जहाज त निकरा सामान ना जाने कहां कहां जाक गिरा और कित्तेन केरि खोपड़ि फाटि गै। उई जहाज म तमाम सामानन क साथ सोनौ लदा रहे। सोने केरि सिल्ली औ बिस्कुट बंबई म बंदरगाह केरे आसपास रहै वालेन केरे घर म बरसे रहैं। तमाम सिल्ली त लोगन केरि छतै तोड़ि क भीतर जा गिरीं। कौनो क जान चलिगै, कौनो करोड़पति हुइगा रहै इ धमाका तेरे।
बंबई म वैसे तो अवधी ब्वालै वाले तमाम लोग हुइबै करिहै, लेकिन एहि दांय मुंबई पुलिस केरे सीआईडी दफ्तर जाए खातिर याक टैक्सी पकरी त वहिका चलावै वाले याकै पंडित जी निखरै। चेहरे प चमक, बाल उजर औ चोटी म गांठि लागि दिखी। हम अंदाजा लगावा कि होए न होए इ पंडित जी अपनै इधर क्यार हुइहैं। बंबई म ऑटो और टैक्सी म बइठै क बादि वहिका चलावै वाले तेरे बातचीत करै केरि हमारि पुरानि आदत अहै। एहि ते गांव जवार छोड़ि क आए इ पंचन केरे मन की बातौ पचा चलति है औ रास्तौ कटि जाति है। याक दुई दांय त गाड़ी चलावै वाले महाराष्ट्र क्यार निकरै औ बात छेड़तै धाराप्रवाह मराठी म बतियावै लाग। हम मतलब भरि कै मराठी तो समझि लेइति अहै लेकिन मराठी म बातचीत करै क प्रैक्टिस अब्यौ जारी है। उम्मीद करिति अहै कि भगवान चइहैं तो यहौ भाषा जल्दी ही सीखि जइबै।
खैर, बात हुई रहै पंडित जी की। उनते हम पूंछा कि दादा कब ते हौ बंबई म। तो अपनि लेउंड़ी खजुयाक बोले सन तो नाई यादि लेकिन हमारि पढ़ाई लिखाई औ सिखाई सब बंबइहि म भै है। तो हम कहा जानो बचपनै म आ गे रहौ हियन। गाड़ीवान दादा हम त पूछेनि कि का हियन आजादी के पहिले याक गोदी म याक जहाज म भे विस्फोट कि बात तुमका पता अहै? यू जानौ कि वहि के अरते परते हम ई सहर म आए रहन।
दादा जौन बात पूछि रहे रहै वा बात सन 1944 केरि आय। ऊई दिन वाकई बंबई म बहुतेन केरे घर मा छप्पर फाड़ि क सोना बरसा रहै। भा यू रहै कि तकरीबन सात हजार टन भारी पाना क्यार जहाज जेहि क्यार नांव एस एस फोर्ट स्टिकिने रहै, 12 अप्रैल 1944 कइहां बंबई क बंदरगार पर पहुंचा। यू जहाज उई साल 24 फरवरी कइहां इंग्लैंड त चला रहै। 30 मार्च क यू कराची पहुंचा। हुअन इ जहाज तेरे तमाम माल असबाब औ बारूद उतारा गा। जगह खाली भै तो वहिमा कराची बंदरगाह पर तमाम दुसरी चीजें भर दीन्ही गईं। 