Thursday, December 03, 2009

अवधी उपन्यास - क़ासिद (3)

दादी केरे लोटा के पानी क धार पर टिल्लू क्यार कान लाग हैं। जैसे हे पानी खत्म भा टिल्लू तुरतै छति के याक कोना म टोकरी म धरे पटाखा क्यार बरसाती हटावन लाग, जेहिते यू जानि परे कि पटाखन कइहां धूप दिखावे खातिर इ ऊपर आए हैं। दादी कनखिन तेरे इ लरिकवा केरि हर हरकत पर नज़र रखे हैं। पानी देक बाद तुलिसिन की पुरानी पत्ति ट्वारित भै उई बोलीं, अरे अबै त सूरज उदय भा है, औ तुम आ ग्यो पटाखा सुखावै। अरे दोपहर म हम धर देबे। हर साल तुम दीवारी क्यार पटाखा बचा क धरत हो औ फिर कबहूं तेंदुलकर केरे छक्का पर तो कबहूं का नाम वहिका….उ लंबे बाल वाला..इशांत सरमाटिल्लू खट्ट त बोले। हां, वहै जेहिक विकेट ले पर तुम पटाखा फ्वारत हौ।दादी केरि आवाज म तनिक तल्खी जानि परी। टिल्लु कहै लाग, अरे दादी, ज़हीर औ इरफानौ तो बढ़िया ख्यालत हैं। पिछली दांय तो सगरे आलू बम ज़हीर खानै क चक्कर म खत्म हुइगै रहैं।

दादी अब तुलसिन के गमल म परे पत्थर साफि कर रहि हैं। जहां जहां दादी तीर्थाटन करै जाती है, हुअन कि हर नद्दी तेरे उई पत्थर लावब नाईं भूलतिं। ज़हीर और इरफान क्यार नाम सुनिके दादी क नीक नाईं लाग। उनक्यार चेहरा बताए रहा कि अपने पोता कि या बतकही उनकी ठीक नाईं लागि। पत्थरन पर चंदन का टीका लगावत लगावत बोलीं, हां, हां ठीक आए, बड़ा आवा ज़हीर औ इरफ़ान वाला..। यू तुम जौन हियां हुआं ड्वालत फिरत हौ ना। आवै देव तुम्हरे बाप का आजु। उनहुन क्यार कान खींचित है। कुच्छौ नाई सिखावत उइ तुमका दुनियादारी। दादी क रुख देखि क टिल्लू पहिले हे पटाखा कि टोकरी तेरे दूर हुइके ख्यालन लाग। ह्यौने परे याक अखबार की नाव बनावन लाग और साथै गानौ गा रहे, नाव कागज़ की गहरा है पानी, दुनियादारी पड़ेगी निभानी..। पाछे रेलिंग छ्वार तेरे गर्दा दिखाऊ परनि लागि। जानौ मेहतर गली म झाड़ू लगा रहा। दादी पत्थर पर चंदन लगावब छोड़ि क उई छ्वार लपकीं, अरे भैया आराम ते झाड़ू लगाओ..पूरी गर्दा घर मा कीन्हे दे रह्यो।

एहि बीच म गली के उई छ्वार वाले घर का फाटक खुला। दरवाजा तेरे आयशा बुर्का पहनि के निकरीं। चाल म बहुतै सावधानी जानि परति है। हाथ म एकु खाली झ्वारा है। ऐसी वइसी निहारित आयशा गली म लागि रही झाड़ू कि धूल बचावति आगे बढ़ीं। बाज़ारौ म दूसर ज़मादार झाड़ू लगा रहा। दुकानदारौन केरि हलचल शुरू होइगै है। परचून वाला दुकान क बाहर धरीं बोरिया झरिहाय रहा। चूड़ी वाला चूड़िन क्यार सेट करीने त लगाए रहा। हलवाई कि दुकान पर कारीगर कढ़ाही तेरे गरम गरम जलेबियां निकाल क चाशनी म भिगो रहा। वैसी बिसातखाने कि दुकान प स्कूल केरि यूनीफ़ॉर्म पहने कइवु बिटेवा ठाढी हैं। तमाम और लरिकवा स्कूल कि यूनीफॉर्म पहिरे इ दुकान के नेरे ते निकर रहे। इ लरिकवा झाड़ू वाले क तीर त बचिक निकरति हैं। चारिउ तरफ धूलै धूल दिखाई पर रही।

टिल्लू छत ते नीचे उतरि आए हैं। उई तख्त पर धरी अपनि कच्छी उठावति हैं, तौलिया अब्यौ उइ लेपेटे हैं। पूरी कोसिस कइ रहे कि बिना तौलिया निकरे इ कच्छी पहनि लें औ कमर के नीचे क तनिकौ हिस्सा खुलन ना पावै। बड़ी मेहनत कीन्हेनि बिचरउ तब जायक कच्छी पहनि पाए, अब उइ बाकी कपड़ा पहनि रहे। खोपड़ी म सरसों का तेल लगाएन फिरि अपने हे हाथे बालन म कंघी कीन्हेनि। इत्ते म दादी आए गईं, लरिकवा का उठाक तख्त पर धरि दीन्हेंनि औ जूता क्यार फीता बांधन लागीं। हाथ धोक दादी फिरि ते रसोईघऱ मा चली गईं तो टिल्लू जल्दी जल्दी बस्ता म किताबे भरन लाग। अरे हिंदी क किताब कहां चली गै।टिल्लू क्यार किताब नाई मिलि रही तो उई अधीर होन लाग। दादी अपने पोता केरि परेसानी सुनेनि तो रसोईघरेत आवाज़ लगाएन, अरे ह्वानै द्याखौ, तख्तै प होई। रात म पढ़ति पढ़ति सो गे रहो तुम।

