Saturday, February 13, 2010

अवधी उपन्यास- क़ासिद (16)


आजु जानौ टिल्लू के स्कूल म छुट्टी अहै। दादी सबेरे बताएनि तौ लेकिन इनकी समझि कुछु नाई आवा कि आजु काहे क छुट्टी है कौनौ तिथि आए जहिमा दादी देर लगे मंदिर म पूजा करती हैं। टिल्लू मौका निखारि क आयशा क घरे पहुंचि गे। दून्हौं याक दूसरे के समहे बैठि हैं।

आयशा क हाथन म मेहंद लागि है औ उई मेहंद बचावति भै अपन बाल संभारै क कोसिस कई रहीं। उन केरे बालन केरि याक लट बार बार गालन पर गिरि जाति है। टिल्लू देखि रहे आयशा क परेसानी। आयशा फिर अपनि लट संभारेनि। टिल्लू फिर आयशा क देखेनि। आयशा फिर अपनि लट संभारेनि। अबकी दांय जैसे हे लट आयशा के गालन पर गिरी, टिल्लू आगे बढ़िकै आयशा क्यार बाल ठीक तेरे उनके जूड़ा म खोंसि दीन्हेनि। आयशा यौ देखि क मुस्कुराईं तो टिल्लू शरमा गे।

अच्छा तौ काला अक्षर भैंस बराबर। तुम पढ़ाई काहे नाईं करती हो।टिल्लू बात घुमावै खातिर बोलि परे।

टिल्लू क सवाल सुनि कै आयशा पहले तो सकपकानीं कि का जवाब देई। लेकिन वोई मज़ाक क मूड म दिखाई परीं, कहै लागीं, छोटे मियां। तुमहीं पढ़ा देओ ना हमका। तुम तौ हमेसा क्लास म फर्स्ट आवति हौ।

दादी, एहकि इजाज़त कबहूं ना द्याहैं।टिल्लू अपनि लाचारगी जताएन। फिर जैसे हे जानि परा कि कहूं बात आयशा क खराब ना लागि जाए। एकदम ते रुकिगे। आयशा क घाईं ध्यान त द्खायति भै कहै लाग, लेकिन, तुम पढ़िहौ तो ज़रूर ना। अगर तुम कहौ तौ हम दादी तेरे नज़र बचाक आ जावा करिबै।

आयशा तेरे कुछु कहति नाई बना। बस लरिकवा क भोला चेहरा द्खान लागीं। अइस लाग जैसे कौनौ बात अहै जौन इनके भीतर ते बाहर आवा चहति है, लेकिन बिचरेऊ ना जाने कौनी मजबूरी म बोलि नाईं रहीं। आयशा त कुछु कहति नाईं बना तौ इ टिल्लू क अपने तीर खींच लीन्हेनि। आयशा दुलार दिखावति भै टिल्लू क्यार माथा चूमि लीन्हेनि। टिल्लू तो जैसे दुलार क दुखिया अहै। तुरतै आयशा केरे आंचल म सिमटि गे। फिर धीरे त आयशा क चुन्नी हटा क बोले, तुम का मोहल्ला म कोठा बनावै वाली है?”

आयशा एकदम त हड़बड़ा गईं। टिल्लू क दूरि ढकेलेनि। आयशा क मुंह ते बस एत्तै निकरि पावा, का? तुम यू का कहि रहे हौ?” एत्ते म आयशा क अम्मा कि आवाज़ भीतर त सुनाई परी, को है? आयशा? तुमते कहा रहै कि अब्बू कि चिट्ठी डारि आएओ औ तुम हौ कि मेहंदी लगा क बैठि गईं। आयशा मेहंदी संभारति भै अम्मा घाईं लपकीं। टिल्लू आयशा क भीतर जाति भै देखि रहे। उनका बस आयशा कि आवाज़ सुनाई परि रही।

अम्मीजान,टिल्लू आहीं। तुम कहा रहौ ना कि अब्बा क चिट्ठी आजै भ्याजै क है, तो हम इनका बुला लीन रहै चिट्ठी लिखै खातिर। लेकिन यू पता नाईं का आंय बांय सांय बकि रहा?” आयशा कि अम्मा धीरे धीरे लकड़ी क सहारे पाछे क कमरा तेरे बाहर निकरीं। आयशा उन क्यार एकु हाथु पकरे हैं। टिल्लू दौरि क आयशा क अम्मा क्यार दूसर हाथ थाम लीन्हेनिं। तीनों ह्वानै दलान म बैठि गे।

