
खान चाचा के घर ते आवै वाले आलाप केरि आवाज़ पूरे मोहल्ला म गूंजि रही है। तबहिनै पांडे अखबार वाले दादी की छत पर अखबार फ्याकत हैं। दादी क्यार घरु ऐस है कि एहि कि छत तेरे आयशा केरे घर का आंगन साफ दिखाई परति है। पिछले महिना भै रामायण के टाइम लगावा गा तूल क्यार झंडा हवा म लहरा रहा। अइसन तमाम झंडा हिंदुआने म लोगन कि छतन पर लाग हैं। गली के उई छ्वार इक्का दुक्का घरन पर हरे रंग का झंडा लाग दिखाई परति हैं।
आसमान म लाली छावन लागि है। चिरैया, कौवा अपने अपने घोंसलन त निकरि क दाना बीनन उड़ि चले। अबै लगे बरामद म परे कसमसाए रहे लरिकउनू करवट लीन्हे परे हैं। तेहिले है गेट खुलैक आवाज़ आई। दादी दुआरे ते भीतर आय रहीं। गेट जैसे ही खड़का भीतर सोवत टिल्लू सड़ाका हुइगे। खट त खटिया प उठि के बैठि। दून्हू हाथ जोड़ेनि औ गदेरिया म आंखि गड़ाए पढन लागि - कराग्रे वसते लक्ष्मी, कर मध्ये सरस्वती। कर मूले स्थितो ब्रह्मा, प्रभाते कर दर्शनम।।
दादी अब लगे दालान लांघि केरे बरामदा तक आ चुकीं। उनके कानेन म अब्यो आयशा के कथक केरि रियाज और राग जोगिया म गाई जाय रही ठुमरी परि रही है। ‘या लौंडिया तो पुरे मोहल्ले का कोठा बना दीन्हेंसि। भोरहरे त रोज़ाना घुंघुरू लै के सुरू हुई जाती हैं। जीना हराम कर दीन्हेनि।‘ दादी बरबरावै लागीं। पूजा की थाली उइ किनारे धरि दीन्हेंनि औ टिल्लू की तरफ देखेनि। बारा त्यारा साल क्यार लरिकवा दादी के तेवर देखि सहमा तो खैर नाईं लेकिन वहि क्यार चेहरा बता रहा कि बेचरऊ की जान तोता कि नांय गरे म अटकी है। दादी टिल्लू क ऐसे देख्यात पाएनि तो कहै लागीं, ‘औ तुम का टुकुर टुकुर देखि रहैओ, जाओ नहा लेओ नहिंतो नल चला जाई।“ फतेहपुर चौरासी, लखनऊ औऱ कानपुर ज़िलन के बीच बसे उन्नाव जिला क्यार गांव है। हियन क रहइया लेकिन एहिका गांव कहेम इनसल्ट फील करत हैं। टाउन एरिया कहेम उनका जादा मज़ा आवति है। हियन की चैयरमैन कांग्रेस, निर्दलीय और सपा के बीच घूमा करति है। बस तारीफ क बात या है कि हियन चेयरमैन कौनो पार्टी क्यार बने, काम खूब भा है। गली गली म खडंजा लागि गा है। पानी की टंकी है, भले बत्ती आवै तबहि पानी आवे, लेकिन टंकी तो है ना गांव म।
दादी क तेवर देखि क टिल्लू चट्टी पहनि क सीधे नहावै खातिर गुसलखाने तक की दौड़ लगा दीन्हेंनि। गुसलखाने तेरे पानी गिरै कि आवाज़ आई रही। दादी बाहर तेरे चिल्ला रहीं, ‘कुल्ला दातून ठीक त कीन्ह्यो। फिर नहाएओ।‘ गुसलखाने म पानी की आवाज़ अब तेज हुइगै। साथै म टिल्लू की आवाज़ सुनाई परि रही, ‘ नमामि गंगे तव पादपंकजं, सुरासुरैर्वन्दितदिव्यरूपम् | भुक्तिं च मुक्तिं च ददासि नित्यं, भावानुसारेण सदा नराणाम् ||
लरिकव क गंगा मइया की स्तुति करति सुनि कै दादी के चेहरे पर संतोस आवा। उइ गुसलखाने तन देखेनि और फिर चलि दीन्हें छति पर। हाथे म वहै पूजा की थाली। लोटा म पानी याक दांय उई फिरि ते भरि लीन्हेनिन। दादी छत क्यार जीना चढ़ैं लागीं। एत्ति देर म टिल्लू नहाए चुके।
नहाक तौलिया लपेटे टिल्लू सीधे दौरे सीढ़िन की तरफ। और याकै सांस म छत पर पहुंचि हे। दादी छत के दूसरि तरफ चौकी बिछाए मंत्र जाप कर रहीं। हियन टिल्लू ठाढ हुइगै छत की रेलिंग क सहारे। सबेरे सबेरे बिना छत पर आए औ बिना आयशा क घर मा झांके इनक्यारो दिन पूर नाई होति है।
अपने आंगन म रियाज़ करत करत आयशा कि नज़र एकदमै त टिल्लू केरे घर की छत की तरफ गै। आयशा पसीना म लथपथ आहिं लेकिन उघारे उघारे ठाढ़ लरिकवा क देखि उनके होंठन पर मुस्कुराहट तैरि गै है। उइ मुस्कुराईं तौ लेकिन टिल्लू कि समझि म कुछ नाईं आवा। उई बिचरेउ छत पर ठाढ़े याहै स्वाचा करति कि पड़ोस मा या कौन परी आ गै। गलती इन्हुनि कि यानी टिल्लू हू कि नाई। पैदा भे तो इनके पिता जी यानी शुक्ला जी सहर मा नौकरि करति रहैं। औ जब उइ सहर कि नौकरी छांडि कि हियां फत्तेपुर मा अंग्रेजी के लेक्चरर भे, आयशा चली गईं सहर पढ़न। बीच म जाने कौनि मुसीबत आ परी कि आयशा का वापस गांव आवै क परा अपनी अम्मा कि देखभाल करै खातिर। टिल्लू की आंखी आयशा के कथक म लागि हैं। तबहीं दादी की आंखीं खुलीं। उ उठि कै ठाढ़ीं भईं और लोटा का जल सूरज के समहै कइके अर्घ दे लागीं। छत के उन कोना म खटक भै तो ऐसी ठाढ़ टिल्लू सनाका भे।
(जारी...)
3 comments:
अब थोरा - थोरा गेस लगावै लग अहन ...
अब कहानी भितरे-भीतर कुल्बुलाय लागि अहै ...
लगत है कि पहिला अवधी उपन्यास पढ़ब
बड़ा मजेदार साबित होये ...
इंतिजार मा....................
पढ़ रहे हैं...
वाह भैया अमरेंद्र, खूब कह्यौ। कहानी भितरे भीतर कुल्बुलाय लागि अहै। हां, कहानी का ख़ाका खिंचि रहा है। आजु आगे लिखब।
समीर भैया। पढ़त रह्यौ।
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