Friday, November 14, 2008

...पर ज़बां हो दिल की रफ़ीक


(हसरत मोहानी - १)

- पंकज शुक्ल

यह बात तबकेरि आय जब हम पत्रकारिता केरि पढ़ाई कर रहेन रहै। तब दैनिक जागरण, कानपुर क्यार याकै पत्रकार और कवि हम पंचन का पत्रकारिता पढ़ावै आवत रहैं। उन तेरे हम याक दिन ऐसे हे पूछ दीनि कि पंडित जी यौ बताओ, डायरेक्टर बी आर चोपड़ा केरी पिच्चर निक़ाह मइहा गुलाम अली केरि जौनि गजल– चुपके चुपके रात दिन आंसू बहाना याद है- बहुत हिट भै रहै, वहिके लिखे वालै को हैं। पंडित जी खट्ट त बोले- हसरत मोहानी। हम कहा – उई कहां के रहै वाले रहैं। पंडित जी बोले- पाकिस्तान। हम कहा गलत। ऊ रहइया रहै उन्नाव क्यार। उनकी आंखी क दीदा फइल गा। कहै लाग का कहत हौ पंकज। हम कहां हां। पहिले तो या बात हमहूं का मालूम ना रहै। लेकिन याक दांय हम लखनऊ त स्कूटर त आवै खातिर बजाय बंथरा बनी नवाबगंज होइके आवैक, कउनिउ दूसरिहि रस्ता पकड़ि लीनि। यह रस्ता मोहान त होइके निकरति रहै। मोहान मइहां याक जगह हम पानी पियेक खातिर एकु हैंड पंप देखि के रुकेन, तो दीखि कि हुअन एकु पत्थर लाग है। पत्थर म लिखा रहै कि मशहूर स्वतंत्रता सेनानी हसरत मोहानी सन 1875 म ह्ययानै पैदा भे रहैं। एहि के बादि हसरत मोहानी पर हम जित्ता पढ़ै क कोसिस करत गएन, उन केरे बारे में याक त याक जानकारी मिलति गै। सायर तो खैर उई मशहूर रहिबै कीनि, स्वतंत्रता सेनानी हू उइ नंबर याक क्यार रहै।

आज़ादी की लड़ाई म हसरत मोहानी बहुत मेहनत कीन्हैंनि। बेचरेऊ बहुत मारे गै और कई दांय जैले गए, लेकिन आज़ादी क बाद उनका ना तो कांग्रेसी याद राख्यैन और ना मुस्लिम लीग वाले। महात्मा गांधी तेरे बहुत साल पहिले हसरत मोहानी (असली नाम फ़ज़ल उल हसन) मुकम्मिल आज़ादी (पूर्ण स्वराज्य) केरि मांग कीनि तेइन। तब गांधी तो गांधी बल्कि अउरौ तमाम लोग हसरत मोहानी केरि खिल्ली उड़ाइ तेइन। या बात आय सन 1921 केरि अउर अहमदाबाद केरे कांग्रेस अधिवेशन मइहा हसरत मोहनी मुकम्मिल आज़ादी क्यार प्रस्ताव पेश कीनि तेइन। तब गांधी जी एहि क्यार ना केवल विरोध कीन्हेनि बल्कि कामनवेल्थ केरे भीतर हिंदुस्तान खातिर डोमीनियन स्टेटस केरि वकालतौ वोइ कीन्हि तेइन। वकालत तो खैर गांधी जी बहुत पढ़ी तेइन, लेकिन जौइने टाइम म हसरत मोहानी अंग्रेजी हुकूमत केरे खिलाफ अपने अखबार उर्दू ए मुआल्ला मइहा लिखा करति रहै, बड़े बड़े कांग्रेसिहू अंग्रेजन केरि मुखालिफत करै तेरे डरत रहैं। मक्का, मथुरा अउर मास्को केरि लाइन पर चलै वाले हसरत मोहानी अगले साल यानी 1922-23 मइहा खिलाफत आंदोलन और असहयोग आंदोलन मइहा बढ़ि चढिकै हिस्सा लीन्हेनि। कांग्रेस तेरे उन क्यार रिश्ता 1929 मइहा नेहरू रिपोर्ट आवै क बाद टूट। कमै लोग जानत हुइहैं कि बादि म येई हसरत मोहानी कम्युनिस्ट पार्टी ऑफ इंडिया केरे पहिले सम्मेलन केरि नींव धरेन। अउर मुस्लिम लीगौ क्यार उई याक दांय अध्यक्ष बने। पार्टी बाज़ी तेरे उई चाहे जित्ता नाराज़ रहै होएं, लेकिन बंटवारा भा तो उइ फैसला कीन्हेन कि भारतै म रहब। संविधान बनावे वाली कमेटी म हसरत मोहानी हू सामिल रहैं। या बात अउर है कि बाद म उइ एहि पर दस्तखत करै त मना कइ दीन्हेनि।

