Sunday, September 28, 2008

यह किसान की दुनिया



जमींदार कुतवा अस नोचैं देह की बोटी-बोटी,
नौकर प्यादा औरु करिन्दा ताके रहै लंगोटी।
पटवारी खुरचाल चलावैं बेदखली इस्तीफा,
रोजई कुड़की औ जुर्माना छिन-छिन नवा लतीफा।
मोटे-झोटे कपड़ा-बरतन मोटा-झोटा खाना,
घर ते खेत ख्यात ते बग्गरू कहूं न आना जाना।
नंगा ठग्गा इज्जाति पावै किमियागर पुजवावै,
जहां जाय तहं ठगि कै आवै यह किसान की दुनिया।


-रचयिता: पंडित वंशीधर शुक्ल


(उत्तर प्रदेश म लखीमपुर जिले के मन्यौरा गांव में सन् 1904 पैदा भे पंडित वंशीधर शुक्ल अवधी अउर खड़ी बोली के मशहूर कवि रहैं। पंडित जवाहर लाल नेहरू केरे कहै पर उइ याक दांय "खूनी पर्चा" नाम केरि एक कविता लिखी रहिन। उत्तर प्रदेश कांग्रेस कमेटी वा कविता बगैरि उनके नाम केरे छपवा के बंटवाइस ताकि अंग्रेज लोग लिखै वाले क खिलाफ कौनो कार्रवाई ना करैं। ई पंडित वंशीधर शुक्लै आहि जउन आज़ाद हिंद फौज म गावै जाए वाला गीत "कदम-कदम बढ़ाये जा खुशी के गीत गाये जा;
ये जिंदगी है कौम की तू कौम पे लुटाये जा" लिखा तेइन। "उठ जाग मुसाफिर भोर भई, अब रैन कहां जो सोवत है" के रचियतौ पंडित जी ही रहैं, यू गीत रफी अहमद किदवई क इत्ता नीक लाग कि उइ अहिका गांधी जी के लगे भिजवा दीन्हेन। तब ते यू गीत गांधी जी की प्रार्थना सभौ म गावौ जाए लगा। किसानन पर लखी उनकी ऊपर वाली कविता सालन पुरानि है, लेकिन आजौ हालात तनकौ बदिले नाई हैं। पंडित वंशीधर शुक्ल लखीमपुर ते समाजवादी दल क्यार विधायकौ रहि चुके हैं।)

Friday, September 26, 2008

झाड़े रहौ कलक्टरगंज...