अरे, इ बेचारे क का पता दुनियादारी। बिन महतारी क लरिका है, जौनु कुछु दूसर समझा दीन्हेनि, इ वहै मान लीन्हेनि। आयशा क अम्मा धीरे त बोलीं। महतारी क स्नेह कोख क फर्क नाई जानति। वहिके खातिर तौ जैसे अपनि बिटिया वइसेहे दूसरे क लरिका।

टिल्लू हू क आयशा क अम्मा पर अपनपव झलकि आवा। कहै लाग, चच्ची, अबकी दांय तुम्हू चच्चा त ईदी में मोबाइल फोन मांगि लेहौ। अब चिट्ठी पत्री क्यार ज़माना नाई रहा।

हां बेटा, कहा तौ पिछली हू दांय रहै। लेकिन आयशा क अब्बा कहति रहै कि मोबाइल रखै त घर मा चैन नाईं रहति। वोऊ पूरी उमरि बसि वहै सामान घर मा लाए, जेहिके बिना काम न चलति होए।आयशा कि अम्मा खान साहब क बारे म बतावति रहीं औ आयशा टिल्लू दून्हें ध्यान त उनका सुनति रहे। आयशा कि अम्मा क बात सुनै वाला कोई मिलै तो उई घंटन बतियावा करै लेकिन बिन आंखिन क मेहरिया त को बतियावै। बेचरेऊ क बस बिटियै क सहारा है।

अरे छव्वाड़ौ अम्मी, तुम्हू कौन किस्सा लैके बैठि गइऊ। पता है अम्मा अबहीं टिल्लू हमते का कहति आहीं।आयशा क लागि गा रहा कि अगर अम्मा क ट्वांका न गा तो इ ना जानै अब्बा कि कौनी कौनी बातें लइकै बैठि जइहैं। लेकिन टिल्लू आयशा कि बात सुनिकै मुंडी खाले क लटिका लीन्हेनि। फिर तनिक द्यार म द्याखन लाग कि आयशा कि अम्मा आयशा कि ई बात क्यार का जवाब देती हैं। आयशा की अम्मा थोरी द्या तौ चुप्पै रहीं, फिर हवा म हाथ बढ़ा क टिल्लू क टट्वालन लागीं। ऐसी वैसी लहरावै क बाद आयशा कि अम्मा क्या हाथ टिल्लू क मूंडै पर पहुंचा तो उई टिल्लू क्यार बाल सहलावै लागीं। दुलार पाक टिल्लू फिर ते निहाल हुइगै।

तम्हू ना, हमेसा इ नान्हिं सरे लरिकवा क पीछ परी रहती हौ। हमका तब तनुकु तनुकु दिखाई परति रहै। मोतिया बिंद होएक बावजूदौ। यू पैदा भा रहै तो एहिकि दादी खुदै आई रहैं मिठाई लइकै। पूरे मोहल्ला म एहिकि दादी घरै घरै जाक मिठाई बांटी तेइनि। मुला अब ना उई दिन रहे और ना अब इनकी दादी अवति हैं मिठाई लइकै। बेचरेऊ केरि अम्मौ नाईं रहीं।दादी क्यार पूरा दुलार उमड़ि आवा टिल्लू पर।

टिल्लू धीरे त आयशा कि अम्मा के और नेरे खसिकि आए। आयशा कि अम्मा टिल्लू पर हाथ फिराएनि। आयशौ टिल्लू तन दुलार त देखि रहीं।

चच्ची,हमरी अम्मा हमका छोड़ि क काहै चली गईं?” टिल्लू तनुक रुआसे हुइगे। आयशा औ उनकी अम्मा चुपा गईं। का जवाब दें भला लरिका क इ सवाल क्यार?

(जारी..)

Thursday, February 04, 2010

अवधी उपन्यास- क़ासिद (15)

अइसी आयशा आसमान तन निगाहें लगाए टुकुर टुकर देखि रहीं, वइसी टिल्लू क नींद नाई आ रही। ऊई अपने बिस्तर पर परे परे कुलबुला रहे। दादी याक दुई दांय लरिकवा तन देखेनि। टिल्लू जानौ आसमान म तारा गिनि रहे। दादी कित्तौ कड़क होएं लेकिन आखिर आहीं तो अम्मै ना। बिचरेऊ क्यार करेजु पसीजि गा।

सो जाओ बच्चा बहुत राति हुइगै। दादी बड़े दुलार त टिल्लू क बाल सहलाएनि। लेकिन टिल्लू करवट बदलि क आसमान घाईं अब्यौ द्य़ाखति रहे। दादी क लाग कि लरिकवा जानौ परेसान है। तो फिर ते मनुहार कीन्हेनि, अच्छा चलौ तुमका कहानी सुना देइति है। बिना कहानी नींद ना आवै क बीमारिहु बहुत खराब है। अब आज तुम्हार पिताजी नाईं हैं तो चलौ हमहीं कहानी सुना देई। लेकिन हमका तौ जादा कहनिऊ नाईं अवति हैं। तुम्हरी अम्मा ना जानै कहां त रोजीना याक नई कहानी ले अवति रहैं।