जानकार लोग हसरत मोहानी केरि तुलना मशहूर रूसी लेखक गोर्की तेरे करत हैं। अउर मजे कि बात या है कि हरसत मोहानी केरि सोच जहां लेनिन तेरे बहुत प्रभावित रहै, ह्औने गोर्की केरे लेखन पर गांधी क्यार बहुत असर रहा। मोहानी और गोर्की दून्हों मुफलिसी क्यार खराब तेरे खराब दौर देखेन, लेकिन जउन बात इ लोग याक दांय मन मा ठानि लीन्हेनि, वेहि ते टस ते मस ना भे।

उनक्यार एकु शेर उनके बारे म सब कुछ साफ साफ कहि देति है-

हज़ार खौफ़ हों पर ज़बां हो दिल की रफ़ीक
यही रहा है अज़ल से कलंदरों का तरीक़..

(जारी...)

Friday, October 17, 2008

अलैया बलैया या कि बल्ला उपला

मुंबई
17 अक्टूबर।

आज भोरहरे तेरे खिड़की के पास बइठि क यू सोचित आए कि का वाकई मा ऊई सारी बातै बिला जइहैं, जिनका देखि के हम पंचे बड़े भएन। काल्हि मुंबई म बहुत गर्मी रहै, टेंपरेचर 37 डिग्री के आसपास रहै। शाम क तनुक मौसम जुड़ान तो हम कहा कि चलौ थोड़ी द्यार टहिल लीन जाए। टहलत टहलत बड़ी देर हुइगै और तेहिलेहे हमार याके संगी होनै आईगे। खाना खाएक वक्त हुइगा रहै तो हम पंचै चले गेन पास क याक रेस्टोरेंट मइहां।

बात चलि परी दिल्ली ते शुरू भै हिंदी अख़बार नई दुनिया केरि। एहि की संडे मैगज़ीन में एकु लेख होली क्यारो छपा रहै। एहिका हिंदी क्यार याके बड़े लेखक लिखा हइन। ऊ लेख म पंडित जी लिखेन कि उई होली में अलैया बलैया डारै जात रहैं बचपन मा। और या बात उनका अबहूं याद है। होली जलावे के बाद और अगिले दिन होली मनावे क किस्सौ ऊई बहुत विस्तार तेरे लिखेन। हम अपने साथी त यौ पूछा कि अच्छा बताओ अलैया बलैया होली म डारी जाती हैं कि दीवाली म। ऊई भौचिकिया गे। कहै लाग हां अलैया बलैया डारी जाती हैं, हमहूं गे हन डारै। लेकिन हम कहा सवाल क चकरघिन्नी ना बनाओ, यू बताओ कि अलैया बलैया होरी म डारी जाती हैं कि दीवाली म। ऊई कहै लाग अरे अलैया बलैया वहै ना जेहिम उपला वुपला डारे जात हैं। हम कहा सनई जानत हौ। तनिक द्यार तक ऊई सोचेन फिर कहै लाग कि हां वा सफेद वाली रस्सी जेहिते खटिया कि अरदवाइन कसी जाति है। हम कहा खूब पहिचान्यौ। तो हम पूछा कि या सनई की रस्सी बनति कइसे है, ऊई कहै लाग कि अरे बिरवा में सफेद सफेद रेशा निकरत हैं, वही त रस्सी बनत है। हम कहा सरऊ सफेद रेसा बनै ते पहिले औरौ बहुत पापड़ बेलाई होति है। पहिले सनई के बिरवा जौन अर्हा के बेरवा के एत्ते लंबे लंबे होत हैं उनका काटि के गट्ठर बनाए जात हैं। फिर ई गट्ठर गांव के कौनो ताल तलैया म डारे जात हैं। भैया बोले- हां साफ करै खातिर। हम बतावा- कि साफ करै खातिर नाई, सरऊ सड़ावै खातिर।