12 अप्रैल क बंबई पहुंचा जहाज दुई दिन तो अइसेहे हियन ठाढ़ रहा फिर वहिके बाद एहि पर तेरे सामान उतारब चालू कीन्ह गा। औ, एहि बिच्चे जहाज पर जोर क्यार धमाका भा। थोड़ि ही देर म दूसर धमाका भा। जहाज म आगि लागै क बाद इ धमाका जहाज पर लदे बारूद त लपटै पहुंचे क बादि भे। यू जहाज तो धमाक क बादि डूबिबै कीन्हेस, आसपास क्यार तमाम अउरौ जहाजन केरि जल समाधि हुइगै। साढ़े सात सौ लोग इ धमाकन तेरे और धमाक क बाद फैले लोहा लंगड़ केरे चपेट म आक स्वर्गै सिधारि गे। बतावा जाति है कि दुई हजार क करीब लोग घायलौ भे रहैं।
जहाज म आगि कैसे लागि, कोई लगाएसि कि अइसेहे लागि गै। अब्यौ लगे एहि क्यार ठीक ठीक पता कौनो क नाई अहै। पहलि तो लोग समझेनि कि अमेरिका क पर्ल हार्बर कि नांय ह्यानौ जापान क्यार हमला हुइगा अहै। दूसर विस्व युद्ध चलति रहै, एहिके मारे इ बात क्यार ज्यादा प्रचारौ नाई होनि दीन गा और ना आजु काल्हि क नांय तबै ज्यादा अखबार या टीवी चैनले रहें। धमाका केरे बाद आधा किलोमीटर तेरेहो जादा केरे इलाका म खून खच्चर मचिगा रहा। जहाज त निकरा सामान ना जाने कहां कहां जाक गिरा और कित्तेन केरि खोपड़ि फाटि गै। उई जहाज म तमाम सामानन क साथ सोनौ लदा रहे। सोने केरि सिल्ली औ बिस्कुट बंबई म बंदरगाह केरे आसपास रहै वालेन केरे घर म बरसे रहैं। तमाम सिल्ली त लोगन केरि छतै तोड़ि क भीतर जा गिरीं। कौनो क जान चलिगै, कौनो करोड़पति हुइगा रहै इ धमाका तेरे। इ धमाका मइहां बिखरे सोने क्या बिस्कुट अब्यौ इ इलाका केरि खुदाई म निकरा करति हैं।
गाड़ीवान दादा कइहां यू पूरा किस्सा सुनावा तो उनकी आंखिन क चमक औरो बढ़िगै। कहे लाग द्याखौ तुम पंचै परदेस त हियन आवै क बदिहू इत्ता कुछ जानति हौ इ सहर क बारे म। लेकिन इस सहर पर अब ऐसे गिरोहन क कब्जा अहै जौन सहर क जानै न जानैं एहिका अपन बतावै क ढोल जरूर पीटत अहैं। दादा बतावै लाग पांच साल क लरिका तेरे लइके 55 साल तक के मनई कैसे यू जनतै कि उई यूपी क्यार आहिं, बत्तमीजी त बात करै लागत अहै। दादा कहै लाग आमची कहै म कौनौ बुराई नाईं अहै लेकिन अगर इ लोग इ सहक क्यार मेजबान अहैं तो फिर तो मेहमान क भगवान मानै जाए केरि अपने हियन बरसन त परंपरा रही अहै। सुनि रहे हौ, उद्धव ठाकरे औ राज ठाकरे भैया। जय महाराष्ट्र। जय हिंद।
Saturday, April 30, 2011
Friday, March 04, 2011
आखिर कौन लाल जड़े रहैं पीपली लाइव म?
