हां... ई उपन्यास म इ बिट्यावा क्यार नाम आयशा है...न कि रेशमा।
का गजब कै बात लिखेव '' तारीफ ऐस तीर है जौनु हमेसा निसाना पर
लागति है '' निशाना तौ ठकाठक लगि रहा है .. मन कहिस कि बिना
साँस लिहे अगिलउ पढ़ी जाई .. इंतिजार करत अही .. अब तबियत
भले अहै ..
.................... आभार ,,,
जै होए..अवधि के अलमबरदारन केरि। तुम्हारौ तीर सही निसाना पर लागि रहे हैं...अमरेंद्र भैया।
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