जब सनई के बेरवा क्यार तना पत्ता सब दस पंद्रा दिन मा गलि जात हैं तो गट्ठर सूखै खातिर धूम म डारि दीन जाति हैं। फिर बेरवा केरि छाल सनई बन जाति है और वहिके तना केरि लकड़ी ईंधन केरे काम आवित है। एहिकौ सरसों के सूखे बेरवा की नाईं पिंजी कहा जाति है। हुई सकत है यूं नांव पिंजर तेरे बना होए। तो सनई की पिंजी क्यार छोट छोट गट्ठर बनाएक वहिंमा थ्वारा मकहरा (मकई क्यार सूख पौधा) बांधा जाति है। बांधे खातिर खटिया बिने तेरे बचिगा बान इस्तेमाल कीन जाति है। और यू जौन बनकि तैयार होति है वा है अलैया बलैया। और अलैया बलैया होरी म नाई बल्कि दीवाली म जलाई जाती हैं। बरसात के बाद घर की साफ सफाई त बचा कचरा गांव के बाहर जलावै की परंपरा बाद म सायद रस्मी बनिगै और अलैया बलैया वही क रूप है। होली म जौन चीज़ जलाई जाति है वहिका कहत है बल्ला उपला। ई गोबर तेरे बनत है। छोट छोट उपलन केरि बान तेरे माला बनाई जाति है और फिर ई माला लइके हम पंचौ जाइत रहै गांव के बाहर होली जलावै। हमार साथी बड़ी द्यार तक हमरी तरफ द्याखत रहे, उनके कुछ समझि आवा औ कुछ ऊई समझेक ड्रामा करत रहै। तो हम कहा कि संडे नई दुनिया क्यार ऊ अंक म हमरे दिल्ली वाले घर मा धरा है। अगली दांय जइबै तो लेते अइबे। हिंदी के तमाम धाकड़ कहै जाए वाले पुरान लेखक यू समझत हैं कि लोक परंपरा आज क्यार लोग बिल्कुल भुला गे हैं तो ऊई जो कुछ लिखि द्याहैं ऊ ब्रह्मा क वाक्य हुई जाई। अइस है नाई पंडित जी। अलैया बलैया अऊऱ बल्ला उपला म बहुत फर्क है और यू फर्क कम ते कम हमका त अबहूं याद है। आगे आवै वाली पीढ़ी क यू याद रही कि नाई पता नाई। नागर साहब तनुक हल्का हाथ धरौ।

कहा सुना माफ़,

पंकज शुक्ल

Tuesday, October 07, 2008

किस्सा पांडे सीताराम सूबेदार

बात आगे बढ़ावै ते पहिले पहिले तनुक बानगी द्याखौ। ई कुछ प्रसंग आहीं जउन याक अवधी किताब तेरे लीन गे हैं।