“का पीपली लाइव क ऑस्कर म एहिके मारे पठवा गा रहै कि स्लमडॉम मिलिनेयर म भै भारत की बेइज्जती कम परिगै रहै औ आमिर चाहति रहैं कि दुनिया तनुक हमरी गरीबी प औरु हंसै। भला याक पिच्चर जौन उल्टी ते सुरू होए और टट्टी प खत्म होए, वहिका भारत म पिछले साल बनी सैकड़ों फिल्मन म सबते बढ़िया मानि लीन गा? अगर या बात ना रहै तो फिर काहे पठवा गा येई फिलिम कइहां ऑस्कर म?” (येई लेख तेरे)
भली कह्यौ। तो भइया याक दांय फिर ते ऑस्कर चाचा कइहां पुरानी दुनिया क सलीमा नीक नाईं लाग। इनाम तो छ्वाड़ौ, इनाम तेरे पहिले अखिरी कि पांच पिच्चरौ मइहां कौन हिंदी कि फिलिम कि गिनती नाई भै। जौन कहौ तौन यादि परति है कि पिछले दस साल म जैसे हे अपन फिल्म फेडरेसन ऑफ इंडिया मतलब कि एफएफआई कौनो हिंदुस्तानी सलीमा क्यार नाम घोषित करति है, ऑस्कर म पठवै खातिर, सगरे टीवी चैनलन प हुर्र कटि जाति है। औ, जैसे हे बौरे गांवै ऊंट आवा के नांय या हुर्रि पटाति है, सुरू हुई जाती हैं गारी गुप्तारि, कि या फिल्म उनके कहै त भेजिगै। फलाने या पिच्चर पठवै खातिर कित्ता जुगाड़ लगाएन वगैरा वगैरा। लेकिन हम तौ कहिति है कि अगर कौनो बड़मनई तनुक ढंग ते जादा नाई पाछे क दस साल म पठई गई पिच्चरन केरि लिस्ट देखि ले, तो वहिका पता चलि जाइ कि काहे स्लमडॉम मिलेनियर जैसी विदेसी पिच्चर म विदेसी ऑस्कर जीते वाले देसी रेसुल पोकुट्टी कहत है कि हिंदुस्तान वाले ढंग की पिच्चर ऑस्कर म नाईं पठवत।
वइसे तो महेस भट्ट जैसे फिल्मकारन कि या बात मानै म हमका कौनौ संकोच नाईं कि काहे भला ऑस्कर वाले हमका यू बतावैं कि कौनि फिलिम बढ़िया है, कौनि नाईं औ काहे उनके पैमाना पर हमकी पिच्चरै नापी जाएं, औ काहे भला हम पंचै कौनौ गोरी चमड़ी वाले कि तारीफ प खीसै निपोरी। लेकिन पोकुट्टी भैया कि या बातौ हम मानिति अहै कि अपने देस ते ढंग की पिच्चरै जादा कईकै नइहिं पठइ जाती हैं। लगान क्यार नाम जब ऑस्कर खातिर पठवा गा रहै तो अखिरी कि पांच पिच्चरन म आवै क खातिर बतावा जाति है आमिर खान जादा नाईं तो कम ते कम एक करोड़ क करीब रुपया हुअन अमेरिका म खर्च कइ डारा तेइन। खर्चा चाहै जित्ता हुइगा होए लेकिन जब लगान क्यार नंबर इनाम पा सकै वाली फिल्मन के बीच म लागि गा रहा, तो उनकेरि खुसी उनकी आवाज प झलकै लागि रहै। तब आमिर खान अमरीका तेरे फोन कीन्ह तेइन। उई दिना हम याक न्यूज चैनल म रहन औ आमिर चैनल की मार्फत पूरे हिंदुस्तान क साथै अपन खुसी देर तक बांटी तेइन। लेकिन बिचरऊ खिसियाएक रहिगे, जब आखिर म इनाम कौनो औरि हि फिलिम क मिलि गा रहै। एहि के बादि तेरे पिछले दस साल म आमिर खान क नाम त जुड़ी तीनि औरिउ पिच्चरै रंग दे बसंती, तारे जमीन पर औ पीपली लाइव ऑस्कर म सामिल होएक खातिर पठई जा चुकी अहैं। चलौ खैर रंग दे बसंती औ तारे जमीन पर मइहां कुछ तौ बात रहै। गांव जवारि क अलावा दुनिया क अऊरौ देसन क लोग एहिका द्याखा तेइन। कुछ तौ बार रहै इ पिच्चरन म, लेकिन पीपली लाइव?
