Thursday, February 04, 2010

अवधी उपन्यास- क़ासिद (15)

अइसी आयशा आसमान तन निगाहें लगाए टुकुर टुकर देखि रहीं, वइसी टिल्लू क नींद नाई आ रही। ऊई अपने बिस्तर पर परे परे कुलबुला रहे। दादी याक दुई दांय लरिकवा तन देखेनि। टिल्लू जानौ आसमान म तारा गिनि रहे। दादी कित्तौ कड़क होएं लेकिन आखिर आहीं तो अम्मै ना। बिचरेऊ क्यार करेजु पसीजि गा।

सो जाओ बच्चा बहुत राति हुइगै। दादी बड़े दुलार त टिल्लू क बाल सहलाएनि। लेकिन टिल्लू करवट बदलि क आसमान घाईं अब्यौ द्य़ाखति रहे। दादी क लाग कि लरिकवा जानौ परेसान है। तो फिर ते मनुहार कीन्हेनि, अच्छा चलौ तुमका कहानी सुना देइति है। बिना कहानी नींद ना आवै क बीमारिहु बहुत खराब है। अब आज तुम्हार पिताजी नाईं हैं तो चलौ हमहीं कहानी सुना देई। लेकिन हमका तौ जादा कहनिऊ नाईं अवति हैं। तुम्हरी अम्मा ना जानै कहां त रोजीना याक नई कहानी ले अवति रहैं।

अपनी अम्मा की बात सुनि कै टिल्लू एकदम ते दादी तन द्याखन लाग। दादी क जानि परा कि जानौ गलत टाइम पर गलत बात मुंह ते निकरि गै। लेकिन टिल्लू ना रुआसे भे औ ना उनके दीदन पर पानी आवा। बस चेहरा तनुक एकदम ते सीरियस हुइगा।

दादी, अम्मा चली कहां गईं। औ काहे हमका छोड़ि गईं।

अब दादी बड़ी चाहे जित्ता होएं लेकिन बिन महतारी के लरिका क समझावै भर का बड़प्पन तो केहू के पास नाई हुइ सकत। महतारी का दुलार ना पावै क दर्द तो वोई समझ सकति हैं जे अम्मा क आंचल त बचपनै म दूरि हुइगै। तबौ दादी समझावै क पूरी कोसिस कीन्हेनि, बच्चा ऊइ भगवान तीर गई हैं। हुई सकत है कि नई कहानी सीखन गई होएं। कब लगै तुमका रोजु रोजु नई कहानी सुनवतिं। खतम हुई गईं रहै उनकी सब कहानीं।

अरे, तो हमते बतावैक रहै। या कौनु बात भै। अरे हम छ्वाट रहन तब कहानी सुनिति रहै। अब तो हमरी किताबैं म कित्ती कहानी है। अब तो हम खुदै उनका कहानी सुना सकिति रहै। लेकिन, दादी वा परी वाली कहानी अम्मा बहुत नीके सुनवति रहैं।“ ‘टिल्लू छन मा बड़े भै औ छनै भर मां फिर ते बचपन म लौटि आए।

तौ तुमका वा परी वाली कहानी अब्यौ यादि है।

दादी अपनि बात कहि कै टिल्लू तन द्याखन लागीं। लेकिन टिल्लू तो जानों कहानी म कहूं हेरा गे। टिल्लू कि आंखी बंद भईं तो अइस जानि परा जानौ समहें त आयशा चली आ रहीं। परिन के भेस म। आयशा परी वाले कपड़ा पहिर क दूर त दौरत चली आ रहीं। जानौ टिल्लू खातिर कौनिउ नियामत लइके आए रहीं। लेकिन तबहिनै एकु घोड़ा दौरत दिखाई परा। घोड़ा पर एकु राजकुमार बैठि है। घोड़ा धीरे धीरे आयशा के नेरे आवा औ राजकुमार ग्वाफा मारि क आयशा क उठाएसि औ अपने साथ लइके कुहासा म कहूं चला गा। टिल्लू दूरि त यू नजारा देखि रहे, उइ एकदम ते हड़बड़ान। आंखी खोलेन तौ देखेनि कि दादी आंगन म घूमि रहीं औ च्वारन का भगावै वाला मंत्र पढ़ि रहीं- तिस्रो भार्या: कफलस्य दाहिनी मोहिनी सती। तासाम् स्मरणमात्रेण चौरो गच्छित निष्फल:।। कफल्लम, कफल्मम, कफल्लम। दादी श्लोक पढ़ेन फिर याक हाथ क दूसरी गदोरिया पर जोर त फटकी दीन्हेनि।