1. ठगी क्यार प्रसंग:....रात मा जब हमरे सब रुकेन तौ हमैं इहै सोचि-सोचि कै बहुत देर तक नींद नहीं आई कि ई सब ठग हैं! हम जागै कै पूरी कोसिस किहेन लेकिन थोडी देर बाद सोइ गयन! कुछै देर बीता कि हमार आंख मुर्गा के बांग अस आवाज से खुलि गय! हम उठि के बैठ गयन तो देखेन कि मजदूरन मा से एक-दुइ मनई हमरे लोगन के लगे हैं जे सोवत रहे! हम बहुत जोर से चिल्लायन और हमरे मामा तुरंतै तलवार लइ कै उनकी ओर लपके! ई सब पलक झपकत भय लेकिन तब तक ठग देवनारायन के भाई कै रेसम कै रस्सी से गटई घोंटि चुका रहे और तिलकधारी का बेहोश कई दिहे रहे! मामा तिलकधारी के उपर खडे ठग का काट डारिन और तिलकधारी कै जान बचि गय! यतनी देर मा ठग हमरे मामा कै सोना वाली जंजीर चोराइ लिहिन जेकर दाम अढाई सौ रुपया रहा और तिलकधारी कै तमंचा लै उडै! वहि समय पहरा देय कै जिम्मेदारी तिलकधारी कै रही लेकिन वै सोइ गय रहे! ....
2. लरिकवा क गोली मारै क्यार प्रसंग:.....एक दिन लखनऊ के लगे एक घरे मा कयू जने पकरि लिहा गए! वै सब सिपाही रहे! ओन्हैं पकरि कै, बान्हि कै हमरे रेजीमंट कै कमांडर के आगे पेस किहा गय और अगले रोज सबेरे आडर भय कि सबका गोली मारि दिही जाय! वहि समय फैरिंग पारटी हमरे जिम्मे रही! हम सिपहियन से ओनके नावं और रेजीमंट पूछेन! पांच-छह जने के बाद एक सिपाही वहि रेजीमंट कै नांव लिहिस जेहमा हमार बेटवा रहा! हम ओसे पुछेन कि का ऊ लैट कंपनी कै अनंती राम का जानत है औ उ कहिस कि ई वही कै नांव है! अनंती राम बहुत जने कै नांव होत है यहि मारे हम पहिले ज्यादा ध्यान नहिं दिहेन! दुसरे, हम पहिलेन मानि चुका रहेन कि हमार बेटउवा सिंध मा बुखार से मरि गय एहसे बात हमैं नहीं खटकी लेकिन जब ऊ कहिस कि ओकर गांव तिलोई है तौ हमार करेजा हक्क से होइ गय! का ऊ हमरै बेटवा रहा? यहि मा कौनौ सक नही रहि गय जब ऊ हमार नांव लइकै कहिस कि वै हमरे बाबू आंय! फिर ऊ हमसे माफी मांगत हमरे गोडे पै गिरि परा! ऊ अपने रेजीमंट के बाकी सिपहियन के साथे गदर मा चला गय रहा और लखनऊ आइ गय रहा! एक दायं जौन होय क रहा, होइ गय; ओकरे बद ऊ का करत? अगर ऊ भगहूं चाहत तौ कहां जात?ओन्हैं सब का संझा कै चार बजे गोली मारि जाय का रही औ अपने बेटवा का गोली मारै का काम हमहीं का करे का रहा! ई है किस्मत?......
3. काहे भा ग़दर :.....गदर कै आग मुसलमान लगाइन और हिंदू भेडी यस ओनके पीछे-पीछे नदी मा चला गए! बगावत कै असल कारन ई रहा कि सिपहिन का ताकत कै नसा होइ गय रहा और अफसरन के लगे ओन्हैं रोकै कै ताकत नहीं रही! एसे सिपाही ई समझि लिहिन कि सरकार ओनसे डेरात है जबकि सरकार ओनपै भरोसा करत रही, यहि मारे कुछ नही कहत रही! लेकिन केहु के बेटवा बागी होइ जाय तौ ओहका घरे से नहीं निकारि दीन जात! हमैं लागत है कि यहि गदर के लिए बागी बेटवा का जौन सजा मिली है ओकर असर बहुत दिन तक रही। .....भ्रष्टाचार पर विचार:.....बरतानी अफसर ई सुनिकै बहुत गुस्सा होइ जात हैं कि केहू घूस दिहिस है! ओसे पूछा जात है ऊ घूस काहे दिहिस! ओका सायद नहीँ पता होत कि ऊ मनई इहै सोचि कै घूस देत है कि घूस कै कुछ पैसा साहब के लगे जात है! यही मारे ऊ साहब से कुछ कहत नही काहे कि चपरासी से लइकै किलरक तक सब ओसे इहै कहत हैं कि पइसा सहबौ क गय है! हम यस कौनो दफ़्तर के बारे मा नहीं सुनेन जहां किलरक ई न कहत होंय कि साहब घूस लेत हैं! वै चाहत हैं कि घूसखोरी चला करै काहे कि ओनकै तौ जिन्नगी यही से चलत है! हमरे गांव कै पटवारी एक रोज हमसे कहिस कि हमरै गलती रही होई जौन हम्मैं तरक्की नहीं मिली या यतनी देर से मिली!......वइसे बिलैती और हिंदुस्तानी सिपहियन मा ई खुब चलत है और घूस के मामला मा ओनमा कौनो फरक नहीं है! हम जानित है कि साहब लोग घूस नहीं लेते लेकिन हमसे ज्यादा पढा-लिखा कयू मनई दावा से कहत हैं कि साहब लोग घूस लेत हैं! जब वै खुदै इहै काम करत हैं तौ और काव कहिहैं?.....