अपनी अम्मा की बात सुनि कै टिल्लू एकदम ते दादी तन द्याखन लाग। दादी क जानि परा कि जानौ गलत टाइम पर गलत बात मुंह ते निकरि गै। लेकिन टिल्लू ना रुआसे भे औ ना उनके दीदन पर पानी आवा। बस चेहरा तनुक एकदम ते सीरियस हुइगा।

दादी, अम्मा चली कहां गईं। औ काहे हमका छोड़ि गईं।

अब दादी बड़ी चाहे जित्ता होएं लेकिन बिन महतारी के लरिका क समझावै भर का बड़प्पन तो केहू के पास नाई हुइ सकत। महतारी का दुलार ना पावै क दर्द तो वोई समझ सकति हैं जे अम्मा क आंचल त बचपनै म दूरि हुइगै। तबौ दादी समझावै क पूरी कोसिस कीन्हेनि, बच्चा ऊइ भगवान तीर गई हैं। हुई सकत है कि नई कहानी सीखन गई होएं। कब लगै तुमका रोजु रोजु नई कहानी सुनवतिं। खतम हुई गईं रहै उनकी सब कहानीं।

अरे, तो हमते बतावैक रहै। या कौनु बात भै। अरे हम छ्वाट रहन तब कहानी सुनिति रहै। अब तो हमरी किताबैं म कित्ती कहानी है। अब तो हम खुदै उनका कहानी सुना सकिति रहै। लेकिन, दादी वा परी वाली कहानी अम्मा बहुत नीके सुनवति रहैं।“ ‘टिल्लू छन मा बड़े भै औ छनै भर मां फिर ते बचपन म लौटि आए।

तौ तुमका वा परी वाली कहानी अब्यौ यादि है।

दादी अपनि बात कहि कै टिल्लू तन द्याखन लागीं। लेकिन टिल्लू तो जानों कहानी म कहूं हेरा गे। टिल्लू कि आंखी बंद भईं तो अइस जानि परा जानौ समहें त आयशा चली आ रहीं। परिन के भेस म। आयशा परी वाले कपड़ा पहिर क दूर त दौरत चली आ रहीं। जानौ टिल्लू खातिर कौनिउ नियामत लइके आए रहीं। लेकिन तबहिनै एकु घोड़ा दौरत दिखाई परा। घोड़ा पर एकु राजकुमार बैठि है। घोड़ा धीरे धीरे आयशा के नेरे आवा औ राजकुमार ग्वाफा मारि क आयशा क उठाएसि औ अपने साथ लइके कुहासा म कहूं चला गा। टिल्लू दूरि त यू नजारा देखि रहे, उइ एकदम ते हड़बड़ान। आंखी खोलेन तौ देखेनि कि दादी आंगन म घूमि रहीं औ च्वारन का भगावै वाला मंत्र पढ़ि रहीं- तिस्रो भार्या: कफलस्य दाहिनी मोहिनी सती। तासाम् स्मरणमात्रेण चौरो गच्छित निष्फल:।। कफल्लम, कफल्मम, कफल्लम। दादी श्लोक पढ़ेन फिर याक हाथ क दूसरी गदोरिया पर जोर त फटकी दीन्हेनि।

टिल्लू पूछि बैठि, दादी एहिते का होति है?”

श्लोक पढ़ै क बादि जित्ती दूर हमरी ताली कि आवाज़ जाइ, चोर अइब्यौ करी तो चोरी न कई पाई। दादी क या बात सुनि कै टिल्लू तनुक हैरान भे कि भला यू मंत्र पहिले काहे नाई उनका पता चला नहिं तो उई तो रोजीनै यू मंत्र अमरूद कि बगिया म पढ़ि अवतीं। कम ते कम गद्दर अमरूद तो चोरी होए त बचि जातीं। दादी अपने म मगन श्लोक पढ़ति जा रहीं औ घर भरे म घूमि घूमि क ताली बजावति जा रहीं।