हम पंचै जब ते गांव छोड़ि के शहर में पढ़ाई करै पहुंचेन, गांव देहात की बोली छोड़ि क खड़ी बोली ब्वालै लागेन। गांव वाले दादा की पहली बहुरिया तक तो सब कोई देहाती ही म ब्वालत रहा। लेकिन, जइसेहे गांव म दूसरि बहुरिया लखनऊ त आई, सबका जइसे खड़ी बोली का भूत सवार हुइगा। वैसे इ भाभी कबहूं लखनऊ की नज़ाकत नाईं दिखाएन औ बिचरेउ कबहूं गोबर तो घर लीपें तो कबहूं चूल्हा म रोटी बनावै। यहौ नाईं गांव की देहाती बोली हू ब्वालै लागीं। लेकिन हम पंचै सब खड़ी बोली अइसे पकड़ेन कि अगली पीढ़ी म अब कोऊ गांव की बोली ब्वालै वाला नाईं बचा। कमै लोग जानत हुइहैं कि अवध इलाके की इ अवध बोली का मुंबई त लइकै विदेसन तकौ म खूब बोल बाला रहि चुका है। पहिले राजकपूर और राजश्री की फिल्मन म याक दुई डॉयलॉग ज़रूर अवधी म होति रहै। लेकिन फिर पहिलै दिलीप कुमार और बादि म अमिताभ बच्चन अवधी-भोजपुरी सब याके म मिलाए दीन्हैन। के पी सक्सेना की बलिहारी है कि उ आमिर खान तेरे लगान में उन्नाव-लखनऊ की बोली बुलवावै की खूब कोशिश कीन्हेन। पहिले लगान की कहानी उन्नाव के किसानन की कहानी रहै, लेकिन बाद में पड़ोसी ज़िला हरदोई क रहैया आमिर खान या कहानी लइ जाए क मध्य भारत के कौनो गांव में फिट कइ दीन्हैन। हुई सकत है कि आमिर ख़ान इ बात त डेराय गे होए कि उन्नाव का जिक्र तो पहिले उमराव जानौ म हुई चुका है। जी हां, खूब पहिचान्यो रेखा होएं चाहें ऐश्वर्या राय, दून्हो याको डॉयलॉग लगै अवधी म नाई बोलेन, अपनी पिक्चर मा। जबकि उमराव जान का बसेरा कुछ दिन उन्नावौ म रहि चुका है।
अवधी की बात पर याद आवा कि याकै रहें बहिरे बाबा। उनक्यार नाम वैसे त रहै चंद्र भूषण त्रिवेदी उर्फ रमई काका मुला आकाशवाणी लखनऊ क्यार नाटक बहिरे बाबा उनका फेमस कइ दिन्हेस, बहिरे बाबा के नाम से। उन्नाव क्यार वइसे तो बहुत लोग बहुत नाम कमाइन लेकिन कुछ लोगिन के नाम से उन्नाव दुनियाभर मा मशहूर है। बहिरे बाबा का नाम हमका याद है। यहौ कहा जाति है कि चंद्रशेखर आज़ादौ उन्नाव के बदरका गांव म पैदा भे रहैं, कुछ लोग कहत हैं कि उई पैदा तो भे रहैं मध्यप्रदेश म, लेकिन उनके घर वाले बादि म हियां आइकै बसि गे। सूर्यकांत त्रिपाठी “निराला” क नाम त सबका मालूम है। अउरौ गांव जेवार के तमाम लोग मशहूर भे। आज़ादी से पहिले महात्मा गांधी याके दांय हमरे गांव आए रहैं। हमार बाबा स्वर्गीयत पंडित सुंदर लाल शुक्ल वैद्य उनके साथै दाने बाबा के चउतरा पर तब बैठकी कीन्हि तेइन। कहा यहौ जाति है कि उनके साथ जवाहर लाल नेहरू हु रहैं, लेकिन 24 साल पहिलै गुजरि चुकीं हमरी दादी क गांधी जी के अलावा अउर कउनो का नाम यादि ना रहै। सफीपुर के भगवती चरण वर्मा साहित्य संसार में मशहूर भे तो शिव मंगल सिंह सुमनौ खूब नाम कमाइन। विशंभर दयालु त्रिपाठी तो खैर मशहूर कांग्रेसी आहिं, लेकिन उनके हे घर के विश्वदीपक त्रिपाठी की आवाज़ हम बीबीसी लंदन से बचपन में खूब सुनेन। उनकेरि आवाज़ अबहूं हमरै कानै में गूंजित है, “ये बीबीसी लंदन है। लंदन की घड़ियों में इस वक्त दोपहर के ढाई बजे हैं और भारत में रात के आठ। मैं हूं विश्वदीपक त्रिपाठी और पेश है आजकल।”
बादि के दिनन म राजश्री पिक्चर्स क्यार कानपुर के मंजूश्री टाकीज़ म दफ्तर चलावै वाले तिवारी जी बताइन कि मनमोहन देसाई की पिक्चर लिखै वाले के के शुक्ला ऊगू क्यार रहैं। ऊगू क नांव उमाशंकर दीक्षितौ खूब रौशन कीन्हेनि। उनके लड़िका विनोद दीक्षित साथै बिहाव कइकै कन्नौज केरि शीला, शीला दीक्षित भई। बेचरेऊ उन्नाव ते लोकसभा का चुनाव लड़ीं तौ हार गईं। और किस्मत देख्याओ अब दिल्ली केरि मुख्यमंत्री हैं। हम सतईं म रहन जब उमाशंकर दीक्षित हमरे कॉलेज जवाहर लाल नेहरू इंटर कॉलेज, फतेहपुर चौरासी आए रहैं। हम स्काउट की वर्दी पहिन कै उनक्यार स्वागतो कीन। उन्नाव के राजा जसा सिंहौ अंग्रेजन ते लड़ाई लड़ि कै नांव कमाइन। याक दांय हम लखनऊ त स्कूटर त घरै आइत रहै तो बजाय उन्नाव हुई कै आवै क हम दूसरै कौनो रास्ता पकड़ लीन। राहै में याकै गांव म पानी पिये खातिर रुकेन। टील्ला पर इंडिया मार्का हैंड पंप लाग रहै, हुअन चढ़ि के गएन तो दीख कि हुआ एक पत्थर लाग है। पत्थर पर लिखा रहै कि उर्दू के मशहूर शायर हसरत मोहानी क्यार जन्म ह्यानै भा रहै। इ वोई शायर आहीं जिनकेरि ग़ज़ल बी आर चोपड़ा केरि पिक्चर निक़ाह में ग़ुलाम अली गाईन। वइसे पत्रकारिता की कक्षा म सुरेश त्रिवेदी क जब या बात बताई तो उ मानै क तैयार ना भे। हसरत मोहानी आज़ादी की लड़ाइहू म शामिल रहैं।
उन्नावै के परियर म बतावा जाति है कि सीताजी घर ते निकारै जाय क बादि रही रहै। और यौ नांव परिहरि केरे अपभ्रंश त बना है। खैर उन्नाव के बारे में हियन बात करै का प्रसंग तो अइसे ही छिड़िगा, मूल बात रहै अवधी में लिखै कि। हिया, हुआं जहां कहूं त कुछौ अवधी म मिला, हम कोशिश करब कि सब तक पहुंचै। और आपौ लोग केवल पढ़ि के चुप्पै ना रहि जाय्यौ, कुछौ लिखौ लेकिन इ बोली को बचाए खातिर ज़रूरी है। अपने लड़िका बिटियौ त कम ते कम पूर दिन मा याक दांय अवधी म ज़रूर बात करौ। उन्हूंन क तो पता चलै कि कित्ती मिठास है इ रामजी की बोली मा।