अब हम तुम पंचन का बताई इ किस्सन की असली बात। इ सब किस्सा लीन गे हैं किताब- किस्सा पांडे सीताराम सूबेदार तेरे। सूबेदार सीतारान (१७९७-१८८०) ईस्ट इंडिया कम्पनी औ फिर अंग्रेज सेना मइहां याक सिपाही केरि तरह काम कीन्हेंन। ऊइ पेंशन लइके रिटायर भे रहैं। सीताराम अवध इलाका क्यार रहैं और ऊइ खुदै अपनि आत्म कथा अवधी मइहां १८६०-१८६१ केरे बीच लिखी तेइन। बादि मइहां अहिक्यार अनुवाद अंगरेजी मइहां जेम्स नोर्गत कीन्हेन। ई किताब कित्ता खास रहै एहि क्यार पता एही बात तेरे चलत है कि अंग्रेजन क टाइम नौकरी खातिर आवै वालेन कइहां या किताब पढ़ब ज़रूरी रहै और एहि केरि याक परिच्छौ होति रहै।

किस्ता पांडे सीताराब सूबेदार क्यार जौन रूप अब मिलति है, वौ सीताराम पांडे क्यार लिखा ना आए। या किताब बाद मइहां मशहूर पत्रकार मधुकर उपाध्याय (पहिले उइ बीबीसी केरी हिंदी सेवा म रहैं फिर हिंदुस्तान आइके औरी औरी जगह काम कीन्हेन। सन १९१५ मइह सर गिरिजाशंकर वाजपेयी सिविल सेवा केरे अपने इंटरव्यू मइहा कहा तेइन कि या किताब सीताराम पांडे ने उनके दादा कइहां दीन तेइन। बादि म वोउ या किताब पढेन लेकिन बाद मइहां या किताब उनते कहूं खो गै। मधुकर उपाध्याय अहिका ढूंढेक बहुत कोशिश कीन्हेन लेकिन बेचरेउ ढूंढि ना पाए। फिर उइ यह किताब फिर ते लिखेनि अउर अवधी म लिखेनि। या किताब कुछ साल पहिले नई दिल्ली केरे सारांश प्रकाशन तेरे छपी रहै।

Sunday, September 28, 2008

यह किसान की दुनिया



जमींदार कुतवा अस नोचैं देह की बोटी-बोटी,
नौकर प्यादा औरु करिन्दा ताके रहै लंगोटी।
पटवारी खुरचाल चलावैं बेदखली इस्तीफा,
रोजई कुड़की औ जुर्माना छिन-छिन नवा लतीफा।
मोटे-झोटे कपड़ा-बरतन मोटा-झोटा खाना,
घर ते खेत ख्यात ते बग्गरू कहूं न आना जाना।
नंगा ठग्गा इज्जाति पावै किमियागर पुजवावै,
जहां जाय तहं ठगि कै आवै यह किसान की दुनिया।


-रचयिता: पंडित वंशीधर शुक्ल


(उत्तर प्रदेश म लखीमपुर जिले के मन्यौरा गांव में सन् 1904 पैदा भे पंडित वंशीधर शुक्ल अवधी अउर खड़ी बोली के मशहूर कवि रहैं। पंडित जवाहर लाल नेहरू केरे कहै पर उइ याक दांय "खूनी पर्चा" नाम केरि एक कविता लिखी रहिन। उत्तर प्रदेश कांग्रेस कमेटी वा कविता बगैरि उनके नाम केरे छपवा के बंटवाइस ताकि अंग्रेज लोग लिखै वाले क खिलाफ कौनो कार्रवाई ना करैं। ई पंडित वंशीधर शुक्लै आहि जउन आज़ाद हिंद फौज म गावै जाए वाला गीत "कदम-कदम बढ़ाये जा खुशी के गीत गाये जा;
ये जिंदगी है कौम की तू कौम पे लुटाये जा" लिखा तेइन। "उठ जाग मुसाफिर भोर भई, अब रैन कहां जो सोवत है" के रचियतौ पंडित जी ही रहैं, यू गीत रफी अहमद किदवई क इत्ता नीक लाग कि उइ अहिका गांधी जी के लगे भिजवा दीन्हेन। तब ते यू गीत गांधी जी की प्रार्थना सभौ म गावौ जाए लगा। किसानन पर लखी उनकी ऊपर वाली कविता सालन पुरानि है, लेकिन आजौ हालात तनकौ बदिले नाई हैं। पंडित वंशीधर शुक्ल लखीमपुर ते समाजवादी दल क्यार विधायकौ रहि चुके हैं।)

