Friday, September 26, 2008

झाड़े रहौ कलक्टरगंज...


हम पंचै जब ते गांव छोड़ि के शहर में पढ़ाई करै पहुंचेन, गांव देहात की बोली छोड़ि क खड़ी बोली ब्वालै लागेन। गांव वाले दादा की पहली बहुरिया तक तो सब कोई देहाती ही म ब्वालत रहा। लेकिन, जइसेहे गांव म दूसरि बहुरिया लखनऊ त आई, सबका जइसे खड़ी बोली का भूत सवार हुइगा। वैसे इ भाभी कबहूं लखनऊ की नज़ाकत नाईं दिखाएन औ बिचरेउ कबहूं गोबर तो घर लीपें तो कबहूं चूल्हा म रोटी बनावै। यहौ नाईं गांव की देहाती बोली हू ब्वालै लागीं। लेकिन हम पंचै सब खड़ी बोली अइसे पकड़ेन कि अगली पीढ़ी म अब कोऊ गांव की बोली ब्वालै वाला नाईं बचा। कमै लोग जानत हुइहैं कि अवध इलाके की इ अवध बोली का मुंबई त लइकै विदेसन तकौ म खूब बोल बाला रहि चुका है। पहिले राजकपूर और राजश्री की फिल्मन म याक दुई डॉयलॉग ज़रूर अवधी म होति रहै। लेकिन फिर पहिलै दिलीप कुमार और बादि म अमिताभ बच्चन अवधी-भोजपुरी सब याके म मिलाए दीन्हैन। के पी सक्सेना की बलिहारी है कि उ आमिर खान तेरे लगान में उन्नाव-लखनऊ की बोली बुलवावै की खूब कोशिश कीन्हेन। पहिले लगान की कहानी उन्नाव के किसानन की कहानी रहै, लेकिन बाद में पड़ोसी ज़िला हरदोई क रहैया आमिर खान या कहानी लइ जाए क मध्य भारत के कौनो गांव में फिट कइ दीन्हैन। हुई सकत है कि आमिर ख़ान इ बात त डेराय गे होए कि उन्नाव का जिक्र तो पहिले उमराव जानौ म हुई चुका है। जी हां, खूब पहिचान्यो रेखा होएं चाहें ऐश्वर्या राय, दून्हो याको डॉयलॉग लगै अवधी म नाई बोलेन, अपनी पिक्चर मा। जबकि उमराव जान का बसेरा कुछ दिन उन्नावौ म रहि चुका है।
अवधी की बात पर याद आवा कि याकै रहें बहिरे बाबा। उनक्यार नाम वैसे त रहै चंद्र भूषण त्रिवेदी उर्फ रमई काका मुला आकाशवाणी लखनऊ क्यार नाटक बहिरे बाबा उनका फेमस कइ दिन्हेस, बहिरे बाबा के नाम से। उन्नाव क्यार वइसे तो बहुत लोग बहुत नाम कमाइन लेकिन कुछ लोगिन के नाम से उन्नाव दुनियाभर मा मशहूर है। बहिरे बाबा का नाम हमका याद है। यहौ कहा जाति है कि चंद्रशेखर आज़ादौ उन्नाव के बदरका गांव म पैदा भे रहैं, कुछ लोग कहत हैं कि उई पैदा तो भे रहैं मध्यप्रदेश म, लेकिन उनके घर वाले बादि म हियां आइकै बसि गे। सूर्यकांत त्रिपाठी “निराला” क नाम त सबका मालूम है। अउरौ गांव जेवार के तमाम लोग मशहूर भे। आज़ादी से पहिले महात्मा गांधी याके दांय हमरे गांव आए रहैं। हमार बाबा स्वर्गीयत पंडित सुंदर लाल शुक्ल वैद्य उनके साथै दाने बाबा के चउतरा पर तब बैठकी कीन्हि तेइन। कहा यहौ जाति है कि उनके साथ जवाहर लाल नेहरू