टिल्लू फिर ते तख्त पर धरा सामान खंगारन लाग। तख्त के दूसरी छ्वार याक चद्दर केरे नीचे धरी किताब मिलि गै। किताब राति त वैसे ही खुली परी है। तख्त प करीब करीब लेटिक टिल्लू किताब उठाएन। तैमूर लंग वाला पाठ किताब खुला परा है। टिल्लू की नज़र तैमूर लंग औ वीर बालक केरि फोटो पर गै। उन क्यार चेहरा क्यार रंगु बदला। तनिक द्यार ऐसी वैसी देखिन फिर एकु डॉयलॉग तुरंतै जड़ि दीन्हेनि, मेरी चाकू में भी बहुत धार है। दादी रसोईघरै तेरे अपने पोता केरि बाल सुलभ हरकत देखि रहीं। उनके चेहरा पर तनिक द्यार खातिर मुस्कान दिखाई परी। लेकिन, तुरंतै उई अपनी बुजुर्गियत ओढ़ि लीन्हैनि, अरे लरिवका। द्यार हुइ जाई तुमका। तुम्हार पिताजी तो अब लगै कॉलेज पहुंचिहु गे हुइहैं। जल्दी जाओ। औ हां हिंदुआनेह त हुइकै जाएय्ओ। हम सब जानित है। पहलि तो तुम का घंटन लागत है तैयार होएम। औ फिर जल्दी खातिर तुम निखरि भागत हौ इ मुसल्लन की बस्ती तेरे।टिल्लू कइहां सायद दादी कि या बात नीक नाईं लाग। उई चेहरा बिगारेन। लेकिन तुरतै अपन चेहरा ठीक कीन्हेनि, लपकि कै दादी केरे हाथ तेरे टिफिन लीन्हेनि औ गेट घाईं दौरि परे। दादी पीछे पीछे भुनभुनाति रहीं, इ लरिका क ना जाने इ फकीरन त एत्ती मोहब्बत काहे है?”

टिल्लू बाहर निकरि आए। अब इ गेट पर ठाढ हैं। पहिले इ दहिने देखिन। वैसी तमाम मेहरिया पियरि ओढ़े खोपड़ी प माटी क गगरि धरे चली जाए रहीं। पूरा रास्ता इ मेहरिया छेके हैं। टिल्लू तनुक परेसान भे। माथे पर ते पसीना पोंछेन फिर बाईं तरफ द्याखन लाग। तनिक दूरि पर टाल पर बैठ अमीर हसन हुक्का गुड़गुड़ा रहे। सफेद कुर्ता औ नीले रंग केरि चौखाने वाली लुंगी पहिने बैठ अमीर हसन केरे चेहरा तेरे ज़िंदगी क्यार सबक साफ साफ दिखाई देति हैं। लंबी सफेद दाढ़ी औ माथे प सजदा क्यार निशान। टिल्लू लगातार अमीर हसन केरि तरफ देखि रहे। का बचुआ? आज फिर देर हुइगै स्कूल खातिर।अमीर हसन जानौ लरिकवा केरि मंसा ताड़ि लीन्हेनि। टिल्लू त जानौ याहै सुनबै चाहत रहै, खट्ट त फरियाद निकरि परि, चच्चा, इ छ्वार तेरे निकरि जाइ का?” “जल्दी ते। नहिं तो दादी छत पर अवइयै हैं।

अमीर हसन अपनि बात पूरी कई पउतिं वहिते पहिलेहे टिल्लू अपन बैग संभारेन, पीछे मुड़िकै याक दांय गेट कि दरार तेरे झांकेन। दादी भीतर तख्त पर बिखरा परा सामान उठावति दिखाई परीं। टिल्लू दाएं मुड़े और पूरी रफ्तार त भागत भै मुसलमानन केरे मोहल्ला वाली गली म गायब हुइगे।

(जारी...)

2 comments:

Amrendra Nath Tripathi said...

भैया !
अब तक तौ हमै प्रेम कहानी कै ढांचा बुनत
जनात रहा मुला अब तौ सीरियसनेस कै दरसन
हुवै लाग ... ई हमरे माहौल कै आबो-बयार हमैं ई
सोचै पर बिबस करत है अउर पुछुवावत है --- '' चच्चा, इ
छ्वार तेरे निकरि जाइ का '' नाहीं तौ चचा का
कौन अकाज ...
भैया ई फ़िल्मी टेक्नीक कै बढ़िया सहारा लियत अहौ ...
हम जैसे निगोड़े का कुछ फिलिम - सास्त्र कै ग्यान कराइ देबो ,
तबौ बहुत होइ जाये ..................
सुक्रिया ...........

Unknown said...

अमरेंद्र भैया, साचीं पूछौ तौ या याक फिल्मे क्यार पटकथा आए, जौनि हम आजुकाल्हि लिखि रहे हन। पटकथा तो हम हिंदी म लिखि रहेन, लेकिन सोव्चा कि काहे ना एहिका पहिले उपन्यास के तौर पर लिखा जाए वाहौ अवधी मा। तो एक तीर त दुई निसाना लागि रहे। एहि क्यार कथानक हम कड़ी म चौंकावे वाला है, कौनो प्रकाशक मित्र होए तो बताएओ। औ पढ़ति ज़रूर रह्यौ। बाकी पढइया तो जानो बिलाइ गे, कौन टीका टिप्पणी करतै नाई। का एहिके ख़ातिर दूसरे के लिखे पर टिपियाउब ज़रूरी है?