Friday, September 26, 2008

झाड़े रहौ कलक्टरगंज...


हम पंचै जब ते गांव छोड़ि के शहर में पढ़ाई करै पहुंचेन, गांव देहात की बोली छोड़ि क खड़ी बोली ब्वालै लागेन। गांव वाले दादा की पहली बहुरिया तक तो सब कोई देहाती ही म ब्वालत रहा। लेकिन, जइसेहे गांव म दूसरि बहुरिया लखनऊ त आई, सबका जइसे खड़ी बोली का भूत सवार हुइगा। वैसे इ भाभी कबहूं लखनऊ की नज़ाकत नाईं दिखाएन औ बिचरेउ कबहूं गोबर तो घर लीपें तो कबहूं चूल्हा म रोटी बनावै। यहौ नाईं गांव की देहाती बोली हू ब्वालै लागीं। लेकिन हम पंचै सब खड़ी बोली अइसे पकड़ेन कि अगली पीढ़ी म अब कोऊ गांव की बोली ब्वालै वाला नाईं बचा। कमै लोग जानत हुइहैं कि अवध इलाके की इ अवध बोली का मुंबई त लइकै विदेसन तकौ म खूब बोल बाला रहि चुका है। पहिले राजकपूर और राजश्री की फिल्मन म याक दुई डॉयलॉग ज़रूर अवधी म होति रहै। लेकिन फिर पहिलै दिलीप कुमार और बादि म अमिताभ बच्चन अवधी-भोजपुरी सब याके म मिलाए दीन्हैन। के पी सक्सेना की बलिहारी है कि उ आमिर खान तेरे लगान में उन्नाव-लखनऊ की बोली बुलवावै की खूब कोशिश कीन्हेन। पहिले लगान की कहानी उन्नाव के किसानन की कहानी रहै, लेकिन बाद में पड़ोसी ज़िला हरदोई क रहैया आमिर खान या कहानी लइ जाए क मध्य भारत के कौनो गांव में फिट कइ दीन्हैन। हुई सकत है कि आमिर ख़ान इ बात त डेराय गे होए कि उन्नाव का जिक्र तो पहिले उमराव जानौ म हुई चुका है। जी हां, खूब पहिचान्यो रेखा होएं चाहें ऐश्वर्या राय, दून्हो याको डॉयलॉग लगै अवधी म नाई बोलेन, अपनी पिक्चर मा। जबकि उमराव जान का बसेरा कुछ दिन उन्नावौ म रहि चुका है।
अवधी की बात पर याद आवा कि याकै रहें बहिरे बाबा। उनक्यार नाम वैसे त रहै चंद्र भूषण त्रिवेदी उर्फ रमई काका मुला आकाशवाणी लखनऊ क्यार नाटक बहिरे बाबा उनका फेमस कइ दिन्हेस, बहिरे बाबा के नाम से। उन्नाव क्यार वइसे तो बहुत लोग बहुत नाम कमाइन लेकिन कुछ लोगिन के नाम से उन्नाव दुनियाभर मा मशहूर है। बहिरे बाबा का नाम हमका याद है। यहौ कहा जाति है कि चंद्रशेखर आज़ादौ उन्नाव के बदरका गांव म पैदा भे रहैं, कुछ लोग कहत हैं कि उई पैदा तो भे रहैं मध्यप्रदेश म, लेकिन उनके घर वाले बादि म हियां आइकै बसि गे। सूर्यकांत त्रिपाठी “निराला” क नाम त सबका मालूम है। अउरौ गांव जेवार के तमाम लोग मशहूर भे। आज़ादी से पहिले महात्मा गांधी याके दांय हमरे गांव आए रहैं। हमार बाबा स्वर्गीयत पंडित सुंदर लाल शुक्ल वैद्य उनके साथै दाने बाबा के चउतरा पर तब बैठकी कीन्हि तेइन। कहा यहौ जाति है कि उनके साथ जवाहर लाल