याक कोलिया भरै क दूरी पर आयशा की अम्मौ अइसै कुछु कर रहीं। आयशा की अम्मा आंगन म लकड़ी के सहारे बाएं ते दाएं छ्वार फिरि दाएं त बाएं छ्वार आ जा रहीं। आयशा की अम्मा क्यार होंठ खुले औ कुरान शरीफ़ केरि याक आयत उनके मुंह ते निकरी- अल्लाहू ला इलाहा इला हुआ अल हय्युल, कय्यूम ला ताखिज़ूं सिनातउं वला नऊम, लहू मा फि अस समावाति वमा फिल अर्ज़, मनज़ल लज़ी यशफऊ इन्दु इल्ला, बेइज़निही या लमू मा बैना एदीहिम वमा, ख़लफहुम वला युहीतूना बिशैइन मिन इल्मिही, इल्ला बिमाशा वसेआ कुर्सीयुहूस समावाति वल अर्ज, वला यू दुहू हिफ़ज़ुहुमा व हुवल अलियुल अज़ीम।

आयशा परे परे अम्मा क आवाज़ दीन्हेनि, आ जाओ अम्मीजान, ई पाक़ आयत उल कुरसी क्यारै असर है कि अब लगै हमरे घर पर कौनौ कि नज़र नाई लागि।“ “औ दुआ करौ कि आगेहौ ना लागै।आयशा की अम्मा कहति भै अपने बिस्तर पर बैठि गईं।

टिल्लू फिर ते आंखी मूंदि लीन्हेनि। परी फिर ते उनके सपना म आ चुकी है। अबकी दांय सुट्टू, इरफान, मंगोली औ फुंटी सब हैं। खूब धमा चौकड़ी मचि रहि। बचपन क्यार सपनौ कित्तै सरल होति हैं।

(जारी....)

picture used here is for depiction only, if some one owes copyright of it, please bring it to my notice and it will be replaced.

Saturday, January 30, 2010

अवधी उपन्यास- क़ासिद (14)

सांझ घिरि आई। थोरेहे द्यार म आसमान म नखतौ चमकन लाग। नौकर चाकर लोग अपने अपने काम म व्यस्त हुइगै और शुक्लाजी टीवी खोलि क बैठि है टीवी द्याखन। आजु दुई तीन दिनि बादि बत्ती आई है। फत्त्तेपुर चौरासी जैसे गांवन म बिजली आवबु कौन्यो त्यौहार ते कम नाई है। पहले तो बत्ती खूब आवा करति रहै, लेकिन पिछले चुनाव म इलाके क विधायक हुइगै समाजवादी पार्टी क्यार और सूबे म सरकार बनिगै बहुजन समाज पार्टी केरि। बस तबहि ते फत्तेपुर मा बिजली बरसात कि नाईं भगवान भरोसे हुइगै।

डिशटीवी केरि जब सुरुआत भै तो शुक्लाजी के घर मा जिले क्यार पहला डिशटीवी लाग रहै। समाचार चलत होएं तो शुक्लाजी की अम्मौ आ जाती है टीवी द्याखन। टीवी परिहां समाचार चलि रहे। शुक्लाजी और उनकी अम्मा दोनों जने याक याक कुर्सी पर बैठि क समाचार देखि रहे। एत्तैहेम टिल्लू हु कमरा म घुसे। देखिन क सबक्यार ध्यान टीवी तन लाग है तो येऊ टीवी द्याखन लाग।

शुक्लाजी के घर ते थोरिहु दूर अमीर हसन क टालौ पर हलचल है। हुअन बिजली क खंभा त कटिया डारि क जलावा गा बल्ब चमकि रहा है। रेडिया पर समाचार आ रहे अउर चार पांच बुजुर्ग मनई बैठि क समाचार सुनि रहे। सब मनई चुपै बैठि है। एत्तेह म बत्ती चली गै। याके बुजुर्ग के मुंह ते तुरंते निकरा –

या अल्लाह, अबकी दांय जानौ ईद पर फत्तेपुर मा रौनक नाई रही।

चहुं गिरदा अंधेर हुइगा तो अमीर हसन रेडियो बंद कई दीन्हेनि।

रात बहुत हुइगै मियां। चलो भीतर चला जाए। बत्ती क्यार जित्ती द्यार क्यार दरसन बदे रहैं, उइ हुइगे। अब बत्ती नाई आई।

दूसरके बुजुर्ग अपन जज्बात रोकि नाई पाए।

अबै द्याखौ जन्माष्टमी पर पूरा रात बत्ती रहै, लेकिन रमज़ान हैं तो बत्ती क कहूं पता नाईं। चुनाव अइहैं तो आ जइहैं नेता लोग, वोट मांगै और कहिहैं चौबीसो घंटा बत्ती आइ गांवन मा। ई फत्तेपुर क्यार नसीब कब बदलिहैं, पता नाईं।

अमीर हसन त रहा नाई गा, उई गला खंखारि क बोले, चच्चा, नेता लोगनै त किस्मत बदलि जातै तो आजु हम पंचै यू दिन नाईं देखि रहे होइत।

कोलिया क उई छ्वार आयशा खिड़की तीर ठाढ़े अमीर हसन क टाल प बैठे लोगन केरी बातें सुनि रहीं। एत्ते म भीतर त उनकी अम्मा आवाज़ लगाएनि, अरे कहां हौ बिटिया......

