Tuesday, December 01, 2009

अवधी उपन्यास - क़ासिद (1)

मुर्गा अबै बांग नाई दीन्हेसि तेहिते पता चलति है कि भोरहरे म अबै देर है। लेकिन, दाद देक होई पंडिताइन कि जे भोरहरे ते पहिले है नहा धोक पहुंचि जाती हैं शीतला माता क मंदिर। शीतला माता क नहावे ते पहले वै पहुंचती हैं बगल म अंग्रेजन के जमाने के बने सिवाला पर। दरअसल फतेहपुर चौरासी गांव में अगल बगल बने इ दुई सिवाला हैं। कहत है कि याकै राजा अपने मंत्री कइहा एकु मंदिर बनवावै खातिर पइसा दीन्हेन। मुनीम केरि ड्यूटी लागि और इमानदारी ऐसि कि मंदिर बनवावै पैसा बचिगा तो मुनीम बचे पैसन तेरे बगलै म एक अउर सिवाला बनवा दीन्हेंनि। पंडिताईन जिनका मोहल्ला वाले दादी कहत हैं, बुजुर्ग होए क बादौ अबै सरीर त स्वस्थ हैं औ साठ साल केरि उम्र मइहौं टन्न हैं। श्लोक पढ़ति भै ऊइ मंदिर कि ओटिया चढ़ि रही है- यः प्राप्य मानुषं जन्म दुर्लभं भवकोटिभिः । धर्मं शर्मकरं कुर्यात् सफलं तस्य जीवितम् ॥ (जउन मनई करोड़न जन्मन के बाद मिली मनई की देह पावै क बाद दूसरे की भलाई वाला धरम करे वहि क्यारे जीवन सफल है।)

मंदिर के चौतरा पर एक मनई झाड़ू लगा रहा। दादी धोती के पल्लू तेरे अपनि नाक बंदि कीन्हेन। गर्दा तेरे दादी क बहुत चिढ़ है। साफ सफाई कि इतना पाबंद हैं कि रत्तिउ भर गर्दा उनका पसंद नाईं। गांव म अबै सोउता परा है। चौराहे पर कानपुर त आई प्रेस कि जीप अखबारन क्यार बंडल फेकि रही है। दादी मंदिर म सिवाला क भीतर पहुंचि कि अपनि थारी रखेन और आसनी बिछाक बैठि गई। आरती केरि थारी तेरे माचिस उठा के उई आरती क्यार दिया जलाएन।

ठीक उत्तेह खन याकि माचिस और जली। लेकिन हिया नाई। दादी केरे पड़ोस म। दादी क्यार घर फतेहपुर चौरासी गांव म हिंदू आबादी क्यार आखिरी घर है। वहिके बाद याक गली है और गली क दूसरि छ्ओर मुसलमानन की आबादी। अउर इ आबादी क्यार पहिला घर है ख़ान चाचा क्यार। ख़ान चाचा तो खैर गांव म रहत नाई और खान चाचा का, द्याखा जाए तो ई गांव में मुसलमानन क घर मा बस महिरया और लरिका लरिकउरी ही दिखाई परत हैं। कहूं कहूं सफेद बाल वाले बुजुर्गो हैं लेकिन जित्ते जवान और काम करै वाले मुसलमान मर्द हैं उई सब या तौ बंबई नहिं तो दुबई, ओमान और कुवैत म काम करत हैं। घर पर रहि गईं तो बस मेहिरया, लरिकवा और बुजुर्ग। ख़ान साहब केरे घर मां माचिस कि तीली भोरहरे भक्क त जरी।

दादी केरि पूजा सुरू हुई चुकी हैं - अविज्ञाय नरो धर्मं दुःखमायाति याति च । मनुष्य जन्म साफल्यं केवलं धर्मसाधनम् ॥ (धर्म क न जाने वाला मनई दुखी होति है, धरम की साधना तेरे हे केवल मनई क्यार जीवन सफल होति है।) दादी पूजा कि बाती लीन्हें संकर भगवान के आगे आंखी बंद कीन्हे बैठे श्लोक पढ़ि रहीं। वैइसी खान साहब के घर मा तानपूरा बाजै लागत है। खान साहब क्यार यू घर पुरखन क्यार बनावा है। पुराने नक्सा वाली इमारत। याक याक चीज़ तेरे नफासत झलकति है। सत्रा अट्ठारा साल केरि याकि बिट्यावा दालान केरि चिक ऊपर कर रहि है। दालान आंगन के चौतरफा है। नक्कासी दार खंभा अउर हर दुई खंभन के बीच डिज़ाइन दार मेहराब। खंभा मईहा सुंदर सुंदर आर बने हैं जइहिमा हर आरे म याक कुप्पी धरी है। बिट्यावा सगरे आरेन केरि कुप्पी जलाए दीन्हेसि अउर अब आंगन के बीचो बीच फर्स पर बैठि है।

