
स्कूल म दूसर घंटी बाजे के बाद सब लरिकवा औ मास्टर मैदान म एकट्ठा भे। पहिले प्रार्थना भै फिर राष्ट्रीय गान। प्रार्थना खत्म होए क बाद सब लरिकवा अपनी अपनी क्लासन म जा रहे। टिल्लू क साथै तीन चार लरिकवा औरउ है। टिल्लू का वंदे मातरम बहुत नीक लागत है। उइ अब्यौ गुनगुनाए रहे – सुजलाम सुफलाम। तबहिनै टिल्लू क पाछे पाछे आवत लरिकवा टिल्लू क ट्वाकति है, “यार यू गाना जब स्कूल म गावा जाति है तो हम पंचे तो चुप्पै ठाढ़ रहिति।“ टिल्लू क या बात सायद पहली बार पता चली। हुइ सकत लाइन म ठाढ़े रहै कि वजह तेरे कबहू इ बात पर इ गौर नाई कीन्हेनि। मुला आज या बात जैसे ही इनका पता चली, टिल्लू चौंके, “काहे? रफ़ीक?”
घर मा सब अपन अपन काम निपटा रहे। दादी रसोई त बाहर निकरीं औ हाथ धोक तख्त पर आराम करन लागीं। नाउन दाईं आंगन म पोंछा लगा रहीं औ कल्लू घर केरे कीमती फर्नीचर पर ते गर्दा साफ करि रहे।
गली क उइ छ्वार अमीर हसन अपने लकड़ी क टाल पर दुई चारि बुजुर्ग मौलविन के साथै कौनिउ बात म मशगूल हैं। एकु मौलवी शुक्लाजी की अटारी पर लाग लाल झंडा तन उंगरी करति है। हवा आजु तनुक तेज़ चलति है। तूल क्यार झंडा हवा म पूरी रफ्तार त लहरा रहा।
स्कूल क बाहर बिल्कुल सन्नाटा है। दुई चार रिक्सा वाले अपन अपन रिक्सा लाइन त लगाए रहे। कुछ मेहरिया और बुजुर्ग लोग गेट पर इकट्ठा हुई रहे। स्कूल क भीतरौ बिल्कुल सन्नाटा जानि परत है। अलग अलग क्लासन मइहां मास्टर लरिकवन क पढ़ा रहे हैं। तबहिनै स्कूल की घंटी बाजति है। छुट्टी कि घंटी। लरिकवा क्लासन त भर्रु मारिक क भागति हैं। कौन क कोई बात केरि फुर्सत नाईं। जूनियर सेक्सन क्यार लरिकवा तो ऐसे भाग जानौ जेल क फाटक खुलिगा होए। स्कूल त लइकै बाज़ार तक लरिकवै दिखाई परि रहे।
लकड़ी की टाल पर मौलविन की बातचीत औ कानाफूसी जारी है। टाल क सामने वाली यानी हिंदुआने तरफ केरि गली तेरे शुक्लाजी आवत दिखाई पर रहे। अपने अपने दुआरे बैठ लोग उनका नमस्ते करत हैं। याक दुई लरिकवा चौतरा परे ते उतरि क उनके पाएं छुई रहे। टाल पर बैठे मौलविन केरिउ नज़र शुक्लाजी पर परति है, उइ हुअन त उठिकै जान लाग। शुक्लाजी अपनी हवेली के गेट तक पहुंचे तो जैसे आदतन उन केरि नज़र याक दांय टाल तन चली गै। शुक्लाजी केरि नज़रें अमीर हसन त मिलीं। दून्हौ याक दूसरे क देखेन। अमीर हसन क चेहरा पर कौनौ भाव नाईं आवा। बस दून्हन की नज़रे याक दूसरे त टकराईं। जानौ मसीन क्यार पुर्जा होएं, ऐसिहि जुंबिश भै औ दून्हन क्यार हाथ याकै साथ ऊपर उठे। शुक्लाजी केरे मुंह ते निकरा – नमस्ते। अमीर हसन बुदबुदान – सलाम अलैकुम। शुक्लाजी हवेली क गेट खोलिक भीतर दाखिल हुइगे।
(जारी...)
3 comments:
भैया !
अच्छी पठनीयता बनति अहै.कहानी से केतनी बड़ी बात आप
कहत अहैं यहिका हम बखूबी जानत अहन. सांप्रदायिक-भावना
कैसे बच्चा के अन्दर पैठि बनावत है , यहिके लिए का सुन्दर विधान
बनायौ है !
अगर फिलिम बने के बादि हमैं न देखायौ तौ तुहिन का कोसब .
जेसस हम पढित अहन , वसस दिमाग मा चित्र चलत अहै. हमार सौभाग्य
है कि एतनी सुन्दर रचना पढ़त अहन .
आगे कै इंतिजार करत अहन... ...
ग़ज़ब है सच को सच कहते नहीं वो
कुरोनो - उपनिषद खोले हुए हैं
धन्यवाद अमरेंद्र और शिरीष भाई। ऐसेहे स्नेह बनाए रह्यो। ई कहानी पर फिलिम बनावै कि तमन्ना है द्याखौ कब संयोग बनै।
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