Friday, January 15, 2010

अवधी उपन्यास- क़ासिद (13)

शुक्लाजी अपने लरिका पर अपनी अम्मा क पानी छिड़कत देखेन त पानी केरि बूंदन त जइसे उन क्यार अतीत टपकन लाग। वा सामौ अइसिहि रहै। शुक्लाजी केरि छत पर तेरे तमाम टोली आवति दिखाई दे रही रहैं। जेत्ते लोग इ टोलिन म सामिल रहैं सब कि जबान पर याकै बात- जय श्री राम, जय श्री राम।

गांव क बाहर मंदिर त निकरी इ टोलिन म कम ते कम सौ डेढ़ सौ लोग रहैं। चहतीं तो इ लोग हिंदुआने की तरफ तेरे गांव में प्रवेस कइ सकत रहैं लेकिन इरादा पूजा क कम और दूसर जादा रहै। सब टोली मुसलमानी बस्तिन की तरफ रुख कइ लीन्हेनि। टोलिन केरे आगे चलै वाले लोग कमंडलन तेरे पानी की बूंदे आसपास गुजर रहे लोगन पर छिड़कति जा रहे।

मुसलमानी बस्ती तेरे टोली निकरीं तो मेहरिया अपने अपने लरिकन बच्चवन क घरन पर घसीटन लागीं। मुसलमानन क्यार किवाड़ खटाक खटाक बंद हुई रहै। याक आधी मजबूत दिल केरि मुसलमान मेहरिया किवाड़न की सांस त या फिर खिड़किन केरि दरार तेरे झांकि रहीं हैं। तबहिनै याक टोली शुक्लाजी की हवेली क सामने रुकि गै। इ छ्वार त हिंदुआने म घुसतै सबते पहिला घर शुक्लाजी क्यारै परति है। टोलिन म शामिल लोग और जोर जोर चिल्लान लाग – जय श्री राम, जय श्री राम।

सगरी टोली धीरे धीरे याक के पाछै याक शुक्लाजी की हवेली क समहै रुकन लागीं। पाछे अमीर हसन के टाल पर अब मुसलमानन केरि भीड़ लागन लागि है। लेकिन सब के सब मनई अहैं याकौ मेहरिया या लरिकवा नाईं। अमीर हसन टुकुर टुकुर शुक्लाजी की हवेली तन ताकि रहे। नेरेहे आयशा क अब्बा खान साहबौ ठाढ़ है।

शुक्ला जी धोती और कुर्ता पहिने घर ते निकरे। टोली क अगुआई कर रहे पांडे जी कमंडल त पानी लइके शुक्लाजी पर छिड़कन लाग। पाछे त निकरि कि दादी हू समहे आईं। दादी आचमन कीन्हेनि। थारी पर धरी शिलाएं पूजेन। धोती क खूंटे त निकारी क रुपया दीन्हेनि। एत्तेम टिल्लू हवेली त निकरि क बाहेर आगे। इ दादी क धोती पकरे नेरेहे ठाढ़ हैं। पांडेजी टिल्लू क देखि क मुस्करान। थारी त रोली लइके टिल्लू के माथे पर तिलक लगा दीन्हेनि। टिल्लू एत्ति भीड़ देखि क कुछ समझि नाई पाए। तिलक लगावा गा तो इ अपने पिताजी केरे नेरे ठाढ़ हुइगै। पाछे वाली टोली क्यार लोग दादी, शुक्लाजी और टिल्लू केरे ऊपर पानी छरकि रहे।

टिल्लू अइसिहि भीड़ थोरे दिन पहिले अमीर हसन क दुआरे दीखि तेइन। तब जानौ सुट्टू क अब्बा हज करै जा रहे रहै। समझिम तबहूं टिल्लू क जादा कुछ नाई आवा रहे। उनका बस यादि है तो एत्ता कि उन दिन सुट्टू गाना गा रहे रहै - मदीने वाले को मेरा सलाम कहना, मदीने वाले को...। सब टोली आगे निकरि गईं। दादी और शुक्लाजी हवेली क अंदर चले गे। टिल्लू देखेनि कि अमीर हसन के टाल पर लागि भीड़ अबहूं कम नाई परी है। टिल्लू का पता नाईं का एहसास भा इ गावन लाग - मदीने वाले को मेरा सलाम कहना, मदीने वाले को...।