टिल्लू पूछि बैठि, दादी एहिते का होति है?”

श्लोक पढ़ै क बादि जित्ती दूर हमरी ताली कि आवाज़ जाइ, चोर अइब्यौ करी तो चोरी न कई पाई। दादी क या बात सुनि कै टिल्लू तनुक हैरान भे कि भला यू मंत्र पहिले काहे नाई उनका पता चला नहिं तो उई तो रोजीनै यू मंत्र अमरूद कि बगिया म पढ़ि अवतीं। कम ते कम गद्दर अमरूद तो चोरी होए त बचि जातीं। दादी अपने म मगन श्लोक पढ़ति जा रहीं औ घर भरे म घूमि घूमि क ताली बजावति जा रहीं।

याक कोलिया भरै क दूरी पर आयशा की अम्मौ अइसै कुछु कर रहीं। आयशा की अम्मा आंगन म लकड़ी के सहारे बाएं ते दाएं छ्वार फिरि दाएं त बाएं छ्वार आ जा रहीं। आयशा की अम्मा क्यार होंठ खुले औ कुरान शरीफ़ केरि याक आयत उनके मुंह ते निकरी- अल्लाहू ला इलाहा इला हुआ अल हय्युल, कय्यूम ला ताखिज़ूं सिनातउं वला नऊम, लहू मा फि अस समावाति वमा फिल अर्ज़, मनज़ल लज़ी यशफऊ इन्दु इल्ला, बेइज़निही या लमू मा बैना एदीहिम वमा, ख़लफहुम वला युहीतूना बिशैइन मिन इल्मिही, इल्ला बिमाशा वसेआ कुर्सीयुहूस समावाति वल अर्ज, वला यू दुहू हिफ़ज़ुहुमा व हुवल अलियुल अज़ीम।

आयशा परे परे अम्मा क आवाज़ दीन्हेनि, आ जाओ अम्मीजान, ई पाक़ आयत उल कुरसी क्यारै असर है कि अब लगै हमरे घर पर कौनौ कि नज़र नाई लागि।“ “औ दुआ करौ कि आगेहौ ना लागै।आयशा की अम्मा कहति भै अपने बिस्तर पर बैठि गईं।

टिल्लू फिर ते आंखी मूंदि लीन्हेनि। परी फिर ते उनके सपना म आ चुकी है। अबकी दांय सुट्टू, इरफान, मंगोली औ फुंटी सब हैं। खूब धमा चौकड़ी मचि रहि। बचपन क्यार सपनौ कित्तै सरल होति हैं।

(जारी....)

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2 comments:

Amrendra Nath Tripathi said...

( बिलम्ब कै छिमा किहेउ )
भैया ! ... १४ अंकन बाद ई राज खुला कि टिल्लू कै माई
नाहीं न .. हमें तौ लागत है कि कहानी सुनावै वाली माई
कै कहानी भी कुछ है ! ... टिल्लू कै परी-दर्शन तौ यकदम
फिल्म-दर्शन के नाईं लाग .. मंतर और आयतन से जीवन
चलत अहै .. अच्छा रचेउ भैया .. बहुत नीक लाग ! आभार !

Unknown said...

धन्यवाद अमरेंद्र भैया। अब लिखै वाला फिल्म बनावै वाला होए तो कहूं कहूं वहि क्यारौ छौंक लागि जाति है। मुला यू बतायो कि कहूं या बात अखरि तो नाई रही।