दादी केरि पूजा रफ्तार पकड़ि चुकी है - बाल्यादपि चरेत् धर्ममनित्यं खलु जीवितम् । फलानामिव पक्कानां शश्वत् पतनतो भयम् ॥ (बचपनै ते धरम क्यार आचरण करब ठीक है। ज़िंदगी क्यार कौन भरोसा। वहिका तो हमेसा याहे लाग रहति कि कब पके आम की नाईं गिरेन कि तब।) तानपूरा केरि आवाज़ तनुक तेज़ि होनि लागि है। दालान केरे याक छ्वार एकु बढ़िया पॉलिश कीन सीसम क्यार तखत परा है। तेहि पर याक महेरिया तानपूरा पकरे बैठि है। उई धीरे धीरे गला खंखारि केरे सुर लगावे क कोसिस कई रहीं। राग जोगिया जानि परत है। बिट्यावा अब अपन कुछ दूसर तैयारी म है। वा अपने चुस्त पइजामा केरि चुन्नटै ठीक कइके उनका ऊपर खिसकाएसि। न अंगुरिन म कुछ पहिनै न हाथेन म, हाथन क्यार सूनापन बतावति है पुरखन क पइसा अब रहा नाईं। जउन कुछ सहारा है तउन बिदेस त आवै वाले पइसा क्यारै है। बिट्यावा पाएन म घुंघरु बांधब सुरू करति है। पहिलै बाएं पाएं म घुंघरु बांधेसि फिर दहिने म। घुंघरु बंधतै बिट्यावा कि सुस्ती गायब, वा चौकन्नी हुईकै ठाड़ि भै। सरीरौ दूनी हरकत म दिखाई परै लाग।

दुआरै कौनौ किसान खेती की चिंता म है। ऊ अपने बैलन के गले क्यार घुंघरू ठीक कीन्हेसि और चल दीन्हिस ख्यात कि तरफ। सिवाला म झाड़ू लगावै वाला अब मंदिर के मोहरा के समहै चुप्पै बैठि है। दादी पूजा कै लैं तो ऊ झाड़ू क काम पूरा करे। दादी क्यार हाथ जोर जोर त घंटी पकरे हालि रहे। साठ सालौ म आवाज़ एकदम साफ - धर्मस्य दुर्लभो ज्ञाता सम्यक् वक्ता ततोऽपि च । श्रोता ततोऽपि श्रद्धावान् कर्ता कोऽपि ततः सुधीः ॥ (धरम क जानै वाला कौनौ कौनौ है होत है। वहिका ढंग ते बतावै वाला तो वहितेहो कम होति हैं, धरम की बात श्रद्धा त सुनै वालै तो याके दुई है अऊर एहि पर आचरण करै वाला मिल जाए तो जानौ बहुतै बड़ी बात।)

खान साहब कि बिटिया क्यार रियाज़ सुरू हुईगा है। कथक क्यार रियाज करि रही है। अम्मा तानपूरा पर तान पकरै हैं और बिट्यावा क्यार पाएं सरगम केरे साथ लय चाल मिला रहे। अरे बिट्यावा का नाम त बतावब भूलि है गैन। इ आयशा आहीं। अल्ला मियां की नेमत है इनके ऊपर। गांव म सबते खूबसूरत बिट्यावा। लेकिन चेहरा पर ग़ज़ब कि सादगी। दादी कि पूजा अब्यौ चलि ही रही। घर मा उनक्यार पोता अबै सोई ही रहा। बारा त्यारा साल क्यार यू लरिका तख्त पर परै कसमसा रहा है। जानौ पड़ोस त आवै वाली आवाज़न त परेसान है। दादी केरि सिवाला म पूजा हुई चुकी, ऊइ अब सिवाला क सीढ़ी उतरि क सीतला माता क मंदिर कि तरफ जाए रहीं। हाथ म थाली और होंठन पर श्लोक - धृति: क्षमा दमोस्तेयम शौचम इंद्रिय निग्रह। धीर्विद्या सत्यमक्रोधो दशकं धर्म लक्षणम।।

सूरज केरि लाली आसमान म बिखरन लागि है। घरौन मइहां हलचल सुरु हुई चुकी है। मेहरिया सफेद पिछौरी पहिने ख्यातन तरफि त दिसा मैदान के बादि लौटि रही हैं। पांडे साइकिल लइके अखबार घरन म फेंकि रहे। रामदीन साइकिल क करियर पर दूध क कनस्तर बांधि रहे हैं।

(जारी...)

आज तेरे हम एकु अवधी उपन्यास ई ब्लॉग पर लिखब सुरू कर रहे हन। आप सब लोगन क्यार स्नेह और विचार मिलब जरूरी है।
सादर
पंकज शुक्ल

9 comments:

Amrendra Nath Tripathi said...

भैया !
सुरु से लैके अंत तक पढ़ॆन , बहुत नीक लाग ...
बरनन अउर चित्रन , दुइनिव बढ़िया चलत अहै ...
भिनसार यक्कै हइ लेकिन वहिकै तीनि जगहीं तीनि
रंग देखात हैं ... कहूँ आस्था-रंग ... कहूँ मौसिकी-रंग ...
कहूँ चहल-पहल वाला रंग , जहाँ लोगै काम-धाम मा
मसगूल हुवत अहैं...
चूँकि अबहीं अउर भाग आवै का बाकी अहै , यहि कारन
यहिके ' कंटेंट ' पै कुछू नाय कहि सकित .......
हाँ , ई उपन्यास-संकलप बीच मा न छोड़ेउ ...

