Friday, October 17, 2008

अलैया बलैया या कि बल्ला उपला

मुंबई
17 अक्टूबर।

आज भोरहरे तेरे खिड़की के पास बइठि क यू सोचित आए कि का वाकई मा ऊई सारी बातै बिला जइहैं, जिनका देखि के हम पंचे बड़े भएन। काल्हि मुंबई म बहुत गर्मी रहै, टेंपरेचर 37 डिग्री के आसपास रहै। शाम क तनुक मौसम जुड़ान तो हम कहा कि चलौ थोड़ी द्यार टहिल लीन जाए। टहलत टहलत बड़ी देर हुइगै और तेहिलेहे हमार याके संगी होनै आईगे। खाना खाएक वक्त हुइगा रहै तो हम पंचै चले गेन पास क याक रेस्टोरेंट मइहां।

बात चलि परी दिल्ली ते शुरू भै हिंदी अख़बार नई दुनिया केरि। एहि की संडे मैगज़ीन में एकु लेख होली क्यारो छपा रहै। एहिका हिंदी क्यार याके बड़े लेखक लिखा हइन। ऊ लेख म पंडित जी लिखेन कि उई होली में अलैया बलैया डारै जात रहैं बचपन मा। और या बात उनका अबहूं याद है। होली जलावे के बाद और अगिले दिन होली मनावे क किस्सौ ऊई बहुत विस्तार तेरे लिखेन। हम अपने साथी त यौ पूछा कि अच्छा बताओ अलैया बलैया होली म डारी जाती हैं कि दीवाली म। ऊई भौचिकिया गे। कहै लाग हां अलैया बलैया डारी जाती हैं, हमहूं गे हन डारै। लेकिन हम कहा सवाल क चकरघिन्नी ना बनाओ, यू बताओ कि अलैया बलैया होरी म डारी जाती हैं कि दीवाली म। ऊई कहै लाग अरे अलैया बलैया वहै ना जेहिम उपला वुपला डारे जात हैं। हम कहा सनई जानत हौ। तनिक द्यार तक ऊई सोचेन फिर कहै लाग कि हां वा सफेद वाली रस्सी जेहिते खटिया कि अरदवाइन कसी जाति है। हम कहा खूब पहिचान्यौ। तो हम पूछा कि या सनई की रस्सी बनति कइसे है, ऊई कहै लाग कि अरे बिरवा में सफेद सफेद रेशा निकरत हैं, वही त रस्सी बनत है। हम कहा सरऊ सफेद रेसा बनै ते पहिले औरौ बहुत पापड़ बेलाई होति है। पहिले सनई के बिरवा जौन अर्हा के बेरवा के एत्ते लंबे लंबे होत हैं उनका काटि के गट्ठर बनाए जात हैं। फिर ई गट्ठर गांव के कौनो ताल तलैया म डारे जात हैं। भैया बोले- हां साफ करै खातिर। हम बतावा- कि साफ करै खातिर नाई, सरऊ सड़ावै खातिर।

जब सनई के बेरवा क्यार तना पत्ता सब दस पंद्रा दिन मा गलि जात हैं तो गट्ठर सूखै खातिर धूम म डारि दीन जाति हैं। फिर बेरवा केरि छाल सनई बन जाति है और वहिके तना केरि लकड़ी ईंधन केरे काम आवित है। एहिकौ सरसों के सूखे बेरवा की नाईं पिंजी कहा जाति है। हुई सकत है यूं नांव पिंजर तेरे बना होए। तो सनई की पिंजी क्यार छोट छोट गट्ठर बनाएक वहिंमा थ्वारा मकहरा (मकई क्यार सूख पौधा) बांधा जाति है। बांधे खातिर खटिया बिने तेरे बचिगा बान इस्तेमाल कीन जाति है। और यू जौन बनकि तैयार होति है वा है अलैया बलैया। और अलैया बलैया होरी म नाई बल्कि दीवाली म जलाई जाती हैं। बरसात के बाद घर की साफ सफाई त बचा कचरा गांव के बाहर जलावै की परंपरा बाद म सायद रस्मी बनिगै और अलैया बलैया वही क रूप है। होली म जौन चीज़ जलाई जाति है वहिका कहत है बल्ला उपला। ई गोबर तेरे बनत है। छोट छोट उपलन केरि बान तेरे माला बनाई जाति है और फिर ई माला लइके हम पंचौ जाइत रहै गांव के बाहर होली जलावै। हमार साथी बड़ी द्यार तक हमरी तरफ द्याखत रहे, उनके कुछ समझि आवा औ कुछ ऊई समझेक ड्रामा करत रहै। तो हम कहा कि संडे नई दुनिया क्यार ऊ अंक म हमरे दिल्ली वाले घर मा धरा है। अगली दांय जइबै तो लेते अइबे। हिंदी के तमाम धाकड़ कहै जाए वाले पुरान लेखक यू समझत हैं कि लोक परंपरा आज क्यार लोग बिल्कुल भुला गे हैं तो ऊई जो कुछ लिखि द्याहैं ऊ ब्रह्मा क वाक्य हुई जाई। अइस है नाई पंडित जी। अलैया बलैया अऊऱ बल्ला उपला म बहुत फर्क है और यू फर्क कम ते कम हमका त अबहूं याद है। आगे आवै वाली पीढ़ी क यू याद रही कि नाई पता नाई। नागर साहब तनुक हल्का हाथ धरौ।

कहा सुना माफ़,

पंकज शुक्ल

6 comments:

पारुल "पुखराज" said...

नीक बात बतायो भैय्या-- जिला उन्नाव क्येर पास पड़ौस म तो होरी म बल्ला –उपला डारे क्येर रीती हम्हुंक याद आउत है…

Unknown said...

ई बड़क्कवै लेखक नास्ताल्जिया क कमाई खावत हैं, लेकिन पुरानी बातें इनका ढंग ते यादि नाईं रहतीं।
- पंकज

खबरी! said...

पंकज जी आप अच्छे पत्रकार हैं.भोजपूरी में आपने एक सफल फिल्म भी बना ली लेकिन आप भोजपुरी लिख भी सकते हैं ये जानकर बहुत आश्चर्य हुआ ....बहुआयामी हैं आप...कभी मौका मिले तो हमारे अड्डे पर भी चक्कर लगाइए...

manas mishra said...

भैय्या बहुत बढ़िया लिख्यो। इलाहाबाद मा जब पढ़ित रहेन तो बहुत कोशिश कीन की आपैं भाषा कुछ लिखी लेकिन कुछ लिखिन न पायेंन। आप क्यार यह लेख पढ़िके अब कुछ न कुछ जरूर लिख बै।

Unknown said...

ख़बरी भाई, या भोजपुरी ना आय, या आए अवधी। वा बोली जउन रामचंद्र जी ब्वालत रहै। वइसे अवधी और भोजपुरी दोनों बहिनी आहीं।

Unknown said...

कहां अलैया बलैया केर फिकिर में परा अहौ, हियां अवध के नाभि नखलऊ में एनजीओ गदेलन का गेहूं देखावै खातिर टूर आर्गेनाइज करि रहेन। सरसों ट्री के नीचे हुंवा लन्चौ चलि रहा आजकल।