अमीर हसन धम ते याक कुर्सी पर बैठि गै। और द्यार तक हिंदुआने तन जाती टोलिन कइहां द्याखति रहे। टोलिन म सामिल लोग अब्यौ कोलियन म पानी छिरकति जा रहे। जय श्री राम क नारा अब सुनाई तो परि रहे हैं लेकिन इन केरि आवाज अब कम परन लागि है।

तबहिनै हवेली क गेट खुला। शुक्लाजी एकदम त सनाका भै। खोपड़ि क झटका दीन्हेनि। और अबहिं अबहिं जौन कुछ उ सोचि रहे रहैं, वहिके मारे फिर ते याक दाय मैदान कि तरफ देखेनि। लेकिन हुआं तो अब कौनो नाई है। थोरी देर पहिले तक खेलि रहे रहै लरिकवऔ अब हुअन नाई हैं। शुक्लाजी हवेली क गेट तन देखेन। दादी हवेली म दाखिल हुई रही अहै। पाछे पाछे टिल्लू चले आ रहे। कमीज क आस्तीन त अपन मुंह पोंछि रहे, जानौ अपने ऊपर छिड़की गईं पानी क बूंदे साफ कर रहे। शुक्लाजी स्वाचन लाग उई पानी केरि बूंदन क बारे म जौनी शिला पूजन क बखत उन पर छिड़की गई रहैं – का फत्तेपुर चौरासी केरि गंगा जमुनी तहजीब पर उइ पानी की बूंदे तेजाब बनि कै गिरी रहैं?

(जारी....)

10 comments:

Randhir Singh Suman said...

nice

Unknown said...

कहानी पकना शुरू हो गयी, अगले हिस्से का इंतज़ार बेसब्री से शुरू हो गया है

Unknown said...

सुमन जी, श्रीश भाई, धन्यवाद।

Amrendra Nath Tripathi said...

१९ '९२ कै समय याद आवै लाग ...
मामला सुन्दर बढ़त अहै ... आभार ,,,

jitendra said...

It's nice to see अवधी क्यार ब्लॉग. फतेहपुर चौरासी kee yaad dila dee.

Jitendra Singh Bhaduaria

jitendra said...

It's nice to see अवधी क्यार ब्लॉग. फतेहपुर चौरासी kee yaad dila dee.

Jitendra Singh Bhaduaria

jitendra said...

It's nice to see अवधी क्यार ब्लॉग. फतेहपुर चौरासी kee yaad dila dee.

Jitendra Singh Bhaduaria

Unknown said...

शुक्रिया अमरेंद्र भैया। जीतेंद्र का फतेहपुर चौरासी गे हौ कबहूं का..

jitendra said...

I am not able get the Hindi font so please allow me to write in English...

I was born and brought up in Fatehpur Chaurasi, Garhi to be precise. Since F84 is a very small town and every body knows everybody else, so I am able recognize most of the characters of your novel like Ameer Hasan (Pathan), Chingari (I don't think his hand is so tight in English. is it?), Shuklaji etc..

Being a journalist (known to be Peeping Toms), Pankajji also should be able to recognize me. Yeah I do share my nick name with him.
-Pankaj Bhadaura

Unknown said...

Hi Jitendra,
Nice to meet you here on net. At least I have one more person from my village on Internet.

Anyways, tell me more about you Pankaj. For me I was sent to Kanpur after doing High School from UGU, and from there on have been coming to home just to be with parents. Hope to see you there during HOLI. My number is +91 9811202538, do get in touch.

Bests,
Pankaj Shukla
(and I have never been a peeping tom in my career)