आयशा तुरतै अपन ध्यान खिड़की त हटाएन और तख्त पर बिछौना बिछावति भै जवाब दीन्हेनि, आ रहिन अम्मीजान.. बस तुम्हार बिस्तर लगा रही रहन..

आयशा की अम्मा तेहि ले धीरे धीरे लकड़ी केरे सहारे अउर दीवार टटोलति भै हुअन लगे आ गईं। आयशा बिछौना बिछा ईं तो अम्मा ह्वानै पौढ़ि रहीं। आयशा नेरेहे याक खटिया पर लुढ़कि गईं। तनिक द्यार क चुप्पी क बाद आयशा क अम्मा बोलीं, बच्चा सबेरे अब्बा क खत लिख दीन्ह्यौ। और कल्लि ही स्पीड पोस्ट म डारि आएओ। अब्बा अबै लगे पैसा नाईं पठैएन। औ यहौ लिखि दीन्ह्यौ कि अब तौ गांवौं म दूध वाले और रिक्शावालेन तीर लगे मोबाइल हुइगै हैं। हुइ सकै तो एकु मोबाइल तुम्हरै हो खातिर भेजि दें। कब लगे दूसरेक घर जाक फोन सुना जाए। पीसीओह एत्ति दूरि है।

आयशा हूं हां करति रहीं। उनके मन मा तो यहै बात घूमि रही कि का गांवन म बत्ती हु क्यार मजहब क नाम प बंटावारा हुइगा है। कि कौने त्यौहार पर कौने गांव म रौनक रही अउर कौने गांव म अंधेरा।

वइसी आयशा क अम्मा धीरे धीरे बुदबुदा रहीं।

जवान बिटिया कब लगे गांव क चक्कर काटी। जल्दी त अपने घरै जाएं तो हमारि जिम्मेदारी पूरि होए।

का कह्यौ अम्मा?“ आयशा एकदम त चौंकि क बोलीं।

आयशा की अम्मा क चेहरा पर बिटिया त सरारत करै कि मुस्कान तैरि गै, कुछौ नाईं कुछौ नाई। अरे याहै पूछिति आए कि का इमरान क कौनौ खत आवा रहै का आजु?”

इमरान का नाम सुनतै आयशा सरमा गईं। अपने दुपट्टा म अपन मुहं छुपा लीन्हेनि। अम्मा उठि बैठीं तो आयशौ खटिया म उठि बैठि अउर अपन सिर अम्मा कि गोदी म धरि दीन्हेनि। बिटिया क सिर सहलावति भै अम्मा बोलीं, अरे तुम नसीब वाली हौ बिटिया। अब्बा तुम्हरे खातिर कित्ता मेहनती औ कित्ता सुंदर शौहर तलाशेनि है। उ तौ तुमका खतौ लिखन लाग है। मतलब कि हमरी बिटिया क अबहीं त चाहन लाग है।

अम्मा.....आयशा फिर ते शरमा गईं। लेकिन फूटे दीदन क अपनी बिटिया कि या लाज लाली भला कहां दिखाए। या किस्मत तौ कौनौ कौनौ महतारी ह क मिलति है। अम्मा बस मुस्कुरा क करवट बदलि लीन्हेनि। आयशा अब ना जानै का स्वाचन लागीं...।

(जारी...)

Friday, January 15, 2010

अवधी उपन्यास- क़ासिद (13)

शुक्लाजी अपने लरिका पर अपनी अम्मा क पानी छिड़कत देखेन त पानी केरि बूंदन त जइसे उन क्यार अतीत टपकन लाग। वा सामौ अइसिहि रहै। शुक्लाजी केरि छत पर तेरे तमाम टोली आवति दिखाई दे रही रहैं। जेत्ते लोग इ टोलिन म सामिल रहैं सब कि जबान पर याकै बात- जय श्री राम, जय श्री राम।

गांव क बाहर मंदिर त निकरी इ टोलिन म कम ते कम सौ डेढ़ सौ लोग रहैं। चहतीं तो इ लोग हिंदुआने की तरफ तेरे गांव में प्रवेस कइ सकत रहैं लेकिन इरादा पूजा क कम और दूसर जादा रहै। सब टोली मुसलमानी बस्तिन की तरफ रुख कइ लीन्हेनि। टोलिन केरे आगे चलै वाले लोग कमंडलन तेरे पानी की बूंदे आसपास गुजर रहे लोगन पर छिड़कति जा रहे।