नेहरू हु रहैं, लेकिन 24 साल पहिलै गुजरि चुकीं हमरी दादी क गांधी जी के अलावा अउर कउनो का नाम यादि ना रहै। सफीपुर के भगवती चरण वर्मा साहित्य संसार में मशहूर भे तो शिव मंगल सिंह सुमनौ खूब नाम कमाइन। विशंभर दयालु त्रिपाठी तो खैर मशहूर कांग्रेसी आहिं, लेकिन उनके हे घर के विश्वदीपक त्रिपाठी की आवाज़ हम बीबीसी लंदन से बचपन में खूब सुनेन। उनकेरि आवाज़ अबहूं हमरै कानै में गूंजित है, “ये बीबीसी लंदन है। लंदन की घड़ियों में इस वक्त दोपहर के ढाई बजे हैं और भारत में रात के आठ। मैं हूं विश्वदीपक त्रिपाठी और पेश है आजकल।”
बादि के दिनन म राजश्री पिक्चर्स क्यार कानपुर के मंजूश्री टाकीज़ म दफ्तर चलावै वाले तिवारी जी बताइन कि मनमोहन देसाई की पिक्चर लिखै वाले के के शुक्ला ऊगू क्यार रहैं। ऊगू क नांव उमाशंकर दीक्षितौ खूब रौशन कीन्हेनि। उनके लड़िका विनोद दीक्षित साथै बिहाव कइकै कन्नौज केरि शीला, शीला दीक्षित भई। बेचरेऊ उन्नाव ते लोकसभा का चुनाव लड़ीं तौ हार गईं। और किस्मत देख्याओ अब दिल्ली केरि मुख्यमंत्री हैं। हम सतईं म रहन जब उमाशंकर दीक्षित हमरे कॉलेज जवाहर लाल नेहरू इंटर कॉलेज, फतेहपुर चौरासी आए रहैं। हम स्काउट की वर्दी पहिन कै उनक्यार स्वागतो कीन। उन्नाव के राजा जसा सिंहौ अंग्रेजन ते लड़ाई लड़ि कै नांव कमाइन। याक दांय हम लखनऊ त स्कूटर त घरै आइत रहै तो बजाय उन्नाव हुई कै आवै क हम दूसरै कौनो रास्ता पकड़ लीन। राहै में याकै गांव म पानी पिये खातिर रुकेन। टील्ला पर इंडिया मार्का हैंड पंप लाग रहै, हुअन चढ़ि के गएन तो दीख कि हुआ एक पत्थर लाग है। पत्थर पर लिखा रहै कि उर्दू के मशहूर शायर हसरत मोहानी क्यार जन्म ह्यानै भा रहै। इ वोई शायर आहीं जिनकेरि ग़ज़ल बी आर चोपड़ा केरि पिक्चर निक़ाह में ग़ुलाम अली गाईन। वइसे पत्रकारिता की कक्षा म सुरेश त्रिवेदी क जब या बात बताई तो उ मानै क तैयार ना भे। हसरत मोहानी आज़ादी की लड़ाइहू म शामिल रहैं।
उन्नावै के परियर म बतावा जाति है कि सीताजी घर ते निकारै जाय क बादि रही रहै। और यौ नांव परिहरि केरे अपभ्रंश त बना है। खैर उन्नाव के बारे में हियन बात करै का प्रसंग तो अइसे ही छिड़िगा, मूल बात रहै अवधी में लिखै कि। हिया, हुआं जहां कहूं त कुछौ अवधी म मिला, हम कोशिश करब कि सब तक पहुंचै। और आपौ लोग केवल पढ़ि के चुप्पै ना रहि जाय्यौ, कुछौ लिखौ लेकिन इ बोली को बचाए खातिर ज़रूरी है। अपने लड़िका बिटियौ त कम ते कम पूर दिन मा याक दांय अवधी म ज़रूर बात करौ। उन्हूंन क तो पता चलै कि कित्ती मिठास है इ रामजी की बोली मा।