Friday, November 14, 2008

...पर ज़बां हो दिल की रफ़ीक


(हसरत मोहानी - १)

- पंकज शुक्ल

यह बात तबकेरि आय जब हम पत्रकारिता केरि पढ़ाई कर रहेन रहै। तब दैनिक जागरण, कानपुर क्यार याकै पत्रकार और कवि हम पंचन का पत्रकारिता पढ़ावै आवत रहैं। उन तेरे हम याक दिन ऐसे हे पूछ दीनि कि पंडित जी यौ बताओ, डायरेक्टर बी आर चोपड़ा केरी पिच्चर निक़ाह मइहा गुलाम अली केरि जौनि गजल– चुपके चुपके रात दिन आंसू बहाना याद है- बहुत हिट भै रहै, वहिके लिखे वालै को हैं। पंडित जी खट्ट त बोले- हसरत मोहानी। हम कहा – उई कहां के रहै वाले रहैं। पंडित जी बोले- पाकिस्तान। हम कहा गलत। ऊ रहइया रहै उन्नाव क्यार। उनकी आंखी क दीदा फइल गा। कहै लाग का कहत हौ पंकज। हम कहां हां। पहिले तो या बात हमहूं का मालूम ना रहै। लेकिन याक दांय हम लखनऊ त स्कूटर त आवै खातिर बजाय बंथरा बनी नवाबगंज होइके आवैक, कउनिउ दूसरिहि रस्ता पकड़ि लीनि। यह रस्ता मोहान त होइके निकरति रहै। मोहान मइहां याक जगह हम पानी पियेक खातिर एकु हैंड पंप देखि के रुकेन, तो दीखि कि हुअन एकु पत्थर लाग है। पत्थर म लिखा रहै कि मशहूर स्वतंत्रता सेनानी हसरत मोहानी सन 1875 म ह्ययानै पैदा भे रहैं। एहि के बादि हसरत मोहानी पर हम जित्ता पढ़ै क कोसिस करत गएन, उन केरे बारे में याक त याक जानकारी मिलति गै। सायर तो खैर उई मशहूर रहिबै कीनि, स्वतंत्रता सेनानी हू उइ नंबर याक क्यार रहै।

आज़ादी की लड़ाई म हसरत मोहानी बहुत मेहनत कीन्हैंनि। बेचरेऊ बहुत मारे गै और कई दांय जैले गए, लेकिन आज़ादी क बाद उनका ना तो कांग्रेसी याद राख्यैन और ना मुस्लिम लीग वाले। महात्मा गांधी तेरे बहुत साल पहिले हसरत मोहानी (असली नाम फ़ज़ल उल हसन) मुकम्मिल आज़ादी (पूर्ण स्वराज्य) केरि मांग कीनि तेइन। तब गांधी तो गांधी बल्कि अउरौ तमाम लोग हसरत मोहानी केरि खिल्ली उड़ाइ तेइन। या बात आय सन 1921 केरि अउर अहमदाबाद केरे कांग्रेस अधिवेशन मइहा हसरत मोहनी मुकम्मिल आज़ादी क्यार प्रस्ताव पेश कीनि तेइन। तब गांधी जी एहि क्यार ना केवल विरोध कीन्हेनि बल्कि कामनवेल्थ केरे भीतर हिंदुस्तान खातिर डोमीनियन स्टेटस केरि वकालतौ वोइ कीन्हि तेइन। वकालत तो खैर गांधी जी बहुत पढ़ी तेइन, लेकिन जौइने टाइम म हसरत मोहानी अंग्रेजी हुकूमत केरे खिलाफ अपने अखबार उर्दू ए मुआल्ला मइहा लिखा करति रहै, बड़े बड़े कांग्रेसिहू अंग्रेजन केरि मुखालिफत करै तेरे डरत रहैं। मक्का, मथुरा अउर मास्को केरि लाइन पर चलै वाले हसरत मोहानी अगले साल यानी 1922-23 मइहा खिलाफत आंदोलन और असहयोग आंदोलन मइहा बढ़ि चढिकै हिस्सा लीन्हेनि। कांग्रेस तेरे उन क्यार रिश्ता 1929 मइहा नेहरू रिपोर्ट आवै क बाद टूट। कमै लोग जानत हुइहैं कि बादि म येई हसरत मोहानी कम्युनिस्ट पार्टी ऑफ इंडिया केरे पहिले सम्मेलन केरि नींव धरेन। अउर मुस्लिम लीगौ क्यार उई याक दांय अध्यक्ष बने। पार्टी बाज़ी तेरे उई चाहे जित्ता नाराज़ रहै होएं, लेकिन बंटवारा भा तो उइ फैसला कीन्हेन कि भारतै म रहब। संविधान बनावे वाली कमेटी म हसरत मोहानी हू सामिल रहैं। या बात अउर है कि बाद म उइ एहि पर दस्तखत करै त मना कइ दीन्हेनि।

जानकार लोग हसरत मोहानी केरि तुलना मशहूर रूसी लेखक गोर्की तेरे करत हैं। अउर मजे कि बात या है कि हरसत मोहानी केरि सोच जहां लेनिन तेरे बहुत प्रभावित रहै, ह्औने गोर्की केरे लेखन पर गांधी क्यार बहुत असर रहा। मोहानी और गोर्की दून्हों मुफलिसी क्यार खराब तेरे खराब दौर देखेन, लेकिन जउन बात इ लोग याक दांय मन मा ठानि लीन्हेनि, वेहि ते टस ते मस ना भे।

उनक्यार एकु शेर उनके बारे म सब कुछ साफ साफ कहि देति है-

हज़ार खौफ़ हों पर ज़बां हो दिल की रफ़ीक
यही रहा है अज़ल से कलंदरों का तरीक़..

(जारी...)