का पीपली लाइव क ऑस्कर म एहिके मारे पठवा गा रहै कि स्लमडॉम मिलिनेयर म भै भारत की बेइज्जती कम परिगै रहै औ आमिर चाहति रहैं कि दुनिया तनुक हमरी गरीबी प औरु हंसै। भला याक पिच्चर जौन उल्टी ते सुरू होए और टट्टी प खत्म होए, वहिका भारत म पिछले साल बनी सैकड़ों फिल्मन म सबते बढ़िया मानि लीन गा? अगर या बात ना रहै तो फिर काहे पठवा गा येई फिलिम कइहां ऑस्कर म?
पिछले दस साल म अच्छा सलीमा छोड़ि क सितारन क नाम के चक्कर म ऑस्कर तक पिच्चर भ्याजै क यू एकुइ मामला ना आय। एहिके पहिले शाहरुख खान कि देवदास और पहेली ऑस्कर क दरवाजे त लौटि चुकी अहै। अऊऱ त अऊर अमिताभ बच्चन कि फिल्म एकलव्य क को कहै। इ फिल्म क चक्कर म तो मुंबई म तमाम कोर्ट कचहरी हुइगै रहै। हाईकोर्ट म एफएफआई क हलफनाम देक परा कि आगे त कौनौ फिल्म ये तना न पठई जाइ।
ऑस्कर मइहां गैर अंग्रेजी पिच्चरन क सम्मान क्यार सिलसिला जानौ 1956 म सुरू भा रहै। औ एहिके अगिलेहे साल यानी क 1957 तेरे अपने हियन क्यार फिल्म बनैया अपनी अपनी पिच्चरै इनाम क खातिर पठवन लाग। मुला मदर इंडिया, सलाम बॉम्बे औ लगान क छांड़ि क याकौ फिल्म अखिरी क पांच पिच्चरन म तक्का जगा नाईं बना पाएनि। इ सालन म पठई गईं 40 त जादा पिच्चर कि लिस्ट प कौनौ सरसरी निगाहौ डारै तो वहिका समझि म आ जाई कि मामला कहां बदबदान जा रहा। अब यू बताऔ अगर अमेरिका म यू ऑस्कर दे वाले अगर अपनी हियन कि मदर इंडिया, अपूर संसार, मुगल ए आज़म, साहिब, बीवी और गुलाम औ गाइड जैसी पिच्चरन क ऑस्कर लायक नाईं मानेन्हि तौ भला पीपली लाइव क का बिसात!
यू लेख "झाड़े रहौ कलेक्टरगंज" कॉलम के तहत वेब पोर्टल बिहारडेज़.कॉम पर प्रकाशित हुइ चुका अहै। साइट पर जाए खातिर ई लिंक पर क्लिक करौ -
http://www.bihardays.com/6nation/awadhi-column-peepli-live-pankaj-shukla/
Tuesday, February 22, 2011
येऊर म अवधी सत्संग
माफ कीन्हैयो कलमगीर होति भए खबर लिखेम देरि कई दीन्हि। लेकिन यू बंबई सहर अइस है कि मन क्या कुछौ करेह नाई देति। बंबई थ्वारा आगे ठाणे म याक जगह है येऊर। ह्यानै बहुत साल पहिले बाबा स्वानंद याक जगह डेरा जमावा रहैन। उन्हिंन केरि समाधि क नेरे भा अवधी सम्मेलन। सम्मेलन का कहौ, घर जवारि क लोगन त मिलाभेंटी क्यार एकु मौका रहै। तसल्ली या बात कि रहै कि अवध क्यार लोग कम ते कम अपनी भाषा क लइके फनफनान तौ। नहिं तो उत्तर भारत केरि बस याकै भाषा इन दिना बिकाय रही और वा है भोजपुरी। भोजपुरी बनारस त लइकै गया तक बोली जाति है और अवधी ब्रज के आगे त लइके कासी तक। तुलसीदास केरि बलिहारी कहौ कि या भाषा गैर अवधी लोगन के घरैहो पर पढ़ि जाति है।
