
कुबेरि बेरिया गांवन म वौ बखत होति है जब घरन के बाहर गोरु हरहा पहुंचन लागति हैं। जिनके घर मा लालटेन है उई लालटेन क सीसा साफ करैम औ मिट्टी का तेल चेक करन लागत हैं औ जिनके घर मां कुप्पी है उ अपनि अपनि कुप्पिन केरि बाती क्यार ल्यांड़ा झरिहा क कुप्पी जला देति हैं। येई बेरिया जादातर घरन म चूल्हा जलन लागत हैं जिन क्यार धुंआ गांव केरि कोलियन म महकनौ लागत है और आंखिन म करुवानौ लागत है। लोग अपने घरन तन चल परि हैं, लेकिन टिल्लू गांव क याक छ्वार पर बने मैदान याक बेरवा क तरे बैठ हैं। उन क्यार साथी संगी खेलि रहे लेकिन टिल्लू दूसरी छ्वार मुंह कीन्हे बैठि हैं। उनका अइसे बैठे द्यार हुइगै तौ लरिकवा टिल्लू के नेरे आ गे।
“अरे अइसे नई दुल्हिनि कि नांय मूं छुपाए काहै बैठ हौ टिल्लू?”
लरिकवा आक टिल्लू तेरे चुहल करन लाग। याक लरिकवा क ऊ गाना याद आवन लाग जेहिके बारे में लोग कहत है कि यू गायक के एल सहगल कि नांय नाक ते गावति है। ऊ अपन सुर साधेसि।
“झलक दिखला जा...”
टिल्लू धीरे त पलटे औ तब सब लरिकन क जानि परा कि काहे टिल्लू उनकी तन पीठि कीन्हे बैठ रहैं। उनके हाथ म याक अखबार म लिपटे दुई खजूर लरिकवन क दिखाई परे। जेहिमत याक खजूर टिल्लू मुंह म धरेन और दूसरि कसि क हाथे म पकरि लीन्हेनि।
“अरे कुछौ नाईं भाईजान। बस खजूर खा रहे रहन।“
लरिकवन क मुंह ते लार असि टपकनि लाग। लेकिन अब याक खजूर क मारे को दंगा करै। सबते बड़ा लरिकवा बस एत्तै कहि पावा, “भाइन ते दगा? अकेले अकेले खजूर?” कहे क साथे यू लरिकवा टिल्लू क हाथे ते कागज और खजूर क पन्नी लइकै अइसी वइसी पलटन लाग। तबहिनै वहिका पन्नी पर कुछ छपा भा समझि म आवा।
“हूं...पैक्ड इन दुबई..बचुआ तुम्हरे घर ते तो कौनौ दुबई गा नाईं, फिर इ खजूर?”
टिल्लू क चेहरा एकदम त बदलि गा। इनका लाग कि चोरी पकरि गै। लेकिन, साथी संगिन त कौनु डर औ इनते का छिपावै क। टिल्लू साफ साफ बता दीन्हेनि।
“अरे आयशा दीन्ह हइन।“
टिल्लू क मुंह त आयशा का नांव क निकरा जैसै कौनौ बम फाट होए। सब लरिका याक साथ चिल्लान।
“आयशा?”
“ओ त्तेरे की.? तुम्हारि दोस्ती हुइगै वहितै? औ हम पंचन क कानों कान सूंघ तक नाई मिलीं। अरे वह तौ हूर परी है!!”
टिल्लू मुस्कान। उनका लाग कि बाजी अबै उनके हाथे त निकली नाई है। लरिकवा जौने जोश त आयशा का नाम सुनिकै पगलान वहितै टिल्लू क मन का बड़ा खुसी भै। उनका लाग जैसे उइ जगु जीति लीन्हेनि औ इस सब लरिकवा सार इन तो मीलन पीछे रहिगै। टिल्लू याक औरि सुरसुरी छोड़ेन।
“औ का नाचति है आयशा...”.
अबकि कौन्यो लरिका केरे गरे त आवाज नाई निकरी। सब सनाका। सब याक दूसरे क मुंह ताकि रहे। सबके मन मा बस यहै बात कि पंडितन क्यार यू लरिकवा तो बहुतै तेज निखरा। यकीन तो सबका हुइगा कि टिल्लू जौनि बात कहि रहे वा सोलहौ आना सही है। लेकिन तबहूं...