हु रहैं, लेकिन 24 साल पहिलै गुजरि चुकीं हमरी दादी क गांधी जी के अलावा अउर कउनो का नाम यादि ना रहै। सफीपुर के भगवती चरण वर्मा साहित्य संसार में मशहूर भे तो शिव मंगल सिंह सुमनौ खूब नाम कमाइन। विशंभर दयालु त्रिपाठी तो खैर मशहूर कांग्रेसी आहिं, लेकिन उनके हे घर के विश्वदीपक त्रिपाठी की आवाज़ हम बीबीसी लंदन से बचपन में खूब सुनेन। उनकेरि आवाज़ अबहूं हमरै कानै में गूंजित है, “ये बीबीसी लंदन है। लंदन की घड़ियों में इस वक्त दोपहर के ढाई बजे हैं और भारत में रात के आठ। मैं हूं विश्वदीपक त्रिपाठी और पेश है आजकल।”
बादि के दिनन म राजश्री पिक्चर्स क्यार कानपुर के मंजूश्री टाकीज़ म दफ्तर चलावै वाले तिवारी जी बताइन कि मनमोहन देसाई की पिक्चर लिखै वाले के के शुक्ला ऊगू क्यार रहैं। ऊगू क नांव उमाशंकर दीक्षितौ खूब रौशन कीन्हेनि। उनके लड़िका विनोद दीक्षित साथै बिहाव कइकै कन्नौज केरि शीला, शीला दीक्षित भई। बेचरेऊ उन्नाव ते लोकसभा का चुनाव लड़ीं तौ हार गईं। और किस्मत देख्याओ अब दिल्ली केरि मुख्यमंत्री हैं। हम सतईं म रहन जब उमाशंकर दीक्षित हमरे कॉलेज जवाहर लाल नेहरू इंटर कॉलेज, फतेहपुर चौरासी आए रहैं। हम स्काउट की वर्दी पहिन कै उनक्यार स्वागतो कीन। उन्नाव के राजा जसा सिंहौ अंग्रेजन ते लड़ाई लड़ि कै नांव कमाइन। याक दांय हम लखनऊ त स्कूटर त घरै आइत रहै तो बजाय उन्नाव हुई कै आवै क हम दूसरै कौनो रास्ता पकड़ लीन। राहै में याकै गांव म पानी पिये खातिर रुकेन। टील्ला पर इंडिया मार्का हैंड पंप लाग रहै, हुअन चढ़ि के गएन तो दीख कि हुआ एक पत्थर लाग है। पत्थर पर लिखा रहै कि उर्दू के मशहूर शायर हसरत मोहानी क्यार जन्म ह्यानै भा रहै। इ वोई शायर आहीं जिनकेरि ग़ज़ल बी आर चोपड़ा केरि पिक्चर निक़ाह में ग़ुलाम अली गाईन। वइसे पत्रकारिता की कक्षा म सुरेश त्रिवेदी क जब या बात बताई तो उ मानै क तैयार ना भे। हसरत मोहानी आज़ादी की लड़ाइहू म शामिल रहैं।
उन्नावै के परियर म बतावा जाति है कि सीताजी घर ते निकारै जाय क बादि रही रहै। और यौ नांव परिहरि केरे अपभ्रंश त बना है। खैर उन्नाव के बारे में हियन बात करै का प्रसंग तो अइसे ही छिड़िगा, मूल बात रहै अवधी में लिखै कि। हिया, हुआं जहां कहूं त कुछौ अवधी म मिला, हम कोशिश करब कि सब तक पहुंचै। और आपौ लोग केवल पढ़ि के चुप्पै ना रहि जाय्यौ, कुछौ लिखौ लेकिन इ बोली को बचाए खातिर ज़रूरी है। अपने लड़िका बिटियौ त कम ते कम पूर दिन मा याक दांय अवधी म ज़रूर बात करौ। उन्हूंन क तो पता चलै कि कित्ती मिठास है इ रामजी की बोली मा।