मुसलमानी बस्ती तेरे टोली निकरीं तो मेहरिया अपने अपने लरिकन बच्चवन क घरन पर घसीटन लागीं। मुसलमानन क्यार किवाड़ खटाक खटाक बंद हुई रहै। याक आधी मजबूत दिल केरि मुसलमान मेहरिया किवाड़न की सांस त या फिर खिड़किन केरि दरार तेरे झांकि रहीं हैं। तबहिनै याक टोली शुक्लाजी की हवेली क सामने रुकि गै। इ छ्वार त हिंदुआने म घुसतै सबते पहिला घर शुक्लाजी क्यारै परति है। टोलिन म शामिल लोग और जोर जोर चिल्लान लाग – जय श्री राम, जय श्री राम।

सगरी टोली धीरे धीरे याक के पाछै याक शुक्लाजी की हवेली क समहै रुकन लागीं। पाछे अमीर हसन के टाल पर अब मुसलमानन केरि भीड़ लागन लागि है। लेकिन सब के सब मनई अहैं याकौ मेहरिया या लरिकवा नाईं। अमीर हसन टुकुर टुकुर शुक्लाजी की हवेली तन ताकि रहे। नेरेहे आयशा क अब्बा खान साहबौ ठाढ़ है।

शुक्ला जी धोती और कुर्ता पहिने घर ते निकरे। टोली क अगुआई कर रहे पांडे जी कमंडल त पानी लइके शुक्लाजी पर छिड़कन लाग। पाछे त निकरि कि दादी हू समहे आईं। दादी आचमन कीन्हेनि। थारी पर धरी शिलाएं पूजेन। धोती क खूंटे त निकारी क रुपया दीन्हेनि। एत्तेम टिल्लू हवेली त निकरि क बाहेर आगे। इ दादी क धोती पकरे नेरेहे ठाढ़ हैं। पांडेजी टिल्लू क देखि क मुस्करान। थारी त रोली लइके टिल्लू के माथे पर तिलक लगा दीन्हेनि। टिल्लू एत्ति भीड़ देखि क कुछ समझि नाई पाए। तिलक लगावा गा तो इ अपने पिताजी केरे नेरे ठाढ़ हुइगै। पाछे वाली टोली क्यार लोग दादी, शुक्लाजी और टिल्लू केरे ऊपर पानी छरकि रहे।

टिल्लू अइसिहि भीड़ थोरे दिन पहिले अमीर हसन क दुआरे दीखि तेइन। तब जानौ सुट्टू क अब्बा हज करै जा रहे रहै। समझिम तबहूं टिल्लू क जादा कुछ नाई आवा रहे। उनका बस यादि है तो एत्ता कि उन दिन सुट्टू गाना गा रहे रहै - मदीने वाले को मेरा सलाम कहना, मदीने वाले को...। सब टोली आगे निकरि गईं। दादी और शुक्लाजी हवेली क अंदर चले गे। टिल्लू देखेनि कि अमीर हसन के टाल पर लागि भीड़ अबहूं कम नाई परी है। टिल्लू का पता नाईं का एहसास भा इ गावन लाग - मदीने वाले को मेरा सलाम कहना, मदीने वाले को...।

अमीर हसन धम ते याक कुर्सी पर बैठि गै। और द्यार तक हिंदुआने तन जाती टोलिन कइहां द्याखति रहे। टोलिन म सामिल लोग अब्यौ कोलियन म पानी छिरकति जा रहे। जय श्री राम क नारा अब सुनाई तो परि रहे हैं लेकिन इन केरि आवाज अब कम परन लागि है।

तबहिनै हवेली क गेट खुला। शुक्लाजी एकदम त सनाका भै। खोपड़ि क झटका दीन्हेनि। और अबहिं अबहिं जौन कुछ उ सोचि रहे रहैं, वहिके मारे फिर ते याक दाय मैदान कि तरफ देखेनि। लेकिन हुआं तो अब कौनो नाई है। थोरी देर पहिले तक खेलि रहे रहै लरिकवऔ अब हुअन नाई हैं। शुक्लाजी हवेली क गेट तन देखेन। दादी हवेली म दाखिल हुई रही अहै। पाछे पाछे टिल्लू चले आ रहे। कमीज क आस्तीन त अपन मुंह पोंछि रहे, जानौ अपने ऊपर छिड़की गईं पानी क बूंदे साफ कर रहे। शुक्लाजी स्वाचन लाग उई पानी केरि बूंदन क बारे म जौनी शिला पूजन क बखत उन पर छिड़की गई रहैं – का फत्तेपुर चौरासी केरि गंगा जमुनी तहजीब पर उइ पानी की बूंदे तेजाब बनि कै गिरी रहैं?