बतावा गा कि एहिते पहिलेहौ एकु अवधी सम्मेलन अखिल भारतीय स्तर पर हुई चुका अहै। यू दूसर रहै। लखनऊ, बाराबंकी, उन्नाव, हरदोई, अमेठी त लइकै बनारस तक के लोग जुटे। सायद 1976 म अमेठी क्या जगदीश पीयूष अपने हियन बनी मलिक मोहम्मद जायसी केरि मजार त अइसै कुछ काम सुरू कीन तेइन। अवधी क बारै म लोगन क बतावै खातिर अब अगिले साल बंबईहिम पहिला विश्व अवधी सम्मेलन होए जा रहा।
सब लोग इकट्टा भे तो सबते पहिले इ बात पर गुस्सा दिखाएन कि ससुर तमाम हिंदी सलीमा त लइके टीवी सीरियलन म डॉयलाग लिखे अवधी म जाति हैं औ कहा जाति है कि भोजपुरी आए। ऑस्कर तक जा पहुंची आमिर खान केरी लगान म तो अपने लखनई क्यार के.पी. चच्चै संवाद लिखे तेइन। आमिर खानौ क्या पुरिखा हरदोई क रहैया बताए जात अहै। उनकौ अवधी भाषा केरे पुनर्जागरण म सामिल कीन जाएक चही। लोगन यहौ कहेन कि लखनऊ केरि मसहूर गायिका मालिनी अवस्थी गउतीं कजरी, सोहर सब अवधी म हैं लेकिन सरकारन त पइसा भोजपुरी क नाम प लेती अहैं। सम्मेलन म मांग कीन्हि गै कि लोकभाषन क नाम प आम जनता क पइसा लुटावै वाली सरकारै पहिले तो भोजपुरी क नाम प अवधी क ब्याचब बंद करैं। प्रवासी संसार क्यार संपादक राकेश पांडे एहिकै खातिर एकु अभियान सुरू करै कि वकालत कीहिन। अवधी क सामने मौजूद चुनौतिन क बारे बंबई यूनिवर्सटी म हिंदी क एचओडी रहे डॉ. रामजी तिवारी कहेन कि अवधी क बोली क बजाय भाषा कहैक चही। काहेक या बात तो तुलसीदास सालन पहिले कहि दीन तैइन। अवधी अकादमी चलावै वाले जगदीश पीयूष यहि मौका पर पहले विश्व अवधी सम्मेलन क्यार अध्यक्ष दोपहर का सामना क संपादक प्रेम शुक्ल कइहां बनावै क प्रस्ताव कीहिन, जहिका सबै लोग मंजूर कई दीन्हेनि।
अवध ज्योति क संपादक डॉ. राम बहादुर मिश्र क कहब रहै कि अवधी म गद्य आजुकाल्हि कम लिखा जाए रहा। अवधी विकास संस्थान क अध्यक्ष विनोद मिश्र कहेनि कि अवधी कबहूं बिलाय नाईं सकत। उई बताएन कि आजु काल्हि सगरै चैनलन पर कौन न कौनो सीरियल म कौन न कौन किरदार अवधी म ब्वालत जरूर दिखाई परति है। नवनीत क्यार संपादक रहि चुके गिरिजा शंकर त्रिवेदी कहेनि अवधी क ब्वालब बहुत जरूरी अहै। सब पंचन क अपने अपने घर मा लरिका बच्चन त दिन मा याक आधी दांय अवधी म जरूब ब्वालब चही। हमरे हिसाब त अवधी क साहित्य इंटरनेट पर लावब बहुत जरूरी अहै। अवधी क इ सम्मेलन क्यार संयोजक राजेश विक्रांत औरिउ तमाम बातै अवधी प्रेमिन क एकजुट करै क खातिर बताएन।