9 comments:

सतीश पंचम said...

खूब झाडत बाट्य कलट्टरगंज......मजा त आई गै लेकिन ई Word Verfication हटावा मर्दे...काहे जी के बवाल पाले हउवा, अरे तनिक हमहूँ क आसानी होई जाय कि रहर-पाती झाड झंखाड जौन कुछ टिपियाई तनिक मन से टिपियाई।
अच्छा लगत बा ई बोली और ई पोस्ट।
जारी रखिह।

Hari Joshi said...

ई आपकी नई अदा है पंडित जी। पसंद आई।

Unknown said...

पंकंज,
सिरिफ मिठासै के मामिला नहीं ना। अवधी मां जौन व्यंजना अहै जल्दी-जल्दा कहीं अउर न पइहौ।
इ लोकोक्ति द्याखौ- अइस मयानी पितिया सास, कंडा लैके पोंछैं आंस। इमेजिन समवन वाइपिंग टियर्स विद काऊडंग केक। यू एकता कपूर की सासन से पानी भरावत मुरहापन कहां पइहौ। वैसे हमार बोली भोजपूरी जौने मां तुम सनीमा बनाय अहौ, वहौ अभिव्यक्ति के मामले में कम लल्लनटाप नहीं ना। मुला व्यौपारी अइसा सीन बनाइन कि बाहेर वालेन समझै लगेन कि पूरब के मेहरिया दिन में सताइस बार चुम्मा देत है और मनसेधु बानर की तिरे उन्तीस बार गमछा बिछाय के ओहिके बोलावा करत है। और कौनों कामै नही् ना। नेशनल हाइवे पर ट्रक में बजत भोजपूरी के फूहर गाना अइसै तस्वीर मन मां बनावत है।

नीक किहौ, अवधी के बिलाग बनायौ।

Unknown said...

सतीश भैया, हरी जी अउर अनिल भाई,
आप लोगन की टिप्पणी देखि कै मन जुड़ा गा। बहुतै बहूत धन्यवाद।
-पंकज

punit said...

मनिहो न ..हियों छा ही के मनिहौ.. "झाड़े रहौ कलक्टरगंज..."

पारुल "पुखराज" said...

lag raha hai BAISVAARA pahunch gayi...apni jagah ,apni boli, kahin bhi raho kheenchti hi hai.. .....UNNAO ki aambolchal v kahavaten to jugprasiddh hain....bahut acchha likha hai aapney..jinka judaa_v hai apni zameen se ve is lekh ka marm samjh saktey hain!!!!!

जहाजी कउवा said...

अरे भाई सुकुल महाराज, जियु जुडाई गओ यहु चिट्ठा पढि के. केत्ते दिन बादि कोई बालामऊ हरदोई उन्नाव केरी बात करेसि. तौ भाई माखी केरे पेढा तौ यादि हूबै करिहैं . और एकदम नीचे आप बालामऊ ट्रेन लिखे हाउ ना , तौ भाई हम एकदम बालामऊ वाले है. बालामऊ जंक्शन और बहुत दाय गाड़ी पर ते कूद के उन्नाव स्टेशन से पिलास्टिक बोतल माँ पानी भरे है
लगे रहो भाई और एक मस्त पिक्चर बनाओ. उन्नाव के शुभाम् सिनेमा में लगाओ और हरदोई के आनंद माँ

शुभकामनाएं

Unknown said...

जहाजी कउवा भाई,
खूब लिख्यौ, अरे माखी क पेड़ा कइसे भूलि सकित है। खूब खाएन है। उन्नाव क बाद याहै एक स्टेशन रहै जहां दुई पटरी रहैं, अउऱ क्रासिंग खातिर बालामऊ ह्यानै रुकति रहै। आवति रह्यौ भाई।

पारुल बहिनी,
बैसवारा कि बोली तो जू जुड़ाइ ही देत है। हमार बिनती है कि तुमहूं कुछ अवधी म सारेगामा लिखौ अउर हमका मेल करौ. इ ब्लॉग पर अउरौ लोगन क्यार लिखै खातिर स्वागत है..

और भइया स्पेन वाले, हमका ई भाषा समझिही म नाहीं आई तो का जवाब लिखी...माफ कइ दीन्हौ

कहा सुना माफ़,
-पंकज शुक्ल




-पंकज शुक्ल

manas mishra said...

बहिरे बाबा के कथा तो सुनत सुनत मारे हंसी के पेट फुलि अवात रहै. अब तो बहुत दिन ह्वैगे सुने तौं भूल गएन का कहानी रही. अब तो जबकबौ गांव मा रेडियों ख्वालौ तो एफएम वाली वर्षा और वीरा से छुट्टी ही नही मिलति पता नहीं का का चिल्लावा करती हैं.