(जारी....)

Tuesday, January 12, 2010

अवधी उपन्यास- क़ासिद (12)

कुबेरि बेरिया गांवन म वौ बखत होति है जब घरन के बाहर गोरु हरहा पहुंचन लागति हैं। जिनके घर मा लालटेन है उई लालटेन क सीसा साफ करैम औ मिट्टी का तेल चेक करन लागत हैं औ जिनके घर मां कुप्पी है उ अपनि अपनि कुप्पिन केरि बाती क्यार ल्यांड़ा झरिहा क कुप्पी जला देति हैं। येई बेरिया जादातर घरन म चूल्हा जलन लागत हैं जिन क्यार धुंआ गांव केरि कोलियन म महकनौ लागत है और आंखिन म करुवानौ लागत है। लोग अपने घरन तन चल परि हैं, लेकिन टिल्लू गांव क याक छ्वार पर बने मैदान याक बेरवा क तरे बैठ हैं। उन क्यार साथी संगी खेलि रहे लेकिन टिल्लू दूसरी छ्वार मुंह कीन्हे बैठि हैं। उनका अइसे बैठे द्यार हुइगै तौ लरिकवा टिल्लू के नेरे आ गे।

अरे अइसे नई दुल्हिनि कि नांय मूं छुपाए काहै बैठ हौ टिल्लू?”

लरिकवा आक टिल्लू तेरे चुहल करन लाग। याक लरिकवा क ऊ गाना याद आवन लाग जेहिके बारे में लोग कहत है कि यू गायक के एल सहगल कि नांय नाक ते गावति है। ऊ अपन सुर साधेसि।

झलक दिखला जा...

टिल्लू धीरे त पलटे औ तब सब लरिकन क जानि परा कि काहे टिल्लू उनकी तन पीठि कीन्हे बैठ रहैं। उनके हाथ म याक अखबार म लिपटे दुई खजूर लरिकवन क दिखाई परे। जेहिमत याक खजूर टिल्लू मुंह म धरेन और दूसरि कसि क हाथे म पकरि लीन्हेनि।

अरे कुछौ नाईं भाईजान। बस खजूर खा रहे रहन।

लरिकवन क मुंह ते लार असि टपकनि लाग। लेकिन अब याक खजूर क मारे को दंगा करै। सबते बड़ा लरिकवा बस एत्तै कहि पावा, भाइन ते दगा? अकेले अकेले खजूर?” कहे क साथे यू लरिकवा टिल्लू क हाथे ते कागज और खजूर क पन्नी लइकै अइसी वइसी पलटन लाग। तबहिनै वहिका पन्नी पर कुछ छपा भा समझि म आवा।

हूं...पैक्ड इन दुबई..बचुआ तुम्हरे घर ते तो कौनौ दुबई गा नाईं, फिर इ खजूर?”

टिल्लू क चेहरा एकदम त बदलि गा। इनका लाग कि चोरी पकरि गै। लेकिन, साथी संगिन त कौनु डर औ इनते का छिपावै क। टिल्लू साफ साफ बता दीन्हेनि।

अरे आयशा दीन्ह हइन।

टिल्लू क मुंह त आयशा का नांव क निकरा जैसै कौनौ बम फाट होए। सब लरिका याक साथ चिल्लान।

आयशा?”

ओ त्तेरे की.? तुम्हारि दोस्ती हुइगै वहितै? औ हम पंचन क कानों कान सूंघ तक नाई मिलीं। अरे वह तौ हूर परी है!!”

टिल्लू मुस्कान। उनका लाग कि बाजी अबै उनके हाथे त निकली नाई है। लरिकवा जौने जोश त आयशा का नाम सुनिकै पगलान वहितै टिल्लू क मन का बड़ा खुसी भै। उनका लाग जैसे उइ जगु जीति लीन्हेनि औ इस सब लरिकवा सार इन तो मीलन पीछे रहिगै। टिल्लू याक औरि सुरसुरी छोड़ेन।

का नाचति है आयशा...”.

अबकि कौन्यो लरिका केरे गरे त आवाज नाई निकरी। सब सनाका। सब याक दूसरे क मुंह ताकि रहे। सबके मन मा बस यहै बात कि पंडितन क्यार यू लरिकवा तो बहुतै तेज निखरा। यकीन तो सबका हुइगा कि टिल्लू जौनि बात कहि रहे वा सोलहौ आना सही है। लेकिन तबहूं...

