Thursday, January 08, 2009

यह छीछाल्यादरि द्याखौ तो...

आजु हम पंडित चंद्र भूषण त्रिवेदी उर्फ रमई काका केरि याक कविता लाए हन। रमई काका रहइया उन्नाव क्यार रहइया रहैं अउर बैसवारी अवधी म बहुत कुछ लिखेन। उनक्यार लिखा प्रहसन “बहिरे बाबा” आकाशवाणी लखनऊ के सबते मसहूर कार्यक्रमन म माना जाति है। रमई काका केरे बारे में विस्तार म जल्दी ही लिखब, तेहिले पढ़ौ उन केरि लिखी हास्य कविता – यह छीछाल्यादरि द्याखौ तो। यह कविता रमई काका केरि कवितन के संकलन “बौछार” तेरे लीनि गइ है, जेहिकार प्रकासन पहली दांय 1944 म भा रहे। तब एहिकेरि भूमिका मसहूर साहित्यकार राम विलास शर्मा लिखी तेइन।

लरिकउनु बी ए पास किहिनि, पुतहु का बैरू ककहरा ते।
वह करिया अच्छरू भैंसि कहं, यह छीछाल्यादरि द्याखौ तो।

दिनु राति बिलइती बोली मां, उइ गिटपिट गिटपिट बोलि रहे।
बहुरेवा सुनि सुनि सिटपिटाति, यह छीछाल्यादरि द्याखौ तो।

लरिकऊ कहेनि वाटर दइदे, बहुरेवा पाथर लइ आई।
यतने मा मचिगा भगमच्छरू, यह छीछाल्यादरि द्याखौ तो।

उन अंगरेजी मां फूल कहा, वह गरगु होइगे फूलि फूलि।
उन डेमफूल कह डांटि लीनि, यह छीछाल्यादरि द्याखौ तो।

बनिया भोजन तब थरिया ता, उन लाय धरे छुरी कांटा।
डरि भागि बहुरिया चउका ते, यह छीछाल्यादरि द्याखौ तो।

लरिकऊ चलै असनान करै, तब साबुन का उन सोप कहा।
बहुरेवा लइकै सूप चली, यह छीछाल्यादरि द्याखौ तो।