Saturday, February 13, 2010

अवधी उपन्यास- क़ासिद (16)


आजु जानौ टिल्लू के स्कूल म छुट्टी अहै। दादी सबेरे बताएनि तौ लेकिन इनकी समझि कुछु नाई आवा कि आजु काहे क छुट्टी है कौनौ तिथि आए जहिमा दादी देर लगे मंदिर म पूजा करती हैं। टिल्लू मौका निखारि क आयशा क घरे पहुंचि गे। दून्हौं याक दूसरे के समहे बैठि हैं।

आयशा क हाथन म मेहंद लागि है औ उई मेहंद बचावति भै अपन बाल संभारै क कोसिस कई रहीं। उन केरे बालन केरि याक लट बार बार गालन पर गिरि जाति है। टिल्लू देखि रहे आयशा क परेसानी। आयशा फिर अपनि लट संभारेनि। टिल्लू फिर आयशा क देखेनि। आयशा फिर अपनि लट संभारेनि। अबकी दांय जैसे हे लट आयशा के गालन पर गिरी, टिल्लू आगे बढ़िकै आयशा क्यार बाल ठीक तेरे उनके जूड़ा म खोंसि दीन्हेनि। आयशा यौ देखि क मुस्कुराईं तो टिल्लू शरमा गे।

अच्छा तौ काला अक्षर भैंस बराबर। तुम पढ़ाई काहे नाईं करती हो।टिल्लू बात घुमावै खातिर बोलि परे।

टिल्लू क सवाल सुनि कै आयशा पहले तो सकपकानीं कि का जवाब देई। लेकिन वोई मज़ाक क मूड म दिखाई परीं, कहै लागीं, छोटे मियां। तुमहीं पढ़ा देओ ना हमका। तुम तौ हमेसा क्लास म फर्स्ट आवति हौ।

दादी, एहकि इजाज़त कबहूं ना द्याहैं।टिल्लू अपनि लाचारगी जताएन। फिर जैसे हे जानि परा कि कहूं बात आयशा क खराब ना लागि जाए। एकदम ते रुकिगे। आयशा क घाईं ध्यान त द्खायति भै कहै लाग, लेकिन, तुम पढ़िहौ तो ज़रूर ना। अगर तुम कहौ तौ हम दादी तेरे नज़र बचाक आ जावा करिबै।

आयशा तेरे कुछु कहति नाई बना। बस लरिकवा क भोला चेहरा द्खान लागीं। अइस लाग जैसे कौनौ बात अहै जौन इनके भीतर ते बाहर आवा चहति है, लेकिन बिचरेऊ ना जाने कौनी मजबूरी म बोलि नाईं रहीं। आयशा त कुछु कहति नाईं बना तौ इ टिल्लू क अपने तीर खींच लीन्हेनि। आयशा दुलार दिखावति भै टिल्लू क्यार माथा चूमि लीन्हेनि। टिल्लू तो जैसे दुलार क दुखिया अहै। तुरतै आयशा केरे आंचल म सिमटि गे। फिर धीरे त आयशा क चुन्नी हटा क बोले, तुम का मोहल्ला म कोठा बनावै वाली है?”

आयशा एकदम त हड़बड़ा गईं। टिल्लू क दूरि ढकेलेनि। आयशा क मुंह ते बस एत्तै निकरि पावा, का? तुम यू का कहि रहे हौ?” एत्ते म आयशा क अम्मा कि आवाज़ भीतर त सुनाई परी, को है? आयशा? तुमते कहा रहै कि अब्बू कि चिट्ठी डारि आएओ औ तुम हौ कि मेहंदी लगा क बैठि गईं। आयशा मेहंदी संभारति भै अम्मा घाईं लपकीं। टिल्लू आयशा क भीतर जाति भै देखि रहे। उनका बस आयशा कि आवाज़ सुनाई परि रही।

अम्मीजान,टिल्लू आहीं। तुम कहा रहौ ना कि अब्बा क चिट्ठी आजै भ्याजै क है, तो हम इनका बुला लीन रहै चिट्ठी लिखै खातिर। लेकिन यू पता नाईं का आंय बांय सांय बकि रहा?” आयशा कि अम्मा धीरे धीरे लकड़ी क सहारे पाछे क कमरा तेरे बाहर निकरीं। आयशा उन क्यार एकु हाथु पकरे हैं। टिल्लू दौरि क आयशा क अम्मा क्यार दूसर हाथ थाम लीन्हेनिं। तीनों ह्वानै दलान म बैठि गे।