Amrendra Nath Tripathi said...

भैया !
सुरु से लैके अंत तक पढ़ॆन , बहुत नीक लाग ...
बरनन अउर चित्रन , दुइनिव बढ़िया चलत अहै ...
भिनसार यक्कै हइ लेकिन वहिकै तीनि जगहीं तीनि
रंग देखात हैं ... कहूँ आस्था-रंग ... कहूँ मौसिकी-रंग ...
कहूँ चहल-पहल वाला रंग , जहाँ लोगै काम-धाम मा
मसगूल हुवत अहैं...
चूँकि अबहीं अउर भाग आवै का बाकी अहै , यहि कारन
यहिके ' कंटेंट ' पै कुछू नाय कहि सकित .......
हाँ , ई उपन्यास-संकलप बीच मा न छोड़ेउ ...

Barun Sakhajee Shrivastav said...

सर बधाई हो....
मैने तो पढ़ने की बेहद कोशिश की लेकिन पूरी दिमाग लगाया तभी जाकर कुछ समझ आया अत्यंत सराहनीय कार्य बोली की अपनी समृद्धता में ये क़दम ऐतहासिक है वरना लोग तो अपने कमवजनी विचार के डर से हिंदी में तक नहीं लिखते किसी तरह से इंग्लिश में लिखते हैं ताकि अंतर्राष्ट्रीय मंच मिल सके वे भूल जाते हैं लेखन में भाषा का सिर्फ उतना ही महत्व है जितना कागज और कलम का या आज के दौर में एस्सेर,लेनोवो,कंप्यूटर का। असली ताकत आपके विचारों में होती है...तभी तुलसी का महाकाव्य और शेक्सपीयर के नाटक दुनिया की लगभग सभी भाषाओं में अनुदित हो चुके हैं...
बेहद सराहनीय क़दम....जिस भाषा संस्कृति ने हमें पहचान दी विचार और सूचना तंतू दिए उसके लिए तो इतना करना ही चाहिए...सादर
वरुण 09009986179
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manas mishra said...

दादा बहुत बढ़िया लिख्यौ मौज आ गये। लेकिन हमका याक चीज लागति है कि यह तो जानौ भोजपुरी से लिखै मा ज्यादा कठिन है।

Unknown said...

अमरेंद्र, कंटेट केरि खूब कह्यौ। अरे मड़ैया खातिर अब्बै तो बांस, बसुली लाए हन। मड़ैया छई जाए देओ, तब दीखि जाई कि बरसात रुकित है कि घाम। तुमते बात करै क बदि ही एहि केरि बोहनी भै है।
वरुण - या अवधी बोली वहै बोली आय जेहिमा रामचरित मानस लिखि कै तुलसीदास अमर हुईगे।
मानस- अवधी औ भोजपुरी दून्हन म जादा फर्क नाई है। लिखिबे म हमका तो दून्हौ याके जैसे लगति हैं।

SP Dubey said...

मान्यवर पंकज शुक्ल जी
"अवधी उपन्यास-कसिद(1) पढ कर ठीक ही लगा। "लेख" लेखक का ही आन्तरिक रुप होता है। पाठक को अपने लेख के विषय से बांधे रखता है, पढते समय इधर उधर भटकने नही देता, इसके साथ साथ पाठक का चारित्रिक विकाश भी करता जाता है और उसमें विकार उत्पन्न नही करता, जो इस कला मे सिद्धस्त हो वही सफ़ल लेख और लेखक होता है, अभी तक की प्रस्तुती तो इस द्रिष्टी से ठीक है ।

ARUN SHEKHAR said...

bhaiyya pankaj bahot kamal kai rahe hao... tumhari picture ma hum dubbing kehe rahen....aur aap jab ek hindi film banava chahat rahev tabahu hum aap se milen rahay...

जहाजी कउवा said...

सुकुल महाराज राम राम
हम बहुत दाईं आय चुकेन मंझेरिया कलां महियाँ लेकिन तुम भैया हियाँ कुछु लिखतई नाई रहाऊ. खैर एतने दिन बादी कम से कम कुछ तौ छापो , अउर खूब धड़ाके ते चालू कियेऊ
सुरुआत तौ नीकी है, पात्र चित्रण बढ़िया है अउर बीच बीच महियाँ श्लोक खूब डारे हाउ भाई, पिच्चर वाले अउर टीवी वाले आजकल श्लोक परिहाँ खूब फ़िदा हई तौ भैया अब अउर माल डारौ तौ फिर नीके तेरे पढ़ा जाये
अउर गुरु एक बात अउर , हम आई गए हनु बम्बई , अउर हमारे खियाल तेरे तुमहूँ हियाँ हौ तौ फिर एक दिन कहूं मिला जाये अउर बालामऊ पसिंजर केरी कुछ बात चीत की जाये .

Pankaj said...

Bahut behtar hai sir. Aapke lekh se apni mitti ki khushboo aa rahi hai.

Regards.