“कसम ति….” एकु लरिकवा क मन मा तस्दीक करै क इच्छा जागि परी।
टिल्लू तुरतै कसम खा लीन्हेनि। सांच क कौनि आंच।
फिर दूसर सवाल।
“तुम कब देख्यौ।“
“अरे भइया। हमरी छति ते दिखाई परति है। आय़शा रोज़ सबेरे रियाज़ करती हैं और हमरी छत ते उन क्यार आंगन साफ दिखाई परति है।“
सब लरिकवन क अबकी सच्ची म लाग कि टिल्लू जगु जीति लीन्हेनि औ इ पंचे बस गिल्ली डंडै ख्यालति रहिगै। सब याक दूसरे क हारे भै योद्धान कि नाई देखि रहै। सुट्टू क चेहरा तो ऐसे उतरि गा जइसे टिल्लू उन क्यार सब कंचा याके दांव म जीते लीन होएन। मन मसोसि क रहिगै कल्लू, “तुम्हारि तो निकरि परी टिल्लू यार। ...अच्छा हमका दिखा सकति हौ आयशा क्यार रियाज़?” सुट्टू अइसे पूछेनि जैसे कहि रहे होए कि भैया पतवार तो तुम्हरे है हाथ म रही अब, बस एहिके पहिले क हम किनारे पर छूटि जाइ, नांव म चढ़ा लेओ।
टिल्लू क मुंह ते निकरहै वाला रहे कि काहे नाई भाईजान तुम्हू आ जाओ कल्हि सबेरे। लेकिन फिर उनका दादी क्यार चेहरा यादि आगा। पांय क अंगूठा त मिट्टी कुरेदति भै बोले, ना भाईजान। आप कइसे देखि पइहौ। आप तौ मुसलमान हौ। औ दादी कबहूं याक मुसलमान क अपनी अटारी पर चढ़ै खातिर हां ना कहिहैं।“
सुट्टू बात समझि गै। लेकिन दूसर लरिकवा जौन अब सुट्टू त उमरि म कम हैं, उई पूछि बैठि, “यू हिंदू मुस्लिम क झगड़ा का है भाईजान?” सुट्टू क मुंह पहिलेहे त उतरा रहै, यू सवाल सुनि कै ऊई दूसरि घांई द्याखन लाग। टिल्लू क्यारौ चेहरा अबकि उतरि गा कि इ चाहैं तोऊ अपने साथिन क अपनी छति पर नाई लै जा सकत। टिल्लू क लाग कि उनके आंसू निकरि अइहैं, सो उइ उठि कै घर तन चलि दीन्हेनि। सब लरिकवौ पीछे पीछे अपने अपने घरन तन चलि दीन्हेनि। सुट्टू अबै लगे आसमान तन ताकि रहे रहैं एकदम त उनका लाग कि सब लरिकव म उई सबते बड़े हैं तौ उई दौरि क एकदम त टिल्लू क तीर पहुंचे औ उनके कंधा पर हाथ धरि दीन्हेनि।
“अरे, तुम काहे परेसान होत है टिल्लू। हम पंचै जब बड़े होब तब यू सब झगड़ा झंझट खतम कर देबे। तब तौ तुम आवै द्याहौ न हमका अपनी छति पर।“ कहिकै सुट्टू टिल्लू केरि पीठ पर धौल जमाएन। टिल्लू क लाग जइसै उनके करेजे पर ते बोझु उतरि गा होए। उई सुट्टू तेरे हाथ मिलाएन, दून्हू दोस्त गले मिलै लाग। टिल्लू सुट्टू केरे गले लाग तो सामने त दादी मंदिर तन ते आवति दिखाई परीं। हाथे म पूजा की थाली और साड़ी क पल्ला खोपड़ी पर। तबहीं दूर गांव की मस्जिद तेरे अजान की आवाज़ सुनाई परनि लागि...अल्लाहो अकबर अल्ला...हो अकबर।
टिल्लू दौरि क दादी तीर पहुंचे, लेकिन एहिके पहिले टिल्लू दादी तेरे लिपटि पावें, ऊई हाथे त दूर रहै क्यार इशारा करन लागीं। टिल्लू समझि गै कि दादी उनका सुट्टू केरे गले लागत देखि लीन्ह हइन। बेचरेऊ चुप्पै दादी त थोरी दूर पर साथै साथ चलन लाग। दादी पूजा केरे लोटा तेरे जल लीन्हेनि औ टिल्लू पर छिरकन लागीं।
“ओम अपवित्रा वा पवित्रो वा सर्वांगतोपि वा।
या स्मरेत पुण्डरीकाक्ष स बाह्याभ्यंतर: शुचि:।।“
दादी औ टिल्लू घर तन बढ़ति जा रहे। दूर अपनी छत पर ढाढ़ शुक्लाजी यो सब देखि रहै। उनका बीते दिनन केरि बातैं यादि आवन लगती हैं।
(जारी...)
3 comments:
पंकज भाई,
लोहड़ी और मकर संक्रांति की बहुत बहुत बधाई...
जय हिंद...
खुशदीप भाई आपको भी पर्व की बधाइयां।
सुकुल जी !
नयी पीढी माँ साम्प्रदायिकता कैसे घुसति/भिड़ति/चुकति अहै , यहिका रखेव , अच्छा लाग , आभार ,,,
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