बतावा गा कि एहिते पहिलेहौ एकु अवधी सम्मेलन अखिल भारतीय स्तर पर हुई चुका अहै। यू दूसर रहै। लखनऊ, बाराबंकी, उन्नाव, हरदोई, अमेठी त लइकै बनारस तक के लोग जुटे। सायद 1976 म अमेठी क्या जगदीश पीयूष अपने हियन बनी मलिक मोहम्मद जायसी केरि मजार त अइसै कुछ काम सुरू कीन तेइन। अवधी क बारै म लोगन क बतावै खातिर अब अगिले साल बंबईहिम पहिला विश्व अवधी सम्मेलन होए जा रहा।
सब लोग इकट्टा भे तो सबते पहिले इ बात पर गुस्सा दिखाएन कि ससुर तमाम हिंदी सलीमा त लइके टीवी सीरियलन म डॉयलाग लिखे अवधी म जाति हैं औ कहा जाति है कि भोजपुरी आए। ऑस्कर तक जा पहुंची आमिर खान केरी लगान म तो अपने लखनई क्यार के.पी. चच्चै संवाद लिखे तेइन। आमिर खानौ क्या पुरिखा हरदोई क रहैया बताए जात अहै। उनकौ अवधी भाषा केरे पुनर्जागरण म सामिल कीन जाएक चही। लोगन यहौ कहेन कि लखनऊ केरि मसहूर गायिका मालिनी अवस्थी गउतीं कजरी, सोहर सब अवधी म हैं लेकिन सरकारन त पइसा भोजपुरी क नाम प लेती अहैं। सम्मेलन म मांग कीन्हि गै कि लोकभाषन क नाम प आम जनता क पइसा लुटावै वाली सरकारै पहिले तो भोजपुरी क नाम प अवधी क ब्याचब बंद करैं। प्रवासी संसार क्यार संपादक राकेश पांडे एहिकै खातिर एकु अभियान सुरू करै कि वकालत कीहिन। अवधी क सामने मौजूद चुनौतिन क बारे बंबई यूनिवर्सटी म हिंदी क एचओडी रहे डॉ. रामजी तिवारी कहेन कि अवधी क बोली क बजाय भाषा कहैक चही। काहेक या बात तो तुलसीदास सालन पहिले कहि दीन तैइन। अवधी अकादमी चलावै वाले जगदीश पीयूष यहि मौका पर पहले विश्व अवधी सम्मेलन क्यार अध्यक्ष दोपहर का सामना क संपादक प्रेम शुक्ल कइहां बनावै क प्रस्ताव कीहिन, जहिका सबै लोग मंजूर कई दीन्हेनि।
अवध ज्योति क संपादक डॉ. राम बहादुर मिश्र क कहब रहै कि अवधी म गद्य आजुकाल्हि कम लिखा जाए रहा। अवधी विकास संस्थान क अध्यक्ष विनोद मिश्र कहेनि कि अवधी कबहूं बिलाय नाईं सकत। उई बताएन कि आजु काल्हि सगरै चैनलन पर कौन न कौनो सीरियल म कौन न कौन किरदार अवधी म ब्वालत जरूर दिखाई परति है। नवनीत क्यार संपादक रहि चुके गिरिजा शंकर त्रिवेदी कहेनि अवधी क ब्वालब बहुत जरूरी अहै। सब पंचन क अपने अपने घर मा लरिका बच्चन त दिन मा याक आधी दांय अवधी म जरूब ब्वालब चही। हमरे हिसाब त अवधी क साहित्य इंटरनेट पर लावब बहुत जरूरी अहै। अवधी क इ सम्मेलन क्यार संयोजक राजेश विक्रांत औरिउ तमाम बातै अवधी प्रेमिन क एकजुट करै क खातिर बताएन।
Subscribe to:
Posts (Atom)