कसम ति….” एकु लरिकवा क मन मा तस्दीक करै क इच्छा जागि परी।

टिल्लू तुरतै कसम खा लीन्हेनि। सांच क कौनि आंच।

फिर दूसर सवाल।

तुम कब देख्यौ।

अरे भइया। हमरी छति ते दिखाई परति है। आय़शा रोज़ सबेरे रियाज़ करती हैं और हमरी छत ते उन क्यार आंगन साफ दिखाई परति है।

सब लरिकवन क अबकी सच्ची म लाग कि टिल्लू जगु जीति लीन्हेनि औ इ पंचे बस गिल्ली डंडै ख्यालति रहिगै। सब याक दूसरे क हारे भै योद्धान कि नाई देखि रहै। सुट्टू क चेहरा तो ऐसे उतरि गा जइसे टिल्लू उन क्यार सब कंचा याके दांव म जीते लीन होएन। मन मसोसि क रहिगै कल्लू, तुम्हारि तो निकरि परी टिल्लू यार। ...अच्छा हमका दिखा सकति हौ आयशा क्यार रियाज़?” सुट्टू अइसे पूछेनि जैसे कहि रहे होए कि भैया पतवार तो तुम्हरे है हाथ म रही अब, बस एहिके पहिले क हम किनारे पर छूटि जाइ, नांव म चढ़ा लेओ।

टिल्लू क मुंह ते निकरहै वाला रहे कि काहे नाई भाईजान तुम्हू आ जाओ कल्हि सबेरे। लेकिन फिर उनका दादी क्यार चेहरा यादि आगा। पांय क अंगूठा त मिट्टी कुरेदति भै बोले, ना भाईजान। आप कइसे देखि पइहौ। आप तौ मुसलमान हौ। औ दादी कबहूं याक मुसलमान क अपनी अटारी पर चढ़ै खातिर हां ना कहिहैं।

सुट्टू बात समझि गै। लेकिन दूसर लरिकवा जौन अब सुट्टू त उमरि म कम हैं, उई पूछि बैठि, यू हिंदू मुस्लिम क झगड़ा का है भाईजान?” सुट्टू क मुंह पहिलेहे त उतरा रहै, यू सवाल सुनि कै ऊई दूसरि घांई द्याखन लाग। टिल्लू क्यारौ चेहरा अबकि उतरि गा कि इ चाहैं तोऊ अपने साथिन क अपनी छति पर नाई लै जा सकत। टिल्लू क लाग कि उनके आंसू निकरि अइहैं, सो उइ उठि कै घर तन चलि दीन्हेनि। सब लरिकवौ पीछे पीछे अपने अपने घरन तन चलि दीन्हेनि। सुट्टू अबै लगे आसमान तन ताकि रहे रहैं एकदम त उनका लाग कि सब लरिकव म उई सबते बड़े हैं तौ उई दौरि क एकदम त टिल्लू क तीर पहुंचे औ उनके कंधा पर हाथ धरि दीन्हेनि।

अरे, तुम काहे परेसान होत है टिल्लू। हम पंचै जब बड़े होब तब यू सब झगड़ा झंझट खतम कर देबे। तब तौ तुम आवै द्याहौ न हमका अपनी छति पर।कहिकै सुट्टू टिल्लू केरि पीठ पर धौल जमाएन। टिल्लू क लाग जइसै उनके करेजे पर ते बोझु उतरि गा होए। उई सुट्टू तेरे हाथ मिलाएन, दून्हू दोस्त गले मिलै लाग। टिल्लू सुट्टू केरे गले लाग तो सामने त दादी मंदिर तन ते आवति दिखाई परीं। हाथे म पूजा की थाली और साड़ी क पल्ला खोपड़ी पर। तबहीं दूर गांव की मस्जिद तेरे अजान की आवाज़ सुनाई परनि लागि...अल्लाहो अकबर अल्ला...हो अकबर।

टिल्लू दौरि क दादी तीर पहुंचे, लेकिन एहिके पहिले टिल्लू दादी तेरे लिपटि पावें, ऊई हाथे त दूर रहै क्यार इशारा करन लागीं। टिल्लू समझि गै कि दादी उनका सुट्टू केरे गले लागत देखि लीन्ह हइन। बेचरेऊ चुप्पै दादी त थोरी दूर पर साथै साथ चलन लाग। दादी पूजा केरे लोटा तेरे जल लीन्हेनि औ टिल्लू पर छिरकन लागीं।

ओम अपवित्रा वा पवित्रो वा सर्वांगतोपि वा।

या स्मरेत पुण्डरीकाक्ष स बाह्याभ्यंतर: शुचि:।।

दादी औ टिल्लू घर तन बढ़ति जा रहे। दूर अपनी छत पर ढाढ़ शुक्लाजी यो सब देखि रहै। उनका बीते दिनन केरि बातैं यादि आवन लगती हैं।

(जारी...)