अरे, इ बेचारे क का पता दुनियादारी। बिन महतारी क लरिका है, जौनु कुछु दूसर समझा दीन्हेनि, इ वहै मान लीन्हेनि। आयशा क अम्मा धीरे त बोलीं। महतारी क स्नेह कोख क फर्क नाई जानति। वहिके खातिर तौ जैसे अपनि बिटिया वइसेहे दूसरे क लरिका।

टिल्लू हू क आयशा क अम्मा पर अपनपव झलकि आवा। कहै लाग, चच्ची, अबकी दांय तुम्हू चच्चा त ईदी में मोबाइल फोन मांगि लेहौ। अब चिट्ठी पत्री क्यार ज़माना नाई रहा।

हां बेटा, कहा तौ पिछली हू दांय रहै। लेकिन आयशा क अब्बा कहति रहै कि मोबाइल रखै त घर मा चैन नाईं रहति। वोऊ पूरी उमरि बसि वहै सामान घर मा लाए, जेहिके बिना काम न चलति होए।आयशा कि अम्मा खान साहब क बारे म बतावति रहीं औ आयशा टिल्लू दून्हें ध्यान त उनका सुनति रहे। आयशा कि अम्मा क बात सुनै वाला कोई मिलै तो उई घंटन बतियावा करै लेकिन बिन आंखिन क मेहरिया त को बतियावै। बेचरेऊ क बस बिटियै क सहारा है।

अरे छव्वाड़ौ अम्मी, तुम्हू कौन किस्सा लैके बैठि गइऊ। पता है अम्मा अबहीं टिल्लू हमते का कहति आहीं।आयशा क लागि गा रहा कि अगर अम्मा क ट्वांका न गा तो इ ना जानै अब्बा कि कौनी कौनी बातें लइकै बैठि जइहैं। लेकिन टिल्लू आयशा कि बात सुनिकै मुंडी खाले क लटिका लीन्हेनि। फिर तनिक द्यार म द्याखन लाग कि आयशा कि अम्मा आयशा कि ई बात क्यार का जवाब देती हैं। आयशा की अम्मा थोरी द्या तौ चुप्पै रहीं, फिर हवा म हाथ बढ़ा क टिल्लू क टट्वालन लागीं। ऐसी वैसी लहरावै क बाद आयशा कि अम्मा क्या हाथ टिल्लू क मूंडै पर पहुंचा तो उई टिल्लू क्यार बाल सहलावै लागीं। दुलार पाक टिल्लू फिर ते निहाल हुइगै।

तम्हू ना, हमेसा इ नान्हिं सरे लरिकवा क पीछ परी रहती हौ। हमका तब तनुकु तनुकु दिखाई परति रहै। मोतिया बिंद होएक बावजूदौ। यू पैदा भा रहै तो एहिकि दादी खुदै आई रहैं मिठाई लइकै। पूरे मोहल्ला म एहिकि दादी घरै घरै जाक मिठाई बांटी तेइनि। मुला अब ना उई दिन रहे और ना अब इनकी दादी अवति हैं मिठाई लइकै। बेचरेऊ केरि अम्मौ नाईं रहीं।दादी क्यार पूरा दुलार उमड़ि आवा टिल्लू पर।

टिल्लू धीरे त आयशा कि अम्मा के और नेरे खसिकि आए। आयशा कि अम्मा टिल्लू पर हाथ फिराएनि। आयशौ टिल्लू तन दुलार त देखि रहीं।

चच्ची,हमरी अम्मा हमका छोड़ि क काहै चली गईं?” टिल्लू तनुक रुआसे हुइगे। आयशा औ उनकी अम्मा चुपा गईं। का जवाब दें भला लरिका क इ सवाल क्यार?

(जारी..)

4 comments:

Randhir Singh Suman said...

nice

Unknown said...

शुक्रिया सुमन जी..

shailendra shukla said...

यह मुझे कितना अच्छा लगा मै बता नहीं सकता हूं सर। आंचलिक बॊली और भाषा के नाम पर मुझे भॊजपूरी और छत्तीगसढी ही आती है। अवधी के बारे में कुछ भी मालूम नहीं था। लेकिन कासिद पढने बाद पता चला की हम आपके बहूत करीब हैं। अर्थात अवधी और भॊजपूरी में इतनी समानता हॊगी मुझे आज पता चला । इसकी तारीफ करने की इच्छा तॊ है लेकिन मेरे पास इस लायक शब्द उपलब्ध ही नहीं की मै इसकी प्रशांसा कर सकूं नहीं। हां सर एक बात और इसकी मूल प्रति कहां मिलेगी।

vijai Rajbali Mathur said...

इतने छोटे बच्चे को मौत का कोई क्या जवाब देता.चुप रहना ही जवाब था.