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तोर सब्द उर्दू अपनाइस, अंगरेजी उरु कीन्हिंस, बोली खड़ी बुलंदशहर की, दांते अंगुरी दीन्हिस। देखि प्रवाह चरित का चित्रण छन्द, गीत, धुनि धारा, दुनिया भर की सगरी बोली, जोरि न सकीं अखारा। तोरी नीति, कहावत, कबिता, जग की करैं, ठठोली, अब जिउ मां धरु धीर, राम की प्यारी अवधी बोली। -रचयिता : पं. वंशीधर शुक्ल
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